घड़ियाँ
घड़ी में क़ैद हैं,
बजती हैं
हर घंटे
सदियों से,
रुके हैं
क़यामत से
बस लम्हे,
इंतज़ार में
किसके,
बताते नही |
घड़ियाँ
घड़ी में क़ैद हैं,
बजती हैं
हर घंटे
सदियों से,
रुके हैं
क़यामत से
बस लम्हे,
इंतज़ार में
किसके,
बताते नही |
"कड़कती सर्दी
की अँधेरी
देर शाम,
सड़क किनारे
खड़ी
उस औरत नें
बच्चे को
गोद मे
क्यों नहीं उठाया है?"
गाड़ी चलाते,
उसे देखते,
मैंने सोचा.
मुझे,
उसने,
उसे देखते देख,
आँखों से
जवाब दिया
"कामकाजी महिला हूँ साब,
इसीलिए
बच्चा
पीठ पर बाँधा है,
मज़दूरी का तकाज़ा है"