ज़रूरी
नहीं
कि
दीवार पर
टंगा है
तो
देखना
लाज़मी है,
फंदा
हो सामने
तो
झूलना
क्या
ज़रूरी है!
पंख
भी थे,
आसमान
भी,
परिंदों को
न मिली
इजाज़त
माँ बाप से
उड़ जाने की,
फ़र्माबरदार
ताउम्र
रहे
छतों पर
रेंगते,
बीनते
फेंके
दाने।
कह
दिया है
बीसियों बार
कि
शादी शुदा
हूँ मैं,
मत
भरो
मेरी
अख़बार
प्रणय प्रस्तावों से
बीचों बीच।
क्या करूँ
इस
दुनिया का
जो
तुमने
पैरों में मेरे
बिछाई है,
तुम्हारी
ख़ुशी
मेरे हमनफ़स
गर
इसी ने
चुराई है!
चमकते
चाँद
के मुँह को
देखकर
कर लो
आज
कसम पूरी,
किसी
रोज़
ले चलूँगा
दरवाज़े
से
पिछले,
मिलवाऊँगा
उससे।
देखती है जब
चाँद सितारों को
खेलते
एक दूसरे से
यूँ बेफ़िक्र
रात के नभ में,
सोचती है
धरती
क्यों आई थी
ज़मीन पर
ब्याह कर!
पल भर को
जो सताता है
चाँद
कर
तारे को
रात में
छोड़ जाने का
स्वाँग,
दौड़
पीछे
भागता है
टिमटिमाता तारा,
मार कर
छलाँग।
ओ सूरज
चमकते रहना,
ओ चोटियों की बर्फ़
पिघलते रहना,
ओ झरनों
तुम बहना
निरंतर,
ओ नदिया
बाँध
तुम
भरती
रहना,
बाँध!
तुम
बनाना बिजली
रात भर
बिन रुके,
कल है
मेरा
इम्तेहान,
करनी है
तैयारी,
बल्ब
तुम
जलते रहना।
बुझी
कार की
हैडलाईटों में भी
जब
पड़ी
रौशनी
तो
चमक
उठीं,
मुर्दा
दिल
में तो
ख़ैर
उम्मीद
होती
ही है।
उनके
इल्ज़ाम पर
कुछ
लम्हे
जो हमने
इज़हार ए हैरानगी
न किया,
सही
न गई
दुनिया से
ख़ामोशी,
मुंसिफ़ (judge)
हो गई।
ये
वो
रास्ता
तो नहीं
जहाँ से
आए थे,
खैरमकदम ( स्वागतम)
लिखा था
बड़ा बड़ा,
हर किसी ने
फूल
बरसाये
थे!
चार्ल्स,
तुम भी तो
गए थे
चाँद पर,
फिर
किताबों में
तुम्हारा
क्यों
नाम नहीं है?
इतना भी
शुक्र है,
धीरे धीरे
संभल कर
घूमता है
चाँद,
हैं
अभी तक
उसपर
तुम्हारे
क़दमों
के निशान,
चलो
कहीं तो
छपे हैं!
ख़ुदा
आपका
कस्टमर केयर का
रिकॉर्ड
बड़ा ही
ख़राब है,
एक तो
हमेशा से
मोनोपोली
है
आपकी,
सब हैं
प्रताड़ित,
उस पर
सवालों
शिकायतों
की
खिड़की है
बंद,
कतार में
पसीने से
तर बतर
सवाली हैं।
तरक्की की
फ्लाइट चढ़ते,
जवानी के
एअरपोर्ट पर,
ज़िन्दगी
की
कतार से,
ऐसे
निकाला
तुमने मुझे
जैसे मैं
कोई
स्मगलर था,
खड़ा रखा
फिर
मुझे,
बरसों,
नियती के
इन्टैरोगेशन रूम में,
पूछे
वो वो
सवाल
जो मुझसे
वाबस्ता
न थे,
कहते हो
अब
कि
'जाओ
बेकसूर हो
तुम',
अब
ये तो कहो
किस कतार लगूँ,
कौन सी
है उड़ान
इंतज़ार में मेरे,
किस
बचे
आसमान में उड़ूँ !
