साँसों की तितलियाँ
Friday, August 23, 2013
साहिल और मझदार
बड़े हिम्मतवाले
लगते हो,
साहिल को
मौत
और
मझदार को
ज़िन्दगी
कहते हो।
मंसूबे
क्या
ज़हीन
नादान निकला
तू देख ज़रा,
मंसूबे
पता थे,
मंसूबों
के मंसूबों का
इल्म न था।
फ़ासला
जनाब को
गर
हैरानगी की
है तवक्को
इस कदर,
हैरान करने
के लिये
ज़िंदगी को
फ़ासला तो दीजिये
Friday, August 16, 2013
जिस्म
जिस्म को तो
साथ लेने दो,
किसको
टाँगोगे
उल्टा
गोज़ख़ में?
Thursday, August 15, 2013
आँसू
छोड़ आए थे जो दुनिया बहुत पीछे
उस दुनिया की भी दुनिया में हम बाक़ी नहीं हैं,
हो रही होगी आबाद वो दुनिया किसी दुनिया
हम भी हैं खुश, अरमां बाक़ी नहीं हैं,
रोने पे हमारे न जा, ये आँसू खुशी के हैं
इतनी सुहानी ज़िंदगी के हम आदी नहीं हैं।
Wednesday, August 14, 2013
अंगूर
खोल कर
सबकी गाँठें,
छत पर,
धूप में
खुला छोड़ दो
जो
परिंदों से होंगे,
उड़ जायेंगे,
बाक़ी
खट्टे सवालों
के अंगूर
किश्मिश बन
सूख जायेंगे।
उतार लाना
खीर में डाल
रोज़ खाना ।
कहा सुना
कह दिया
हमने
जो उन्होंने
सोचा नहीं था,
सोच लिया
उन्होंने
जो हमने
कहा नहीं था।
ज़िन्दगी और मौत
ज़िन्दगी के
न होने को
मौत कहते हैं
मौत के
न होने को
ज़िन्दगी
नहीं कहते।
बसतियाँ
बेतरतीब
बसतियों में
कहानियाँ
बहुत हैं
नसीहतें तो कम नहीं,
परेशानियाँ बहुत हैं
मकसद
उसने तो
भेजा था
बेमकसद
नामज़िद करके
हमीं ने
ढूँढ लिए
मकसद,
इंतखाबिज़ हो के।
नज़ारा
घूमना
तमाम दुनिया
फ़कत
दिल का
बहलाना निकला
नज़ारे तो
अलग थे,
नज़ारा
अलग न था ।
तैयारी
सदा ए महफ़िल
आई है,
तैयारी तो कर लूँ
जिगर को लाल,
आँखों को
नशीला तो कर लूँ।
दर
यही सोच कर
हम
उनके दर
नहीं जाते
कहीं
तलाशी न ले
ज़ालिम
सलाम से पहले
Monday, August 12, 2013
मासूम
मत
मुस्कुरा
मासूम की तरह
मौत,
तू भी
कुछ
कम तो नहीं है।
स्याही
स्याही के
ख़त्म होने से
कलम के
लिखने का
क्या?
कुरेदती रहेगी
काग़ज़ को,
हर्फ़ों का
आँखों से
क्या?
जवाब
मत
कर ज़िद,
हर सवाल
का जवाब
नहीं है
हैं पर्दे में
हैरानगियाँ,
वर्ना
तो नहीं है
धीरे धीरे
वक्त की मार
धीरे धीरे
बीमार को आराम
धीरे धीरे
Sunday, August 11, 2013
सफ़र
मुसाफ़िर हूँ
या
कि हूँ
तमाशाई
मैं हूँ
सफ़र में,
या
दुनिया सफ़र में है?
कलम से
नहीं जानता
किसे करता हूँ
पैदा
कलम से
बस इतना
जानता हूँ
किसे
बचा लेता हूँ
ज़ख़्म
दिन रात
यूँ
कुरेदोगे
तो ज़ख़्म
भर जायेंगे
जल्द
हो जाओगे
बेज़ार ^,
सम्भल जाओगे
^ displeased / angry / uninterested / fed-up
ख़बर
ख़बर तो
मैंने भी
सुनी थी
अपने जाने की
यकीन
न हुआ
तो ख़ुद
देखने
चला आया
यकीन
यकीन
दिलाओ
उम्र-ए-दराज़ की
तो जियें
कौन जिये
यूँ
एक एक दिन
करके
कश्ती
खुश्क दरिया में
कश्ती
कैसे चलती?
