Tuesday, December 31, 2013

5-50

मेरे सिर पर ५
दीदी के सिर १०
२० भइया के काँधे पर
५० मइया के सर ।

घर पहुँच
उतार इन्हें
चूल्हे में जलायेंगे
चावल खूब पकायेंगे
अचार संग खा जायेंगे
५० हाथ मैं
२० कौर दीदी
१० भइया
५ मइया

Sunday, December 1, 2013

ऊँचाइयाँ

सड़कों को
कब हैं हसरतें
ईमारतोँ की ऊँचाइयों की

लेटी हुई हैं बस ये,
लम्बाइयाँ बहुत ऊँची हैं । 

Wednesday, November 6, 2013

अहद

मिल लेंगे
मुस्तक़बिल से
जो तकदीर में है

पहले
निभा लें
वो अहद
जो आज से हैं

Tuesday, November 5, 2013

कहिये

कहते हैं आप
कुछ कहा नहीं
दिनों से

कहिये तो
पहले
दिनों से
कुछ कहें
हम से

Thursday, September 19, 2013

गुबार

निकला न
दिल से
गुबार
अगरचे सीने में
आग कम न थी

चिंगारियाँ
न उठतीं
रह रह कर
इस कदर,
बस आँख
नम न थी ।

सब्र

न हो जिगर-ए-ज़िंदगी,
हौसला-ए-मौत भी न हो,

ऐतबार-ए-एहतमाद ना रहे,
सब्र-ए-एहतराम ही सही।

Wednesday, September 18, 2013

तकदीर

तकदीर में हो
तदबीर
तो तदबीर हो जाये

न हो तदबीर की
तकदीर
तो क्या करें ?

सागर

हैरान था
जब सुनता था
कहते थे वो
जाम को सागर,

हूँ अब
मुतमइन
जब
तैर आया हूँ
साहिल-ए-सहर
डूब कर
रात भर।

Saturday, September 7, 2013

बेचैनी

इस कदर
आँख से टपकनें
की बेचैनी?
ज़रा सम्भल,

रगों में
पहले
वो कर ले
जो तेरा काम है ।

Friday, September 6, 2013

तूफ़ान और मैं

तूफ़ान भी गुज़र गया,
और मैं भी,

मैं भी गुज़र गया
और तूफ़ान भी

राज़

कुछ देर और
जो बिताओगे
खुशनसीबी के साथ,

कहीं कबूल
न कर लो
अपनी बदनसीबी के राज़ 

पीर

पीर पैगंबर
मनाने का
फ़कत बहाना था

असल में
अंदर का
फ़कीर था
घबराया हुआ ।

क्यों

नज़रें क्यों ढूँढती हैं 
उन्हें 
जिनसे चुराते थे,

क्या ले गये हैं 
वो 
जिसे हम बचाते थे!

ताक़ीद

रोको,
पकड़ो,
कर देखो ताक़ीद
एक बार और,

ना जाये,
ना ले जाये
दिल,
हसीन कातिल की ओर।

Sunday, September 1, 2013

दीवार

ताश के पत्तों
सी
क्यों गिरी
नफ़रत
की दीवार?

प्यार का
बस
ख़्याल ही तो था,
और क्या था?

नाम

सड़क का,
न मील का
पत्थर बन पाया,

ठोकर ही मार देते,
त्वारीख़-ए-सफ़र में
नाम तो आता ।

Friday, August 23, 2013

साहिल और मझदार

बड़े हिम्मतवाले
लगते हो,

साहिल को
मौत
और
मझदार को
ज़िन्दगी
कहते हो।

मंसूबे

क्या
ज़हीन
नादान निकला
तू देख ज़रा,

मंसूबे
पता थे,
मंसूबों
के मंसूबों का
इल्म न था।

फ़ासला

जनाब को
गर
हैरानगी की
है तवक्को
इस कदर,

हैरान करने
के लिये
ज़िंदगी को
फ़ासला तो दीजिये

Friday, August 16, 2013

जिस्म

जिस्म को तो
साथ लेने दो,
किसको
टाँगोगे
उल्टा
गोज़ख़ में?

