की-बोर्ड
के उबड़ खाबड़
पथरीले
रास्तों पर
उंगलियों के
नंगे पैरौं से
लड़खडाते सम्भलते
तय करके
लम्बा सफ़र
आज खड़ा हूँ
शब्दों के ऊँचे पहाड़ पर
चुपचाप
बगैर झंडा
ख़ुद ही लहराते
ठण्डी हवाओं में
अकेले ।
आज भी हैं
नंगे
पैर उंगलियों के॰॰॰॰
थका नहीं हूँ अभी
ज़रा भी
न है जूतों की तलाश
उंगलियों को॰॰॰॰
बस ढूंढता हूँ
अगली दिशा
अगली आवाज़॰॰॰॰
की-बोर्ड
के ऊबड़ खाबड़
पथरीले
रास्ते
अब बन चुके हैं
दस नन्हे नंगे पाँवों
के नृत्य की थाप
जीवन के उत्सव की॰॰॰॰