तू
मेरी
रंगत
को
रंग
देता है,
मुझसे है
तू,
भ्रम
देता है।
आपके
मसले को
परसों की
खबर
की मानिंद
दुनिया
भूल
गई है,
गर
पहुँच
रही हो
आप तक
मेरी आवाज़,
तो
ऐ खुदखुशी वालो
लौट आओ।
मासूम
वालिदायन नें
इस कदर
देखी
औलाद में
अपनी
नाकाम
हसरतों की
तस्वीर,
उसे
वही
बना कर
वो बना दिया
जो वो
चाहता
नहीं था।
देखा
जो मैंने
कि
उसने
मुझे
उसे
देखते
नहीं देखा,
अपना
सलाम
किसी
बेहतर शख्स़
के लिए
मैंने
बचा लिया ।
बढ़
रहे हैं
बहुत
कोलेस्टरोल से
ट्रैफिक के थक्के,
धमनियों सी
सड़कों में,
आपके
शहर को
दिल
के दौरे
का
ख़तरा है।
ये तो
है
हुक्मरानों
युद्धों
संधियों
का
इतिहास,
हमारा
कहाँ
है,
उसी को
लाओ
ढूँढ़कर,
उसी से
लेंगे
सबक,
वही
पढ़ेंगे।
बगल में ही
तो थे
प्रॉस्पेक्टस
की
सूची में
कॉमर्स
और
कंप्यूटर
के विषय,
इतनी
दूर दूर की
दुनिया में
निकाल ले जायेंगे
दोस्तों ने
सोचा न था।
10 लाख
का
ईनाम
जो दिया है
आपने
प्रतियोगिता में
इस तस्वीर को,
कितना दोगे,
चाहे जो बेचना,
गरीब,
यही
तस्वीर वाली
कुटिया,
साक्षात,
सारी,
आपको,
समेत ख़ुद के?
गाय
को खिलाने
के लिए
सुबह
से
ढूँढ़,
काट,
चारे का
पहाड़,
सर पर
लाद,
ला तो
रही हो
अम्मा,
ये तो
बताओ
सुबह से
आपने भी
कुछ
खाया है
कि
अभी तक
भूखी हो?
हिरोशिमा
परमाणु
बम
गिराने वाले
की,
अगली
सदी में,
आज
मौत
हुई है,
लम्बी
हो
आयु
उसकी,
क़ुबूल
मरने वालों
की
दुआ
हुई है।
रोज़मर्रा
की
उलझनों
समस्याओं
के
बादलों
से ऊपर
उड़ाऊँ
अपने जीवन
का
हवाई जहाज़,
मौसमी
बिजलियाँ
कड़कें
तो
नीचे कड़कें ।
असामाजिक
उत्पाती
बंदरों
को
पता था
विधि का
भौंकता
खुंखार
कुत्ता
बंधा था
शालीनता से
अनदेखा कर
मसरूफ़ रह
गुज़र गये
सभ्यता
को
सुरक्षा का
इत्मिनान रहा
छत पर,
बालकोनी में,
सड़कों
गलियों
मैदानों,
ढूँढ़ती है
बारिश
तुम्हें
न जाने
कहाँ कहाँ,
और तुम हो
छिपे
रजाई में
ऊँघते
यहाँ!!
चलो
उठो
आओ बाहर,
ज़रा भीगो,
सूँघो
मिट्टी की
महक,
अन्दर से
खिलो।
बारिश
की
बूंदें
जब गिरते गिरते
ज़मीन से टकरा
टुकड़े हो
ज़ोर से उछलती हैं,
यूँ लगता है
अभी
हसरत थी
जाने की
और आगे
उनकी,
जो बीच में ही
टूटी है,
सम्भालती हैं
फिर भी
खुद को,
नन्ही नदी बन
जहाँ रास्ता मिले
बह निकलती हैं।
इतनी
कम
आर पी एम
पर भी
क्या शानदार
सम्भाले हो
भाप बादल बारिश
नदी सागर भाप
का जीवन चक्र!
क्या
हॉर्स पॉवर है
तुम्हारे
इस जीवित इंजन की,
सारी
धरती
के जीवन को
चलाते हो,
वल्लाह,
क्या कमाल
थर्मल
इंजीनियर हो!