आज
खोल
ट्विटर की
चिड़िया की
चोंच,
लाया हूँ
निकाल वापिस
ज़िन्दगी
अपनी
जो
बना दाना
मैंने ही
कभी
थी रख दी
आगे उसके,
चुग गई थी जिसे
वो
बिना शुक्रिया,
अभी
चबा रही थी।
धूप
की ओर
करके
देखते हो
हर नोट,
ढूँढ़ते हो
असलियत की
तार,
वो
तार
कहाँ है
जो
डाली थी
तुममे,
भरोसा था
किया।
सड़क
किनारे
बैठा
वो खा रहा था
दुनिया का
बचा खुचा,
दुनिया से
छुपा,
रख
दुनिया की ही
अख़बार पर,
उसी की
ख़बरों से
बेख़बर।
होंगी
जब भी
सभी
झीलें
कभी खाली,
खाली
न मिलेंगी,
होंगी
उन्हीं से
भरी
जिनसे
दुनिया
भर कर
भी है
खाली।
आ तुजुर्बे
पकड़ मेरा हाथ,
सिखा मुझे
वही
जिसका
स्नातक हूँ मैं,
मेरे
खून में है तू,
ललकार
मुझे,
कर
पूरा
वो
सबक
जो
पढ़ कर भी
अधूरा है।
पत्नी
सोचती है
बोलते बोलते,
पूछती नहीं
बताती है,
यहीं तो समझनें में
होती है गलती,
उम्र भर सताती है,
सुनने की बात पर
बोल पड़ते हैं पति,
सहमती सहानुभूति
की जगह
देते हैं जब
सलाह,
सलाखों पे चढ़ते हैं
रोस्ट होते हैं।
ये
क्यूँ
ले आये हो
नवजात को
वृन्दावन?
घर तो लाते,
ब्याह तक तो रुकते,
पिलाएगा कौन
इसे
दूध यहाँ पर,
इसकी छाती
में
दूध
सूखने
तक तो रुकते।
त्यागते
निकालते
घर से
पति के जी चुकने के बाद,
बेटों के
मुँह मोड़ने
तक तो रुकते।
शुक्र है
कागज़ के हैं
नोट,
खर्च
सकता हूँ
इन्हें
बेझिझक,
खरीदने
ज़िन्दगी के
पॉपकॉर्न,
कहीं
अशर्फ़ियों से
होते
तो
तकलीफ़
होती।
कहाँ से
बदलूँ
तेरी ज़िन्दगी,
कहाँ से
हस्तक्षेप करूँ!
गिड़गिड़ा मत
साफ़ साफ़ बता,
उठा अपनी
ज़िम्मेदारी
का
कोयला,
कहीं
लकीर तो
लगा।
वक्त
बच्चों में
छिपे
बूढ़ों को
ढूँढ़
निकालता रहा,
मिट्टी
बदल बदल
उन्हें
नया
बनाती रही,
तोहफ़ों
में
क्या था,
कुदरत को
पता था,
फिर भी
रोमांचित हो
खोलती रही,
हैरानगी
जताती रही।
होने
तो दे!
आने
तो दे!
बिगड़ने
तो दे!
विचलित
खौफज़दा
मानव!
डर लेना,
पर
उसे
जी भर के
अभी
डराने तो दे!
जा
क़ुबूल है
तेरा
वो बाग
जिससे
तू
फूल
लाया है,
काँटों की
छोड़,
तुझे
परखने को
इन्हें
मैंने ही
बिछाया है।
हो गई है
तेरे
पसीने की
बाल्टी
खाली,
चल उठा
खुद को
घर ले जा,
भरना
रात भर
फिर
इसे
सपनों की
चाँदनी से,
कल सारा दिन
फिर
मेरे सूरज
को
भरना।
बीघों में
थे
जो
खेत
गाँव में,
तीसरी मंज़िल
के फ्लैट
की
बालकोनी
के
गमले में
सिमट गए हैं,
बेच आया हूँ
ज़मीनें,
अब
हर सुबह
गमले में
नज़रों के
चलाता हूँ
हल,
किसान का बेटा हूँ,
पीछे छोड़
गाँव
शहर आया हूँ।
चोर
आ घुसे हैं
तेरे घर
तुझे
पता भी है?