Thursday, August 15, 2013

आँसू

छोड़ आए थे जो दुनिया बहुत पीछे
उस दुनिया की भी दुनिया में हम बाक़ी नहीं हैं,
हो रही होगी आबाद वो दुनिया किसी दुनिया
हम भी हैं खुश, अरमां बाक़ी नहीं हैं,
रोने पे हमारे न जा, ये आँसू खुशी के हैं
इतनी सुहानी ज़िंदगी के हम आदी नहीं हैं।

Wednesday, August 14, 2013

अंगूर

खोल कर
सबकी गाँठें,
छत पर,
धूप में
खुला छोड़ दो

जो
परिंदों से होंगे,
उड़ जायेंगे,
बाक़ी
खट्टे सवालों
के अंगूर
किश्मिश बन
सूख जायेंगे।

उतार लाना
खीर में डाल
रोज़ खाना ।

कहा सुना

कह दिया
हमने
जो उन्होंने
सोचा नहीं था,

सोच लिया
उन्होंने
जो हमने
कहा नहीं था।

ज़िन्दगी और मौत

ज़िन्दगी के
न होने को
मौत कहते हैं

मौत के
न होने को
ज़िन्दगी
नहीं कहते।

बसतियाँ

बेतरतीब
बसतियों में
कहानियाँ
बहुत हैं

नसीहतें तो कम नहीं,
परेशानियाँ बहुत हैं

मकसद

उसने तो
भेजा था
बेमकसद
नामज़िद करके

हमीं ने
ढूँढ लिए
मकसद,
इंतखाबिज़ हो के।

नज़ारा

घूमना
तमाम दुनिया
फ़कत
दिल का
बहलाना निकला

नज़ारे तो
अलग थे,
नज़ारा
अलग न था ।

तैयारी

सदा ए महफ़िल
आई है,
तैयारी तो कर लूँ

जिगर को लाल,
आँखों को
नशीला तो कर लूँ।

दर

यही सोच कर
हम
उनके दर
नहीं जाते

कहीं
तलाशी न ले
ज़ालिम
सलाम से पहले

Monday, August 12, 2013

मासूम

मत
मुस्कुरा
मासूम की तरह

मौत,
तू भी
कुछ
कम तो नहीं है।

स्याही

स्याही के
ख़त्म होने से
कलम के
लिखने का
क्या?

कुरेदती रहेगी
काग़ज़ को,
हर्फ़ों का
आँखों से
क्या?

जवाब

मत
कर ज़िद,
हर सवाल
का जवाब
नहीं है

हैं पर्दे में
हैरानगियाँ,
वर्ना
तो नहीं है

धीरे धीरे

वक्त की मार
धीरे धीरे

बीमार को आराम
धीरे धीरे

Sunday, August 11, 2013

सफ़र

मुसाफ़िर हूँ
या
कि हूँ
तमाशाई

मैं हूँ
सफ़र में,
या
दुनिया सफ़र में है?

कलम से

नहीं जानता
किसे करता हूँ
पैदा
कलम से

बस इतना
जानता हूँ
किसे
बचा लेता हूँ

ज़ख़्म

दिन रात
यूँ
कुरेदोगे
तो ज़ख़्म
भर जायेंगे

जल्द
हो जाओगे
बेज़ार ^,
सम्भल जाओगे






^ displeased / angry / uninterested / fed-up

ख़बर

ख़बर तो
मैंने भी
सुनी थी
अपने जाने की

यकीन
न हुआ
तो ख़ुद
देखने
चला आया

यकीन

यकीन
दिलाओ
उम्र-ए-दराज़ की
तो जियें

कौन जिये
यूँ
एक एक दिन
करके

कश्ती

खुश्क दरिया में
कश्ती
कैसे चलती?