चिड़िया
से
फंस गए हो
काँच की
चारदीवारी में
तुम्हें पता नहीं,
आज़ाद भी हो
हमेशा के लिए
और फिर भी नहीं,
हो रहे हो
ज़ख्मी
टकरा टकराकर
ज़ोर ज़ोर से,
बार बार,
निकल भागने की
छटपटाहट में,
बेचारे हो
बच्चे,
तुम्हारे
पंखों के
हाथ में
कुछ भी नहीं,
करे
रहम ख़ुदा,
कुछ
जगाये तुम्हें
करिश्मे की
तरह,
कुछ
दिखाये तुम्हें
निकल जाने का
रास्ता
जो
वहीँ हैं करीब
खुला।
जिस
पानी का
झरने पे
वापिस
चढ़ना
था मुश्किल,
वो
पानी-पानी
को ही
पकड़ पकड़
छूता है
पहाड़ को
जहाँ से
आया था।
जहाँ जहाँ
कोई
अर्थ
मिला
पड़ा,
लगाकर
टेंट,
जलाकर
बॉन फायर,
रात
वहीँ
बिताता
रहा,
एक
उम्र
गुज़र
गई
ज़िन्दगी
जीने में।
वो
गाय
की
जुगाली,
वो
तुम्हारा
बबल गम
खाना,
वो
उसके
दूध की
बरकत,
वो
तुम्हारा
धरती
पर
थूकना,
हाय!
उसकी
सज़ा,
तौबा
तुम्हारी
क़िस्मत!
वो इत्तेफ़ाकन था
कि उस दिन
शुक्रवार था
और
मास की तेरहवीं थी
जब ईसा को
मिली थी सूली,
वरना
कौन देखता है
दिन या वार
चढ़ाने
भीतर या बाहर का
यीशू
सूली पर
आज!
अगर
इसे
कहते हैं
कानफरेंस
तो
शेख जी
ऐसी
हमारे गाँव
की चौपाल पर
दिन में
चार होती हैं,
बस
मुनादी
ही नहीं
होती,
बाकि
रिवायतें
ऐसी ही
रौबदार
होती हैं।
फिर
रुकी है
तारीख़
इंतज़ार में
आपके,
तकती है
मुँह,
फिर
कीजिए
मजबूरी में
कोई
मासूम
गलती,
मेहरबानी
करके।
बात को
तभी
बढ़ाया जाए
जब
उसके
ख़त्म होने के
इम्कानात
इस तरह
ज़्यादा हों,
वर्ना
सुलगनें
दी जाए
अगरबत्ती की तरह,
माहौल महकने दें।
वीज़ा की
मयाद
गर
इतनी
बढ़
जाये
कि
जीवन
हो जाये,
वैसा ही
हो
जायेगा
किसी का
भी
रुख़
प्रवास के प्रति
जैसा
धरती पर
आपका है।
स्वर्ग का
सीढ़ियों
से क्या,
नीचे
भी है
और
ऊपर
भी,
स्वर्ग का
होने से
क्या,
है भी है
और
नहीं भी,
सोच
और
तृष्णा
का विषय है,
सवाल भी है
और
जवाब भी।
खाली हाथ हूँ
कोई बात नहीं है,
नहीं कोई औज़ार मेरे पास
मलाल नहीं है,
शब्दों
के तीखेपन से ही
घड़ लूँगा
जज़बातों की लकड़ी,
भाषा की बाँसुरी
बना लूँगा।
खेल आँख मिचोनी
सम्भावनाओं की
सुरंगों के मुहाने पर
छटपटाहट की
उँगलियों से,
हौसलों की साँसों से
सही धुन
बजा लूँगा,
तरखान हूँ
आवाज़ों का
वर्णों का ही
रेती रंदा
बना लूँगा,
खाली हाथ हूँ
कोई बात नहीं है,
नहीं कोई औज़ार मेरे पास
मलाल नहीं है।
नहला
धुला,
तैयार कर,
भेज था
चूम कर,
माँ ने,
सुबह सुबह,
उजले मुहँ सा
सूरज,
दिन भर,
किस किस
आस्मां
भटक,
धूल फाँक,
किस
पश्चिम
के
समन्दर में
हाय
जा डूबा।
खुली
खिड़की
से जो
भिगो दिए
बारिश नें
ओशो की
किताब के पन्ने,
सूखने पर
फूल गए,
नादान
दुकानदार नें
करोड़ों
का खज़ाना
कौड़ियों
में बेच
नुकसान
बचा लिया।
ज्यों ज्यों
बच्चे
और बड़े
शख्स
बनते गए,
अंग्रेज़ी में
तबकों
को
दबाने की ज़हानत
रहे निखारते,
माँ बोली
की
वर्णमाला
भूलते गए।
नर्क
में
स्वर्ग
के एहसास
का
इंतज़ाम
मुश्किल था
नामुमकिन
नहीं,
प्रबंधक
का
जादू था,
प्रबंध
हो
गया।
उठते
फूटते हो
मिट्टी के
फव्वारे
की तरह,
फलते
फूलते
बरसते हो,
बाग ए फिरदौस
के पेड़ हो,
उसके
बच्चे।
आते
तो
हैं
दिन रात
सोते जागते
हर वक्त
कितने ही
सिग्नल
तुम तक,
तुम्हारे
मस्तिष्क का
रेडियो ही
न हो
ट्यून
तो
किसका
कुसूर!