बाहर
बालकोनी
में
बैठे हैं
तेरे
गमलों में
सुबह के
कबूतर बनकर,
बिन पूछे
दाना चुगते हैं।
20 रूपये ही
गालिबन
बचे होंगे
उसके
लिफ़्ट लेकर,
उतरते वक्त
इतनी बड़ी
मुस्कुराहट
वाली
धन्यवाद देकर
2000 की
लिफ़्ट
करा गया।
कहते हैं
देता है खर्च
उर्जा
कैलोरीज़ हज़ारों
घंटों में चंद
खिलाड़ी
शतरंज का,
कर देती हो
खर्च
तुम
उर्जा कितनी,
सोचते
क्या क्या,
सुबह से शाम
बैठेे
अकेले
दिन सारा,
ओ गृहणी!
ये जो
तुम्हारी
नाभी में
एक
गाँठ है,
इसमें
दबी
बंधी
छिपी
सूखी
कहीं
आज भी
तुम्हारे
जनम
की
दास्तान है।
ये तो
घोर
नाइंसाफ़ी है,
पाप है!
कैसे
कर सकते हैं
आप
गरीबों की
क़ुरबानी
निरस्त,
लूट कर
उनसे लूटा पैसा
राजकुमार से!
नहीं जानता
वो
कौन सी
बसें थीं
जिन्होनें
राहगीरों को
कुचला,
बस
इतना
देख पाया
कि
दोनों के
पिछले शीशों पर
क्रमशः
चाँद और स्वास्तिक
बने थे,
एक दूसरे से
आगे
निकलने की
होड़ में थीं।
लो
आ गया
वो
कल
जिसके
इंतज़ार में
तुम थे
बावले,
अब बताओ
क्या था
इरादा,
या कह दूँ
उसे
कल ही की
तरह
कल आना!
कहाँ हैं
वो
ज़मींदार
बुलाओ
उनको,
खाते हैं
हवेलियों की
चारपाइयों पर
आज
सभी,
जिन्हें मनाही थी,
कहो उनसे,
मिट्टी से जगाओ,
दिखाओ उनको।
लगी है
शताब्दी एक
मिटाने में
समाज से
सामंतवाद,
एक और
लगेगी अभी
निकालने में
घरों से
जहाँ
जा छुपा था,
दीमागों से
निकालने में
अभी वक्त
लगेगा।
भेड़ों
को कब था
इनकार
उससे
जो
ज़रूरी था
करना,
बस चाहती थीं
एक बार
कोई
कर के दिखा दे,
डंडा
तो
हिलाये
आँखों के सामने,
रखे
गद्दी कुत्ता
एक
अगल बगल,
इजाज़त
तो दे।
कोई कोई
घड़ी
बनती ही है
किसी
कलाई
ख़ास
के लिए,
पकड़ ही
लेती है
जिसे
कस कर,
सम्भालने
उम्र भर
के लिए।
मचल कर
शायद
ले रही हो
करवट
वो
काग़ज़ की
टिकट
किसी मिट्टी में,
जिस पर
लिखा था कभी
वो शेर
जो अभी
याद आया,
शेर
को तो है
बखूबी याद
वो
सफ़र
जो
उसने
करवाया!
बड़ी
ज़हानत से
पड़ता है
करना
अदा,
जल्लाद को
अपना
फ़र्ज़,
ज़रा सी
हो चूक
सम्भालने में
ख़ुद को
तो
ख़ुद ही
झूल
जाये।
इतनी
बड़ी
चट्टान
गिराने की
ज़रूरत क्या थी,
कह देते,
कर देता
बंद,
चाय की
खोखली
बस स्टैंड के पास,
पतीली
स्टोव
कप
और
चटाई के नीचे रखे
छुट्टे
तो
उठाने
देते।
क्राँति मैदान में
आ गई
यकदम
जो
मूसलाधार
बारिश,
भाग कर
शामियानों
में घुस गई
भीड़,
आज भी
वहीँ
सीना तान
डटे
खड़े
मुस्कुराते
भीगते
रहे
क्रांतिकारियों
के
बुत।
कर ही देंगे
समाप्त,
वक्त से पहले,
यदि कहते हैं आप,
भरोसा है हमें,
पर करेंगे भी क्या
बचाकर वक्त
तीसरे
विश्व युद्ध
के बाद!