न डूबने
का डर था,
न तैरने
का लुत्फ़

Saturday, August 10, 2013

ज़रूर

नाशुक्रे
थे वो
उन्हें
पता नहीं था

ज़रूर लौटाते
जान
अगर
जान जाते

स्याही

स्याही जब तक
नीली थी
नशीली न थी
मरीज़ थे हम
अलबत्ता
शायर न थे

ईद

हर्फ़ मिलायें आँख
तो कुछ लफ़्ज़ बनें

लफ़्ज़ मिलायें दिल
कोई शेर कहें

गले मिलें सब शेर,
अदद ग़ज़ल बने

धुलें शफ़्फ़ाक़ दिल,
कुछ ईद मनें।

शेर

आबादियों में
जब
हो रहे थे
तबाह,

तबाही के
एक शेर नें
आबाद कर दिया।

हूँ

रोज़
डूबता हूँ
सूरज की मानिन्द
न भीगता हूँ
न दम घुटता है

चमकता हूँ
चाँद की तरह
न जलता हूँ
न जलाता हूँ

सवाल

कहते हैं
जिसे चेहरा
असल में
नक़ाब है

पर्दे में
है कौन,
अब ये
सवाल है ।

नक़ाब

कहते हैं
जिसे चेहरा
क्या खूब
नक़ाब है,

कुछ नहीं
छुपाता,
सब कुछ
सम्भाल कर।

खुशबू

देखता है कौन
आँखों से,
मुँह से
बोलता है,

ये किसकी है खुशबू,
अंदर महकता है।

इंतज़ार

बरसने का मेरे,
ऐ हमदम,
इंतज़ार न कर

रिस रहा हूँ
बूँद-बूँद,
बेकार न कर ।

Friday, August 9, 2013

कोना

बस्ती
के कोने
में
रहनें का
जी करता है

जी के
कोने में
बसने का
जी करता है

निशानियाँ

कौन सा
है घर
कौन सा
दवा खाना
भूल जाता हूँ

निशानियाँ
रखी थीं
दर्द और दवा की,
नाकाफ़ी निकलीं

सफ़र

गर
सफ़र
ही है
मंज़िल
तो
ऐ दिल ए नादान,

चुपचाप
खड़ा रह
मंज़िल पर,
सफ़र न कर

Monday, August 5, 2013

दर्द

चलो
शायर को
दर्द दिया जाये...

एक अच्छा सा
शेर सुना जाये ।

Sunday, August 4, 2013

काफ़िर

एक नहीं
हज़ारों
गुस्ताखियां
करनी पड़ेंगी
मुआफ़

कैसे
कर सकेंगे
इबादत
मुझ काफ़िर की
आप?

वक्त

बागीचा-ए-जहान में
दौड़ूँ
या कि
सैर करूँ,

कोई बताए
वक्त ही वक्त है
या
बिलकुल नहीं है।

मसरूफ़

मसरूफ़
थी दुनिया
कर गुज़रनें के लिये

जब
हम थे
गुज़र रहे
गुज़रने के लिये

Saturday, August 3, 2013

पता

किसने भेजा था, कहाँ
और
किस लिये

कहाँ छोड़ गया
नामाबर*,
सिर्फ़ पते के लिये




* massenger, postman

कोई और

देखते
मुझको
जो देख लिया
चाँद
को मैंने

फिर
जो देखा
आसमां,
कोई और
तारा न था ।

वजह

कुछ तो
भरा होगा
ग़ुबार-ए-उबाल,
अब्र अलूद *
यूँ ही
नहीं है

बे-वजह
बिजलियाँ
नहीं कड़कतीं,
अश्क नहीं बरसते ।



*cloudy

कहाँ

कहाँ से गुज़रा,
कहाँ पहुँचा,
कहाँ जाऊँगा

होता इल्म
तो न
तमन्नाओं को
बे-आराम
करता ।

सूरत

न जा
मेरी सूरत पे
ऐ रकीब,

मेरी सीरत
को देखेगा
तो रो पड़ेगा ।

उम्मीद

न रख
मुझसे
कोई उम्मीद
इससे और

तेरी
ना-उम्मीदी को
बा-अदब
सम्भाल रखा है ।

इरादा

बात बात पर
गले लगा रहे हो,
कहाँ से आ रहे हो,
क्या देख लिया है?

क्यों हैं अश्क खुश्क,
आँखें सुर्ख़,
चेहरा ज़र्द
क्या है इरादा,
क्या सोच लिया है?

Wednesday, July 31, 2013

हसरतें

आते थे
वहाँ से भी
रास्ते
मेरे दिल को
जहाँ
जाते नहीं थे

हसरतों का मेरी
खैरमकदम
हर जगह पे था ।

कलम

खूँ रेज़
है ज़रूर,
बेदर्द
नहीं है

बस जान लेती है
कलम
कोई रंजिश नहीं है

Tuesday, July 30, 2013

जेब-ए-क़फ़न

जेब-ए-क़फ़न से
निकाल लो
रुपये पैसे,
कुछ डौलर
डाल दो

कौन जाने
बाज़ारो दोज़ख़
कौन सी
करंसी चले

तलाश

उठा रखी थी
दुनिया
जिन्होंने
सर पर,
दुनिया में रहने के लिये
और दिन चार,

बैठे हैं
वही
ग़मग़ीन
कूचा-ए-हैरानगी
तलाश-ए-मक़सद में

जाम-ए-शायरी

करते हो पेश
सरे सहर,
जाम-ए-शायरी !