न डूबने
का डर था,
न तैरने
का लुत्फ़
Saturday, August 10, 2013
ज़रूर
नाशुक्रे
थे वो
उन्हें
पता नहीं था
ज़रूर लौटाते
जान
अगर
जान जाते
स्याही
स्याही जब तक
नीली थी
नशीली न थी
मरीज़ थे हम
अलबत्ता
शायर न थे
ईद
हर्फ़ मिलायें आँख
तो कुछ लफ़्ज़ बनें
लफ़्ज़ मिलायें दिल
कोई शेर कहें
गले मिलें सब शेर,
अदद ग़ज़ल बने
धुलें शफ़्फ़ाक़ दिल,
कुछ ईद मनें।
शेर
आबादियों में
जब
हो रहे थे
तबाह,
तबाही के
एक शेर नें
आबाद कर दिया।
हूँ
रोज़
डूबता हूँ
सूरज की मानिन्द
न भीगता हूँ
न दम घुटता है
चमकता हूँ
चाँद की तरह
न जलता हूँ
न जलाता हूँ
सवाल
कहते हैं
जिसे चेहरा
असल में
नक़ाब है
पर्दे में
है कौन,
अब ये
सवाल है ।
नक़ाब
कहते हैं
जिसे चेहरा
क्या खूब
नक़ाब है,
कुछ नहीं
छुपाता,
सब कुछ
सम्भाल कर।
खुशबू
देखता है कौन
आँखों से,
मुँह से
बोलता है,
ये किसकी है खुशबू,
अंदर महकता है।
इंतज़ार
बरसने का मेरे,
ऐ हमदम,
इंतज़ार न कर
रिस रहा हूँ
बूँद-बूँद,
बेकार न कर ।
Friday, August 9, 2013
कोना
बस्ती
के कोने
में
रहनें का
जी करता है
जी के
कोने में
बसने का
जी करता है
निशानियाँ
कौन सा
है घर
कौन सा
दवा खाना
भूल जाता हूँ
निशानियाँ
रखी थीं
दर्द और दवा की,
नाकाफ़ी निकलीं
सफ़र
गर
सफ़र
ही है
मंज़िल
तो
ऐ दिल ए नादान,
चुपचाप
खड़ा रह
मंज़िल पर,
सफ़र न कर
Monday, August 5, 2013
दर्द
चलो
शायर को
दर्द दिया जाये...
एक अच्छा सा
शेर सुना जाये ।
Sunday, August 4, 2013
काफ़िर
एक नहीं
हज़ारों
गुस्ताखियां
करनी पड़ेंगी
मुआफ़
कैसे
कर सकेंगे
इबादत
मुझ काफ़िर की
आप?
वक्त
बागीचा-ए-जहान में
दौड़ूँ
या कि
सैर करूँ,
कोई बताए
वक्त ही वक्त है
या
बिलकुल नहीं है।
मसरूफ़
मसरूफ़
थी दुनिया
कर गुज़रनें के लिये
जब
हम थे
गुज़र रहे
गुज़रने के लिये
Saturday, August 3, 2013
पता
किसने भेजा था, कहाँ
और
किस लिये
कहाँ छोड़ गया
नामाबर*,
सिर्फ़ पते के लिये
* massenger, postman
कोई और
देखते
मुझको
जो देख लिया
चाँद
को मैंने
फिर
जो देखा
आसमां,
कोई और
तारा न था ।
वजह
कुछ तो
भरा होगा
ग़ुबार-ए-उबाल,
अब्र अलूद *
यूँ ही
नहीं है
बे-वजह
बिजलियाँ
नहीं कड़कतीं,
अश्क नहीं बरसते ।
*cloudy
कहाँ
कहाँ से गुज़रा,
कहाँ पहुँचा,
कहाँ जाऊँगा
होता इल्म
तो न
तमन्नाओं को
बे-आराम
करता ।
सूरत
न जा
मेरी सूरत पे
ऐ रकीब,
मेरी सीरत
को देखेगा
तो रो पड़ेगा ।
उम्मीद
न रख
मुझसे
कोई उम्मीद
इससे और
तेरी
ना-उम्मीदी को
बा-अदब
सम्भाल रखा है ।
इरादा
बात बात पर
गले लगा रहे हो,
कहाँ से आ रहे हो,
क्या देख लिया है?
क्यों हैं अश्क खुश्क,
आँखें सुर्ख़,
चेहरा ज़र्द
क्या है इरादा,
क्या सोच लिया है?
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