हो गया है
होना
शुरू
तबाह
ब्रह्माण्ड
एक
कोने से,
इधर
आ रहा है,
चूँकि
पहुँचने में हैं
अभी
कुछ
प्रकाश वर्ष
और,
उलझ सकते हैं
आप भी
भूमंडलीय
मसलों से
कुछ और।
मेरे ही
कमरे में
हैं
किशोर,
गा रहे हैं
सुन रहा हूँ मैं,
पहले
कब
मिला था
उनसे,
जो
मिलने का
अब
सवाल है,
ज़िन्दा हैं
मेरी
दुनिया में,
कम
इतना क्या
कमाल है!
मेरे दोस्त
तेरी
ठुड्डी
पर
जो
टूथब्रश
सी
दाढ़ी है,
इसके
संरक्षण की
जिम्मेवारी
भी
अब
तुम्हारी है।
फिर
देते हैं
आप को
यौम ए आज़ादी
पर
छुट्टी,
फिर मिला
है
आपको
मौका
दिन भर
सोचने का
ठण्डे दीमाग से
आज़ादी
का
मतलब।
टीवी पर
राष्ट्रगान
सुनकर
एक बार
जो
वो
खड़ा
हो ही गया,
फिर न मातृभूमि
को
कभी
कहीं
अनदेखा
कर
सका।
कौन से
कीड़े ने
काटा है
आपको
जो
आप
स्पाइडरमैन
बने हैं,
सच्चाई की
लड़ाई
लड़ने को
असरदार
तरीके
और
बड़े हैं।
कार
टायर पंक्चर
लगाने वाले से
मैंने
पूछ ही लिया
"आप
ज़मीर का
पंक्चर भी
लगाते हैं?"
उसने भी
उधार न रखा
और
तपाक बोला
"साब!
नीयत की टयूब
वालों
का तो
लगाता हूँ,
ट्यूबलेस का
अभी
औज़ार नहीं है।
रख
अपने पास
अपने कमाये पैसे
मेरे बच्चे!
पकड़ इन्हें
मुट्ठी में,
कर महसूस
इनकी गर्माइश,
तड़प
इसे पाने को,
इसके गुम जाने पे
रो,
एहसास कर
इसकी नज़दीकी
से आए आत्मविश्वास का,
पहचान इसके
होने का
सुकून,
न होने का
दर्द,
सुन
ध्यान से
इसक वादे,
वादाखिलाफ़ियों
के सदमों
को
जी,
परख
इसकी ताकत,
इसकी
बेबसी को झेल,
चढ़ने दे
इसका
नशा,
फिर
उसके उतरने का
तुजुर्बा ले,
होने दे
ख़ुद को
उत्तेजित
इसकी खुशबू से,
कर समर्पित
ख़ुद को,
फिर
इससे वापिस ले,
डूब के
उभर
इस सागर
से,
इसके
आसमान में
उड़,
रख
अपने पास
अपने कमाये पैसे
मेरे बच्चे,
मुझे
न दे।
गल्ले
पर
बैठे
भैयाजी
के बेटे को
अभी तो
हफ़्ता ही
हुआ था,
व्यापार का
डिप्लोमा
हो गया,
पूरा
यकीन था
भैयाजी को,
एक
महीने में
कर लेगा
एम बी ऐ
उनका
होनहार
बेटा,
व्यापार को
बढ़ाएगा।
ग़ज़ल
की
तर
आवाज़
जो बहकर
उतर जाने दी
रोम रोम
के रास्ते
ज़हन में,
फिसलने
लगीं
उलझनों की
कसी
रेशमी रस्सियाँ,
गाँठें सब
खुलने लगीं।
मोहल्ले
के
बच्चों
को
बरसों से
डराता था
जो
कुछ
ज़्यादा ही,
गले के
क्षय रोग
से
आज
मर गया,
छोड़
भौंकने
मालिक को
अकेला।
जिस
कर्ज़ को
न उतार पाने
के दर्द से
हम
ताउम्र
उस
गली
न गए,
कोई
कब का
कर चुका था
वो गली
हमारे नाम
अता कर
सब
कर्ज़।
आवाज़ ही
सुनी है
हमेशा,
कभी
देखा
क्यों
नहीं?