क्यों करते हो
मयख़्वार
को खराब
शब से पेश्तर

वसीयत

गर करता है
कोई
मेरे शेरो दीवान
की वसीयत
का दावा

दे दीजिये
सब उसे,
कलम छोड़ कर

अधूरे बुत

अब
जब यकीनी है,
नहीं है
हमेशा के लिये
इजाज़त-ए-ज़िंदगी
क्यों न छोड़ दें
सब अधूरे बुत,
मौज को सिजदा
और
साँसों को नमाज़
समझ लें

इरादे

इरादे
किये थे
जो
सुकून-ए-सबा-ए-साहिल पे
सीना तान के

क्या ख़्याल है
जनाब का
लहरो-साग़रे-उफ़ान में 

दोज़ख़

होगी
इस कदर
बदइंतज़ामी
वादाखिलाफ़ी
दोज़ख़ में
सोचा न था,

न दर्द-ए-फ़ना
उस कदर,
न बेकरारी,
न दग़ा वो खाया हुआ ।

शिकायत

शिकायत रही
ता-उम्र,
जद्दोज़हद की
गर्मी बहुत है

हूँ सुकून से
अब
उम्रे साहिल,
पड़ा हूँ
बर्फ़ की सिल्ली पर।

Monday, July 29, 2013

बस्तियाँ

जो झूमते दरिया
न हों,
सैलाब हों

ऐसी बस्तियाँ
नहीं बसती,
बह जाती हैं

कत्लेआम

यूँ पकड़िये
कलम,
जज़बात,
अंदाज़े बयाँ,
यूँ चलाइये

ख़ुद की क़ज़ा
यकीनी हो
कत्लेआम
के बाद

दो शेर

बख़्श दी जान
और दिन चार
अहबाब-ए-अज़ीम नें

लिख लूँ
दो शेर और
सबको सुना लूँ

आदम

ऊपर से
जो दिखता है
वो आदम नहीं होता,

अंदर से
जो होता है
बादम होता है।

कारवाँ

अंदाज़-ए-बयाँ
की फ़िराक़
में भटकते हैं
लफ़्ज़ों
के कारवाँ,

जहाँ मिल जायें
वहाँ
शहरो मीनार बसते हैं ।

हद

शायर से
उम्मीद
रखने से पेश्तर
बेहतर होगा
आप
हालात से कहें
कि
हद में रहें।

Sunday, July 28, 2013

ज़िद

ज़िद
छोड़ दीजिये
हर सवाल
के
जवाब की

जैसे
हर जवाब
सवाल की
फिक़्र नहीं करता ।

तैयारी

ज़िंदगी की छोड़िए
ख़ुद ब ख़ुद
जी लेगी।

मौत की
सब तैयारी है
ज़रा शान से।

वक्त

पूछते हैं वो
कि
वक्त क्या हुआ,

कोई पूछे
वक्त में
मेरा क्या हुआ ।

Saturday, July 27, 2013

एक से

एक बार
कहीँ भी
कैसे भी
काट ले जो
कोई साँप
सभी जंगल
एक से ही
लगते हैं.


सुकून

उबल कर
भाप बनने को
आमादा होगी
जब जब दुनिया

सुकून-ए-शायरी
आएगी
कहीं से,
बरस जायेगी

आस

अगरचे जानता हूँ
नहीं है
कुछ मतलब
ज़िंदगी का

इक आस है
जागती रात से,
सो उम्मीद से हूँ।

पाँव

देख तो लूँ
कहीं उल्टे न हों
पाँव
नाज़नीन के

पहले
सम्भाल लूँ
डगमगाते हौसले
खुदकुशी के

Friday, July 26, 2013

खिड़की

आँखों की खिड़की
में बैठी
झाँकती रही
ता-उम्र
रुह-ए-पाक़

उतरी तभी
जब बंद हुईं
और धुँआ उठने लगा।

इंतज़ार

रास्ते भटकने से
नहीं डर
किस्मत के खोने का

वहीं है
इंतज़ार में वो
जहाँ
भटका रही है

कागज़ का खुदा

जब से दुनिया
पहचानने लगी
कागज़ों से मुझे
कागज़ को
खुदा
बना बैठा,

पहली बरसात में
भीगा जो मेरा खुदा,
सरे बाज़ार
फिर
यतीम हो गया

Wednesday, July 24, 2013

भू स्खलन

जब तक
जो कुछ गिरना है
गिर नहीं जाता,

भू स्खलन
जीवन का
ख़त्म नहीं होता
जानता हूँ।

अमीरी

तारों की
महफ़िल में,
आँखों में
नींद से भरा जाम....

