Tuesday, September 30, 2014

सेवा

सेवा
तो
कुछ कम
नहीं की
आपने
इस मुल्क
इस  सभ्यता
इस भाषा की,
जैसा
दावा है
अनकहा आपका,

इतने
महंगे
में न की होती
तो
महामहिम
ख़ुशी
अनकही
होती।

ज़िद

बड़ा
सताया
ज़िद की
ज़िद नें,

जब
हम
माने
तब
मान गयी!

तकलीफ़

तकलीफ़
सी
होती है
उस
शख्स़
के
मुखालिफ़
होके,

जैसे
रूठ सी
जाती है
ज़िन्दगी
बीमार
होके।

बरसात

सुन सुन के
दुनिया
की
खुशनसीबी
वो
शख्स़
कब का
सूख
गया,

एक
दरख़्त सा
खड़ा है
गढ़ाये
वजूद की ज़मीन में
प्यासी जड़ों के
हज़ार हाथ,

अपने
सर की
बरसात
कब से
भूल
गया।

ठीक से

बहुत दूर
छोटा सा
तो है,

उपग्रह
से कहो
ठीक से
देख ले
जा कर
करीब,
दोबारा,

कहीं
मंगल
की जगह
शनि
न हो।

Monday, September 29, 2014

एहसास


छू ले
मेरा हाथ
कुछ भी
बनके,

दे
मुझे
होने
का एहसास
कुछ भी
करके।

प्रीति भोज

खुश है
कितना
किस्मत पर,
पढ़कर
प्रीति भोज
का
निमंत्रण पत्र,
वो बकरा,

कोई
समझाए
तो ज़रा
भोले को
नसीब
उसका।

ऊँचाइयाँ

ऊँचाइयों
से
लगता रहा
डर,
ताउम्र
चढ़
न पाये,

वक्त ने
ऊपर से
गहराइयों
को
दिखाया
तो
लपक
चढ़
आये!

बत्ती

पलक
झपकते ही
कर दी है
सुबह,

ईश्वर,
तूने
धरती भी
घुमाई है
या
सूरज की
सिर्फ़
बत्ती
जलाई है!

शायद

चोटी पर
पहुँचे हो
जा
क़दमों पर
चल कर,
ज़रा हाथ
तो
उठाओ,

तुम्हारा
है वक्त
शायद
आसमां
भी
छू लो।

Sunday, September 28, 2014

दम

नीचे आने का
अब मन नहीं है,
ऊपर जाने को
आसमान नहीं है,
रहने दो मुझे अब
इस परबत की चोटी पर,
दम घुटने का जहाँ
सामान नहीं है!

Saturday, September 27, 2014

पता

तेरे
संगीत से
तेरे
ज़हन का
पता मिला है,

अफ़सोस
तेरा जिस्म
तेरी रूह
अब
साथ
नहीं
रहते।

दवा

ठहरे
पानी को
फाड़
दवा करने की
फिटकड़ी सी
थी वो,

न आती
कड़वाहट बन
जबरन
वो
हमारे तालाब
तो
दलदल होते।

हाथ

कीड़े
मकौड़े
सा है,
भिनभिना
और
गुज़र जा,

या
याद कर
तू है
भंवरा,

फूलों के
पराग को
नियती
से मिला,

कायनात
के
निज़ाम में
कुछ
हाथ बंटा।

स्याही

किसे
था
पता
स्याही
के सीने में
इतना
नूर है,

जिसकी
दवात में हैं
हज़ारों सूरज,
उस
आसमान का
कोई
राज़
ज़रूर है!

हर बार

हर वार को
ज़िन्दगी से
वारा
तो
ऐतवार
मिला,

ख़ुदी पे
होता
जो
ऐतबार
तो
ख़ुद ही का
हर बार
होता!

ज़ायका

क्या
करूँ
ख़र्च
चौबीस में
एक भी
अशर्फ़ी,
मनोरंजन
के
प्यालों पे,
भटकन
की
हाटों में,

भरा है
पेट
सुकून से,
वजूद की
ज़ुबान पर
ज़ायका
कमाल है!

ज़िन्दा

ज़िन्दा है
तू
तो
मरा सा
क्यों है?

कुछ
कर
तो सही
कि
मर के भी
जिये!

साँस

जिंदा
हो
तुम
अभी,
जानता हूँ
मैं,

मेरी
आस
की
साँस
चलती
है
अभी!