तुझे
तो
दिख गया है,
दे गया है
सुनाई,
जानता हूँ,
मेरे
अहम्
के
पड़ोस
में भी तो
सब जाने
कि मैं
तेरी
हाज़री
में हूँ।
सड़कों
के
कुपोषण
की
जाँच में
मृत ज़मीरों
का
जब
हुआ
पोस्टमॉर्टेम,
तारकोल
रोड़ी
के
टुकड़े
मत पूछो
किस किस के
पेट
से
निकले
था
अंधा
गूँगा
बहरा,
कहता
सुनता
कैसे
नमाज़,
देखता
कैसे
नमाज़ियों का
सिजदा,
थे
ले जाते
जब
अब्बू
पकड़ उंगली
मस्जिद में,
बस इतना
था
पता,
बैठता था
सामने
कहीं
कोई,
अपने बच्चों
को
मिलता था।
तारों
में से
आनी थी
जो जो
खुशहाली,
जब तक
थी
बिजली
आ
गई,
सड़क
के
रास्ते
आनी थीं
जो,
ट्रैफिक
में
फंस
कर
रह
गईं।
ले तो लेते
गोद
किसी आश्रम
से
बच्चा
वो
बेऔलाद दम्पति,
मगर
कशमकश थी,
कैसे
बना देते,
किसी
अजनबी को
वारिस,
गाढ़ी
काली
कमाई का।
करवा
तो दें
सारी दुनिया
का
धर्म
परिवर्तन,
आप सा
महान
बना दें,
आशंकित हैं,
क्या है
गारंटी,
अमन से रहेंगे
जनाब,
ज़हानत
से
कोई
नया
मसला
न
बना देंगे
अंग्रेज़ी
बोल
कर
दबाते
हो,
वो तो
निकल
गया
हिंदी में
अनसुना
करके,
अब
पीछे
किस
अंग्रेज़ को
मन ही मन
सुनाते हो।
मँहगे
ब्रांडेड
सुंदर
मज़बूत
भारी
टिकाऊ
हैं
यकीनन
तुम्हारे
ताले,
मगर
छोड़ो,
चाबियाँ
ढूँढो
जो
ढूँढ़ने
आए हो।
चूमते
तो
होंठ हैं
जब
कोई
प्यारा
अपने
प्यारे को
प्यार
करता है,
असल में
रूहें हैं
जो
ज़ंजीरें तोड़
चाहती हैं
मिलना।
न स्टैण्डर्ड
न हाई डैफ़िनिशन
मन का पटल,
तैरती
तस्वीरों
की
कशिश
बेमिसाल
मगर।
न स्टीरियोफ़ोनिक
न डॉल्बी
ज़हन की
आवाज़ें,
माज़ी की
पुकार
मधुर
मगर,
न रंगीन
न श्याम श्वेत
अतीत
की
यादें,
आँसुओं
के
इन्द्रधनुष
आर पार
मगर।
देखे
न गए
जो
ख़्वाब
हौंसलों से,
क्षमायाचक
पलकों
नें
झपक कर
उड़ा दिए,
बैठे रहे,
फिर
भी,
ताउम्र,
वो सारे,
आँखों
की
मुंडेर,
बीनते
इजाज़त
के
दाने।
साँप
की
तरह
अब
खाल
उतार
देने का
दिल
करता है,
नया हो,
फिर से
पुराना बन,
आगे
बढ़
जाने का
दिल
करता है।
सफ़ेद
पन्नों
की चादरों पर
जिल्द
की
रजाई ओढ़,
कैसे
बेफ़िक्री से
थका
इतिहास
सोता है,
वर्तमान की
नींद
उड़ी है,
हवा
में
बिखरे
कागज़
भाग भाग
पकड़ता है,
बिना
अंकों के
तरतीब
ढूँढ़ता है।
बड़ा दिल करता है
कभी कभी
करूँ बंद
टीवी,
और आँखें भी,
कुछ न देखूँ।
बस सुनूँ
आधी रात के
सन्नाटे में,
रेडियो...