क्यों न खुद की
अमीरी पे
खुमार आये....

गुम

जब जब
ज़िन्दगी में
कुछ गुम  हुआ
अंदर का  कुत्ता
सूंघ कर
ढूंढ़ लाया।

ये
इस बार
क्या गुम हुआ
जो
वो
है तैयार
भटकने को
ताउम्र

तूफ़ान

बाहर
तूफ़ान
चल रहा है।

बंद दरवाज़ों में
रजाई में
दुबका हूँ।

जिनके पास
घर
या
घरों के दरवाज़े नहीं,
कहाँ
क्या करते होंगे
सोच रहा हूँ।

बारिश

कब्र में
मुद्दत बाद
फिर वही
सोंधी सोंधी सी
मिट्टी की महक
आई है,

कुछ बूँदें
रिसी हैं।

लगता है
बाहर बारिश हुई है।

चादर

बहुत देर
मेरी आखों में
देखने के बाद,

वो सारे लफ़्ज़,
पलटे पन्नों
की चादर ओढ़,
सो गये ।

उदासी

जन्नत
में रहने वाले
जब जब
उदास हो जाते हैं,

जाकर
दोज़क हो आते हैं

चारा

सड़क किनारे
बैठी
क्या सोचती है
वो गाय?

कोई चारा नहीं
अगले जन्म
के इंतज़ार
के सिवा॰॰॰॰॰॰

बेताबी

भटके हुए
अभी
बहुत वक्त
तो हुआ न था,

फिर क्यों
ढूँढते हुए
बेताब मंज़िलें
मुझ तक
आ गयीं

दर्द

मारने से डरता हूँ
पत्थर आइने पे

ख़ुद को लगने से ज़्यादा
कहीं दर्द न हो
मेरे अक्स को 

कारोबार

कौन मिलता है
कभी
कहीं
किसी को
गोया कारोबार के सिवा

लौटाना होगा
कभी कुछ लिया हुआ,
लेना होगा
कहीं कुछ
लौटाने के लिये।

बेरुख़ी

कर्ज़ न सही
एहसान ही सही
कुछ तो लिल्लाह दीजिये
इंकार ही सही।

वफ़ा न हो मुमकिन
जफ़ा नामंज़ूर
बेरुख़ी हो आसान
बेरुख़ी ही सही

नीयत

बला की ढूँढती है
नीयत बला को -

टालने वाली
उतारने वाली
रूठने वाली 

गिटार

कौन सी गिटार खरीदूँ
जो बजानी आसान हो
जल्दी आ जाये

फिर सोचता हूँ
जो अंदर बजती है
बज रही है
बेहतर है
अच्छी है

Saturday, June 29, 2013

बारिश

बंद खिड़की पर
बाहर से पड़ती
बारिश
जब शीशे को
ज़ोर ज़ोर से धोती है,
अंदर
सूने
बंद कमरे में
अकेले
सूखे
बैठे मुझको
यादों से भिगोती है.

Saturday, April 20, 2013

वापसी

खुले बाल मेरे
फड़फड़ा रहे
ठण्डी चीखती हवाओं में
इस आसमानी चोटी पर
जैसे लहराता
उतावले जीवन का
दृढ़ ध्वज ।

आँखें हैं बंद
चेहरा है खुला
पूरा ।

धरती के ऊपर से
गुज़रते
उड़ते
पंजों में से उसके
मैं जो फिसल गिरा था कभी
गहरे जंगल में,

भटक
निराश
हताश
उदास हो
चढ़ आया हूँ
इस शिखर पर
इंतज़ार में उसी के॰॰॰॰॰

वो आए
ले जाये मुझे दबोच
अपने खोये शिकार की तरह।

Saturday, February 23, 2013

आदिमानव

कल शाम
मैनें एक आदिमानव देखा ।

सुना था
आदिमानव
नग्न होता है ।

लम्बे उलझे बाल॰॰॰॰॰॰॰
नंगे पाँव
हाथ में पत्थर की शिला॰॰॰॰॰
गंदे दाँत
देह से बदबू
मुँह में मांस॰॰॰॰॰
प्राचीन सोच
जानवर तासीर
शिकारी प्रवृत्ती
घर की जगह माँद और कंदरा
और उस में भरी
माँस और मदिरा ।