फ़ैसला

इस
लम्हे को
कैसे
गुज़ारेगा
ये
बता,

करूँ
जो
फ़ैसला
कि तुम्हें
और
दूँ न दूँ।

रंजो रश्क़

रंजो रश्क़
यही
सोच कर
मुझसे
नहीं होता,

अपनी अपनी
कयामातों के
अपने अपने
वसीले* हैं।         (*बहाने, ज़रिये)

Friday, September 26, 2014

पोटली

उठ
जाग,
निकल बाहर
कब्र से,

देख
तुझे
मिलने
एक
तारीख़
आई है,

लाई है
पका
हाथों से अपने
आरज़ुएँ
तेरी मनपसंद,
और
छुपा
उसी पोटली में
कुछ
ताक़ीद
लाई है।

Thursday, September 25, 2014

मुराद

भूख
भी
जगाते हो
ज़ालिम,
खाने को
देते भी
ज़हर हो,

इक
हमीं
नामुराद हैं
जो
मुराद
अभी
बाक़ी है।

गरीब

है
दुनिया
बहुत अमीर
जानता हूँ
मगर,

कुछ है
मेरे भी
पास
जो
गरीब
नहीं हूँ
मैं!

आस

आस
की
खुलती
पंखुड़ियों को
दामन
समझ
लिया होगा,

पिता
से
अभी तो
मैंने
कुछ
माँगा
भी न था।

गुमान

छोटी
बड़ी का
किसी को
गुमान
न था,

बाकि
बची
सभी को
कटी उंगली
का
रही उम्र
मलाल था।

इलाज

अगली
उदासी
के लिए
हमनें
इलाज
करीब
रखा है,

कौन
उदासी
की
ज़द में
उदास घूमे?

पैर

लो
उठ गए
पैर
ज़मीन से
आसमान में
फिर से,

देखें
किस
जन्नत
की
दोज़ख़ में
अब
मुस्तकबिल
गिरे।

Wednesday, September 24, 2014

वो शख्स़

आप
जिन्हें
आये हैं
मिलने,
वो
अब
यहाँ
नहीं
रहते,

होगी
ज़रूर मिलती
सूरत
हमसे
उनकी,
आवाज़ भी,
गर कहते हैं
आप,
हमारी
ही सी होगी,

पर
मुद्दतों
उस शख्स़ से
अब
मिले
नहीं हैं
हम।

Tuesday, September 23, 2014

सवाल

नहीं
मेरे पास
कोई
जवाब,
सवाल न पूछ,

हो सके
तो
पास बैठ,
ख़ामोशी से
देख
मेरे माज़ी
की
उतरती
लहरें!

जन्मदिन

कुछ है भी
फ़र्क
पिछले
और
अब में?

या
इस
जन्मदिन भी
बशर
आदमी का
आदमी है!

अकेले

एक दिन
तो
बिता
अकेले
कि
ख़ुद से
मिले,

ख़ुदाओं
की
गिरफ़्त
से
निकले,
नाख़ुदा
से मिले।

उत्सव

थिरकता है
तुम्हारा
जो
जिस्म,
क्या
भीतर भी
झूमता है?

रूह भी
क्या है
शरीक़
शरीर
के
उत्सव में?

Sunday, September 21, 2014

वादा

बाँध
रखा है
रिवटों से
चारों
शेरों को
हुक्मरान नें
अपनें
रथ
के पायों से,

वर्ना
याद है
अभी
इन्साफ़
के
प्रहरियों को
सैंतालिस का वादा।

मुफ़्त

सुला दो
साथ मेरे
एक और
इन्सां,
जगह
है यहाँ,

अब
कहाँ कहाँ
भटकोगे
ढूँढ़नें
कीमती
जहान में
मुफ़्त की
कब्र।

वसीयत

मत दफ़नाओ
मुझे
शहर से दूर
वीराने में,

छोड़ा है
वसीयत में
एक हिस्सा
शहर की
ज़मीन का
इसी वास्ते
मैंने।

शुक्रिया

ईश्वर,
यहाँ तक
लाने
के लिए
शुक्रिया,

यहाँ तक
साथ
आने
के
लिए
शुक्रिया।

Saturday, September 20, 2014

रास्ते

वहीं
पहुँच
गए
जहाँ से
चले थे,

हम
रास्तों के,
रास्ते
हमारे
सहारे
निकले!