निकल जाने दूँ
जिस्म से रूह,
उड़ जाने दूँ उसे,
पकड़
रेडियो की तरंगें,
दूर देश,
वहाँ तक
जहाँ से
आती थीं वो।
बैठनें दूँ उसे
उसी आवाज़ के सामने,
देखते
उसे
एकटक
अपलक
घंटों...
आतिशबाज़ी
करता
पहुँचा,
तिड़ तिड़ाता,
अपनी ही फैलाई
धुंध को
चीरता,
सिज़लर,
जो
मेरी टेबल तक,
बिना
केक
के ही,
अकेले,
मैंने ख़ुद को
हैप्पी बर्थडे
कह लिया।
कौन कौन सी
छिपी हैं
कवितायेँ
इस कलम की
स्याही में,
ऐसे नहीं
बतायेगी,
कुछ
बीत गुज़रेगी
इस पर
तो
लिख
सुनायेगी ।
कामधेनु
दूध
की
थैली में
जिस
गाय का
दूध,
उसी
गाय
के
उदर में
उसी
दूध
की
थैलियाँ,
हाय,
सनातन
युग
की
ये कैसी
मजबूरियाँ !
शुक्र है
नानी
की कहानियों
वाले
बेइंसाफ़ी
के
बड़े बड़े
घंटे
अब
नहीं
होते,
रहते
दिन भर
बजते।
कैसे
सुनती
उनकी
भयानक
निराशाजनक
आवाज़ में
मुझे
मेरे
स्कूल की
घंटी!
सरप्राइज़
रखा है
तुम्हारे
लिए,
चुपचाप
आ जा,
ढककर
छुपा
रखा है
मुश्किलों की
चादर में,
शोर
न कर,
आ
ले जा।
तुम्हारे
मुक्त विश्वविद्यालय
से
कर
रहा हूँ
स्नातकी,
यद्यपि
मान्यताप्राप्त
नहीं,
बंदगी
ही
तो
करनी है,
नौकरी
नहीं।
रास्ते पर आज
इत्तेफ़ाकन
तुम्हारा बनाया
धरती सा
पत्ता
और उस पर तैरती
तुम्हारी बनाई
कायनात सी
ओस
की पारदर्शी बूँद देखी,
गर थे
वो
दोनों
पलक
और
आँख
तुम्हारे,
तो
या ख़ुदा
आज
तुम्हें
देख
लिया।
गूँध
दिया है
ज़िन्दगी
तूने
मुझे
आटे
की तरह,
तंदूर में
उल्टा
टाँगा है,
अब
मक्खन
तो
लगा
मेरे
पके
वजूद पे,
कोई
भात
तो
चखा।
आसमान
गिरने
के डर से
भागते
हो
क्यों?