आज
उसे देखा
तो पल भर
मैं धोखा खा ही गया ।

हाथ में मोबाइल
चमकते दाँत
बदन से खुशबू
मुँह में सिग्रेट॰॰॰॰॰

आज तो धोखा खा ही जाता
आदिमानव पहचान न पाता
अगर उसके पास न जाता
बहुत करीब से भाँप ना पाता॰॰॰॰

कपड़ों तले नग्न चरित्र
खोखला जीवन, सोच विचित्र
खुश्बू ढके मरे विचार
हँसी से दबी चीख पुकार ।

प्राचीन सोच
जानवर तासीर
शिकारी प्रवृत्ती॰॰॰॰

घर ही बना माँद और कंदरा
उस में भरी
माँस और मदिरा ।

कल शाम
मैनें आदिमानव देखा ।

सही सुना था
आदिमानव
नग्न होता है ।

बस स्टाप


मत डराओ मुझे
धरती के खत्म होने
की खबरों से॰॰॰

धूमकेतू के टकराने
जीवन खत्म होने की बातों से॰॰॰

प्रलय के आने
और शीत युग की शुरुआत से॰॰॰

मैं नहीं डरता
फर्क नहीं पड़ता
मुझे ।

बस ५ मिनट पहले
बता देना मुझे,
चंद कागज़
एक कलम
झोले में डाल
नंगे पाँव
पास के चौराहे
के बस स्टाप पर
तैयार मिलूँगा ।

उंगली


नन्हे बाएँ हाथ से
सड़क के दरिया को लाँघते
चौराहे पर
मगरमच्छ की तरह
उसकी ओर बढ़ते
कारों ट्रकों और बसों के झुण्ड को
उसनें रोकने की बहुत कोशिश की
॰॰॰॰॰वो नहीं रुके।

डरी
सहमी सी
वो बच्ची
रो ही पड़ती,
लाल बत्ती से झुंझलाई गुस्साई गाड़ियों
से घबरा ही जाती
अगर उसके
दायें हाथ में
उसके प्यारे पापा
के हाथ की
वो छोटी सी
उंगली न होती ।

वादा

"आऊँगी
ज़रुर
एक दिन,
बैठूँगी
तापूँगी आग
तुम्हारे साथ
देर रात ।

कहूँगी बातें
दिल खोलकर
सालों की
करुँगी यादें ताज़ा
बताऊँगी राज़
मन के
अनकहे
अनसुने ।

खाऊँगी
तुम्हारे हाथों से
जो खिलाओगे
पिलाओगे ।

देखूँगी छत को
बंद आँखों से
रात भर
लेट कर
जहाँ लिटाओगे ।

और सुनूँगी
खामोशी से
चुपचाप जो कहोगे
बैठकर बगल में
सारी रात
कुरेदते
यादों की राख़ ।

आऊँगी
ज़रुर
एक दिन,
बैठूँगी
तापूँगी आग
तुम्हारे साथ
देर रात,
मगर आज नहीं ।

आज भी
हूँ जल्दी में,
कहीं जाना है
कुछ काम है
ज़रूरी
बाकी ।"

सुबह सुबह
शहर के बाहर वाली सड़क पर
अंतिम धाम
के गेट
के सामने से
गुज़रते हुए
मेरे अंदर बैठे
किसी ने
किसी से
पीछे मुड़
कहा
मैंनें सुना ।

Tuesday, February 12, 2013

वहाँ


सुबह के ४ बजे थे
कड़ाके की ठण्ड थी
स्याह रात
अभी कुछ बाकी थी।

ठण्डा आसमान ओढ़े
परिंदे और इंसान
अभी सो रहे थे।

ज़रुरी था
सो मुझे जागना पड़ा
रजाई से निकल

मुँह हाथ धोकर
मुँह अंधेरे
घर से निकल

गाड़ी में बैठ
पहाड़ के पैरों पैरों
वादी के कंधों पर
चलना पड़ा ।

काली ढाँक से गुज़रा
तो ख़्याल आया
रेडियो की तरंगें
दिखाई नहीं पड़ती थीं
पर वहाँ होंगी ज़रूर॰॰॰