अमरूद

कहीं से
आई है
कच्चे
अमरूदों
की
खुश्बू,

आज
फिर
पेड़ों से
उल्टे
लटकते
शरीर बचपन
की
याद
आई है...

याद

किसका
रेखाचित्र
बनाते हो
आसमान में,

बदलो,
किसकी
याद में
आँसू
बहाने
लाए हो...

अकेला

अकेला
आसमान
तलाशती
है
बिजली
कड़कनें
के लिए,

बुला
लेती है
साथ
भरा
उदास बादल
बरसनें
के लिए...

अलविदा

जाते
हो
तो
चलो
आपको
अलविदा
कहें,

जो
आयें
आप
आइन्दा,
तो
तबीयत
से जीयें।

शाम

यूँ ही
नहीं
ढलती
शाम,
चिराग
नहीं
जलते,

सूरज
झुकाना
पड़ता है,
चाँद
मनाना
पड़ता है।

बेताबी

तेरी
आँखें
नहीं
अब
झील सी,


तेरे बाल
अब
घटाओं
से हैं,


अब
हूँ
बेताब
मैं
तेरे लिए
उस
कदर,


तुझमें,
ऐ ज़िन्दगी,
मेरे लिए
उस जैसी
बेताबी है।

मंज़र

तेरे
लिए
नहीं हैं बशर
बाग़ ए फ़िरदौस
के
नज़ारे,

सफ़र ए जद्दोजहद
के
मंज़र
तू
देख,
बैठ
उम्र ए दराज़
के किनारे।

ज़हीन

कूकती हो
राजमार्गों
के
जंगलों में,
कितनी
ज़हीन हो,

महलों
के
वाज़ीफ़ों
पे
तो
कई हैं,
यहाँ
कौन है!

शुबा

लोहे को
लगना है
ज़ंग,
उसे
पता है,

हमने
है
जाना
मिट्टी में,
पर
शुबा है।

इख्तियार

संयोग
की
बात है
कि
तुम
इंसान हो,
वो
गाय,

वर्ना
किसके
इख्तियार
की
बात है
कौन
कैसे
आए।

मोड़

चल
मुड़ जा,
मोड़
आया
है,

बिछड़ी
तक़दीर का
संजोग
आया
है।

पत्थर

पत्थरों
में
पड़े हो
पत्थर
बनकर,

न रोकते
संगतराश
के
हाथ
तो
ख़ुदा
होते।

मजबूर

ज़मीनी
हक़ीकत
ने
उतरने को
मजबूर
कर दिया,

पंख
वालों को
आसमान
की
क्या
कमीं थी।

भूत

रोज़
लौटता हूँ
भूत में,

शहर
से
गाँव,

देखने
उसी
खोए
इंसान का
भूत।

Friday, September 19, 2014

ऊँची

आज
लगती है
जो
आसमान
से
ऊँची,
चाँद
से
देखोगे
तो
ज़मीन पर
दिखेगी।

असर

साँप
का
सूँघ जाना
उस के
काटने
से बेहतर,

मज़ा
मौत का सा,
असर
ख़ुमार का।

Thursday, September 18, 2014

महफ़िल

यही
सोच कर
हम
महफ़िल से
चले आए,

शायद
कद्रदानों
की
जेब में
दाद
भी
न हो...

ज़ोर

बहुत
मुमकिन है
हो
जाये
कभी
ज़ोर
उसका
तमाम,

कुछ
बचे
भी तो
पीछे
हमारी
तौबा
के लिए...

Wednesday, September 17, 2014

तन्त्र

स्वामी
सेवक
समक्ष
खड़ा
करबद्ध,
क्या नज़ारा है,

जनतंत्र
के हिजाब में
वाह
क्या
तंत्र
तुम्हारा है!

ज़िद

अपनी
समझ से
उसे
समझनें
की
ज़िद थी
हमारी,

ख़ुद की
समझ से
वो
शख्स़
बेहतरीन था।

सोच

जिसकी
जितनी
सोच
उतना
सोच गया,

बाक़ी
छोड़
गया
समझनें
को
उनको
जिन्हें
समझ थी।

गूँज

मुँह में
न जाने
वो
क्या
बोल गए,

सहमे
ज़हन में
न जाने
क्या क्या
गूँज गया।

जहाज़

किस्मत
का
जहाज़
कहीं
छूट
न जाए,

इस
डर
से
हम
कब से
आसमान ओ
तदबीर
से उतरे हैं!