वालिद
सा है
तुम्हारे
सर पे
वो,
उसी
को
ढूँढोगे
इक
दिन
जो
उठ जाएगा।
न
डर,
हो
जाने दे,
जो चाहता है,
होना,
शायद
कब से,
है
इंतज़ार में
वही,
जिसके
होने का
तेरे वजूद को
कब से
इंतज़ार है।
शायर
को
तर्जुमान
का
काम
न
मिला,
कहा गया
था जो
न
कहा,
दिल
में
जो
थी
बात उनके,
कह दी,
ऐसे
कि
असर न गया।
गिन कर
कविताएँ
लिखे
कौन,
सम्भल कर
जज़्बात
छेड़े
कौन,
करता है
जी
तो
कुरेदता
हूँ
सूखे
ज़ख्म,
मीठे
दर्द
से
मुट्ठियाँ
भरता
हूँ।
फुला फुला
देह के
गुब्बारे
भर
साँसों
की
हवा
उड़ाते हो,
फिर
बच्चों सा
फोड़ते हो
सबको,
घुसा
मर्ज़ी के
नाखून।
पापा
से कहो,
खिलौने
ला दें,
इंसानों
जीवों को
बड़ी
तकलीफ़
होती है।
आप तो
व्यापारी थे
पक्के,
आप
कैसे
चल बसे?
कर लेते
इस हिसाब
में भी
हेर फेर,
इहाँ उहाँ
कुछ
दे दिला
अभी
जी लेते!
कुत्तों
को भी
देखा है
करते
इस्तेमाल
कानों को
रडार की तरह,
क्यों
कर रखे हैं
दोनों
तुमने बंद,
बिन्दे
रान्झों
की तरह।
आज भी
बैठते हैं
बाऊजी बीजी
साथ साथ
दुकान में
सुबह से
शाम तक,
रखे
चारों
चौकस
आँखें
दुकान,सामान,
ग्राहकों और
गल्ले पर,
पहने
हार,
टंगे टंगे
दीवार पर।
करते थे
जय,
लगाकर
माथे से,
जो
लग जाता था
कभी
पैर
किसी किताब को,
अब
किताब
चूमती है माथा,
पकड़कर
चेहरा,
जो
कभी
लड़खड़ा जाते हैं
पैर।
जाओ
जल्द
बादलो,
यहाँ नहीं
वहाँ
बरसो,
गिरे
हैं
चंद
सौ
लोग
जहाँ
आसमां से
उड़ते उड़ते,
धू धू
जलते
हैं।
बचपन में
चलाकर
गुलेल
मार
गिराता था
जो
हवा में
उड़ते
कबूतर,
हो
गया है
जवान,
अम्मा,
तेरा
वही
बेटा,
होनहार
ने
मार
गिराया है
आज
मिसाइल से
आकाश में
उड़ता
जहाज़,
बनके
यूक्रेन
का बागी,
जा
संभाल।
शुक्र
है
जलाया
नहीं था,
दफ़नाया
ही था,
बच्चियों को
थीं
जो
शिकार
हादसे
की,
कैसे
लाते
राख़
उठाकर
अस्पताल में
करने
पोस्टमॉर्टेम
तीसरी बार!
काट कर
हाथ,
भेज
दिए
उन्होनें,
वाट्स एप्प पर,
बजाते
ताली,
शुक्र है,
इशारे
में
भेजा
पैग़ाम,
बोल के
करते
तारीफ़
तो
कहीं
ज़ुबान
ही न
भेजते!
टूटी
टपकती
नाम की शेष
छतरी,
मैले कपड़े,
उखड़ी चप्पल,
उलझे बाल,
गंदे दाँत,
तो क्या!
गरम
नरम
भुट्टा
मिल
गया
जो
कहीं से,
पागल
भिखारी
कुछ पल
का
राजा
बन गया।
ख़्यालों
में,
आपसे
बहस में,
बड़ी
दूर
निकल
गए,
इतनी
दूर
हमें
भेजना,
तो
शायद,
आपके
ख़्यालों
में भी
न था।
लाख
खटखटाया,
बजाई
घंटियाँ,
दी आवाजें,
की
मिन्नतें,
वक्त
से
पहले
उन्हें
नियती
ने
अन्दर
न
आने
दिया,
जिंदा
रहे,
ज़मीन का
दरवाज़ा
न
खुला।
घसीट
घसीट
कर
शिकस्त
हमें
जीतने
को
फिर
बुलाती
रही,
घायल
हम,
वजूद
की चारपाई
पर
अहं के
पाये
जकड़
अकड़े
रहे ।
आवाज़ों
ने
पकड़ लिया
डाल
बाज़ुएँ
मेरे
कानों
से,
आँखों से
नज़ारों ने
जकड़
लिया,
ज़ुबान
पर
था
ताला
अचम्भे का,
रह
गया
मैं
खड़ा,
जड़,
निःशब्द ।