मोबाइल की लहरें
दिखाई नहीं देती थीं
पर वहाँ होंगी ज़रूर॰॰॰

भगवान भी
अंधेरे मैं
दिखते नहीं थे
पर होंगे ज़रूर॰॰॰॰

और फिर याद आया
सड़क किनारे
स्कूल के रास्ते में
ढाँक के नीचे बनी
दो नन्हीं बच्चियों की समाधि पर
वही दोनों बच्चियाँ
स्कूल ड्रैस पहने
बस्ता लिये
तैयार हो
सुबह होनें
और घण्टी बजने के इंतज़ार में
बैठी दिखती नहीं थीं
पर होंगी ज़रूर ।

Sunday, January 20, 2013

कष्ट

"आपने क्यों कष्ट किया
हमें बुला लिया होता ।"

पैंतीस साल पहले
ज़मीन में गाड़े गये
अब तक गल सड़ गये
नोटों और सिक्कों ने
ऊपर दफ़नाए जा रहे
अपने मियाँ जी से
अदब से पूछा ।

Friday, January 11, 2013

टीला

दसवीं पास
निखट्टू
जगोता
देर सवेरा
जागा
और नाश्ता कर
जूते पहन
गाँव की गलियों से
कुत्तों के पीचे पीछे
टीले के पास वाले
मैदान में
दोस्तों से
फुटबॉल खेलने
जा पहुँचा । 

आज
मैदान में
सब कुछ बदला बदला था । 

फुटबाल के बिना ही
दर्जनों लड़के
फौजियों से घिरे
दौड़
कूद
रेंग रहे थे ।

जगोता को भी
दौड़ना
कूदना
रेंगना
फुटबाल से ज़्यादा पसंद था ।

वो टीले से कूदा
भागता हुआ
मैदान में उतरा
पहले फौजी को अपना नाम लिखवा
तेज़ भागा
ऊँचा कूदा
और फ़टाफ़ट रेंगकर
सबसे पहले
पार पहुँच गया ।

"चलिये, ट्रक में बैठिये"
फ़ौजी ने
जगोता को
बाजू से पकड़ते हुए कहा ।

"किस लिए?
मैंने क्या किया?"
जगोता घबराया
और बड़बड़ाया ।

"आप फ़ौज में
भर्ती किये जाते हैं।"
फ़ौजी बोला ।

जगोता
तिलमिलाया
छटपटाया
गिड़गिड़ाया
रोया
पर
उसे जाना पड़ा ।

२८ साल बाद
२ मैडेल
४ युद्ध
१७६ मुठभेड़
९०८० गोलियों
५६ दुश्मनों को गिरानें के बाद
आज
रिटायर्ड सुबेदार जगोता
गाँव लौटते
उसी टीले से लिपट
बिलख बिलख रोया
और अपनें दोनों मैडेल
उसे पहना
घर लौट गया ।

Friday, January 4, 2013

नानी


रेस्तरां में
बगल की मेज़ पर
मम्मी पापा
और भाई के साथ बैठी
नन्हीं सी
प्यारी
गोल मटोल
बच्ची की
तोतली ज़ुबान की
कैंची जैसी
प्यारी बातों ने
मेरे कानों को कुतरा
और नज़रों को
खींचा ।

लटकते गालों वाली
कुछ मोटी
और नाटी
परी को देखनें
मेरे होटों की मुंडेर पर
मुस्कुराहटें दौड़ी चली आईं

और
पीछे
नीचे
अंदर
बुझे बुझे से
दिल के
गहरे कमरे में
हज़ार वाट के
सौ बल्ब
जल उठे ।

तभी
मन ही मन
हँसते हँसते
मेरे दिल में
एक शरारती ख़याल आया

"बड़ी होकर
बूढ़ी होकर
ये बच्ची
कितनी प्यारी
क्यूट
बूढ़िया नानी दिखेगी ।"

ये सोचकर
दबे पाँव
मैंने
फिर से
एक नज़र
उस गुड़िया को देखा ।

मैं
अभी देख ही रहा था
अभी खुश हो ही रहा था
कि दिल बीच में ही
फिर बोल पड़ा

"पता नहीं
यह बच्ची
सही सलामत
तब तक
इतनी दूर
वक्त के उतने पहाड़
लाँघ भी पायेगी
इस देश में ?"