मुझे
शक
है
पूरा,
ऐ बशर,
ज़रा
देख तो,
कहीं
ख़ुदा
तेरे अन्दर
तो नहीं!
बख्शा
नहीं था
ख़ुदा ने
हुस्न
जो
आपको
मिला है,
आप
आप
बने
हैं
इत्तेफ़ाकन
जब
ये आपको
मिला है,
अब
कहें
आप
कुछ
तारीफ़ में
अपनी,
क्या
क्या
आपको
ख़ुद से
मिला है!
झिझक मत
मेरे बच्चे,
छुट्टियाँ क्या
खुशियाँ
सेहत
परिवार
नींद
आज़ादी भी,
जो कहेगा
वो सब
कर दूँगा
अपने
प्यारे
के लिए
एनकैश,
बस
कह
तो
सही,
झिझक
मत।
लगा
तो
दीजिये
भगवन
पार
मेरी
नइया,
बस
खेने दीजिये
मुझे
ऐसे ही
इसी तरफ़,
किनारा ही
कृपया
इधर,
मेरे सामने
ले आइये।
ज़हनी
जंगल
के
माहौल ने
डस
लिया,
हालात के
साँपों में
कहाँ
इतना
ज़हर था,
चारों
ओर से
खुले थे
मुक्ति
के दरवाज़े,
मैं ही
कहीं
अन्दर से
बंद था।
माज़ी
की आवाज़ें
आती हैं
आज भी
जब जब
देनें
दस्तक
मुस्तकबिल के
दरवाज़े,
इसी डर से
नहीं
खोलता
वो
कि
कहीं
बीत
न जाए।
खड़ा हूँ
उस कल
की
छत पर
जिससे
बीता आज
डरता था,
ऊपर खड़ा
मुंडेर से
हिलाता हूँ
हाथ
ज़ोर ज़ोर से
नीचे खड़े
अतीत को,
बताने
कि कुछ नहीं है
ऊपर
जिससे
वो
डरता था।
जेल है
या
लाइब्रेरी!
बंद हैं
सैकड़ों
जीवंत
उपन्यास,
जिन्हें
पढ़नें
को है
मनाही
बाहर वालों को।
आधी रात
जंगल में से
गाड़ी चलाते
डर दबाने
ज़ोर ज़ोर से
जो
मैंने
स्टीरियो पर
गाने
बजाए,
पीछे
रियर व्यू मिरर में
भूतों पिशाचों
का
खुशी में
नाचनें का
देखा
जो मंज़र,
उतर ही
गया
रोक
गाड़ी
और
उनमें
जा मिला।
तुझे
समझकर
डाला है
मैंने
मुहँ में
चावल दाल
का
एक एक
दाना,
मेरे
मालिक
कहीं
मैंने
तुझे
जूठा
तो नहीं
कर दिया?
मत
पूछो
उम्र
मेरी,
अभी
जन्मा
नहीं हूँ
मैं,
अभी तो
हूँ
छटपटाता
छूटनें
पिछले
जन्म से,
मुक्त
नहीं हूँ
मैं।
वो
सामने,
जाती है,
दफ़्तर,
बाबुओं
की फ़ौज,
उठाये
टिफ़िन,
या हैं
टिफ़िन,
जाते
लगाने
हाज़री,
खींचते
हैंडल से,
अपने अपने
बाबू।
आपका
बहा है
इस सरकारी
ईमारत
के
निर्माण में
खून
पसीना
तो
कुछ
मेरा भी तो
योगदान है,
इसके
हर
बिल
के
भुक्तान में
प्रतिशत
दो प्रतिशत
मेरा भी तो
महादान है।
बे
शुमार
लोगों
में
तू भी तो
शुमार है,
सब के सब
हैं
गर
अपनी अपनी
होश
में
गुम
तुझे भी तो
ख़ुद ही का
ख़ुमार है।
बहुत
शुक्रिया
आपका
कि
रखते हैं
देर रात तक
खुली
आप
जंक फ़ूड की
अपनी
दूकान,
सुबह
देर से
खोलते हैं
इसीलिए,
मानवता
एक वक्त तो
घर का
खाती है।