इंतज़ार

पता
था
हमें
ज़्यादा
रूठ
न पायेंगे,

आपके
मनाने
का
इंतज़ार न किया,
मान गए।

ज़ोर

चलती थी
दुनिया
अपने ही
ज़ोर से,

हम
बेवजह
पसीने पसीने
होते रहे।

व्यापार

बहुत
हुआ
व्यापार
मुनाफ़ा
बहुत
हुआ,

चल
लौट जा
अपने
घर
तमाशा
बहुत हुआ।

Monday, September 15, 2014

सफ़र

परसों
के
इरादे का
आज पर
असर है,

आज के
पैरों में
बरसों का
सफ़र है।

आहट

सुनाओ
कोई आवाज़
जो
उतरे
भीतर
बिन इजाज़त,

बीन डाले
यादें
सारी,
कर
सब
उथल पुथल,

निकाले
ढूँढ़
वो
इक
आह
जो
छुपी है
कहीं
बिन
आहट!

क्यों

किया है
इस तरह
उसने
मुझे
सलाम
आखिर क्यों?

जानता है
क्या
बारे में मेरे,
है
बेतकल्लुफ़
जो
मुझसे यूँ!

इससे
बेहतर
कि
अनदेखा
करे मुझे,
पहचानता
नहीं मुझे,
अजनबी ज्यों।

तमाशा

ये क्या
तमाशा सी
है दुनिया,
तमाशाई
बना हूँ मैं,

होती है
ज़ाया
किसके लिए,
ज़रिया
बना हूँ मैं।

Sunday, September 14, 2014

वज़न

वैसे
तो
वज़न
कुछ
ख़ास
नहीं मेरा,

सोच
का
भार है
जो
पैर
ज़मीन पर
हैं।

संगीत

सन्नाटे
में
ये
शोर
कैसा,

मूक
बधिरों
का इशारों
में
संगीत
कैसा!

निकाह

देह
का देह से
पढ़वाते हो
निकाह,

रूह का
रूह से
करते
तो
शरीक़
होता।

बाजरा

तापने को आग
चूल्हे से
ले आये हो
बाहर,

उस
रोटी
का
बाजरा
सारा
बाहर
पड़ा है,
बिना
गूँधे
कहीं
जल
न जाये।

पानी और भाप

किसी ने
आग,
किसी ने
मिट्टी चुनी,

कोई
पानी में
रिसा,
कोई
भाप
बन
उड़ा!

छल्ले

२५६
छल्ले
क़िस्मत के

थे तैयार

सड़क किनारे

आज़माने
क़िस्मत को अपनी

बिक कर
मेरे हाथों

चलने को
साथ मेरे,

एक
मेरी
ऊँगली
की ज़िद थी
कि
पहनेगी
बना कर
ख़ुद ही
गर पहनेगी।

Saturday, September 13, 2014

उम्र


तेरी
सोच
की रीढ़
में
अब
वो
लोच नहीं है,

तेरी
उम्र
जो
हो सो हो
बशर,
अब
तू
हरगिज़
जवान
नहीं
है!

घुंघरू

स्याही
के घुंघरुओं
को बाँध
जब
थिरकते हैं
काग़ज़ पर
कलम के
पैर,

कहाँ कहाँ
से
खिंचे
आते हैं
हर्फ़ों
के
घुटे
सामयीं,                  (audience)
हवा में
खुल कर
जज़बात
लुटाते हैं।

तूफ़ान

आया था
तूफ़ान
गुज़र
गया,

समझाया
बहुत
कि
ग़म न कर
रुक जा,
पर
चला गया!

इन दिनों

कुछ
ख़ास
नहीं है
करने को
इन दिनों,

मौत से
है
कहा सुनी,
ज़िन्दगी
से
प्यार,
इन दिनों।

दम

क्यों
बेवजह
भरता है दम,
बेदम
होता है,

जानता है
जब
हमदम
की
हक़ीकत,
क्यों
बेक़रार
हरदम
होता है!

याद

होंगे
शायद
आबाद
कहीं
वो
ज़रूर,

शायद
अभी
हों
मसरूफ़,
हम
याद
न हों!

आरज़ू

बड़ा
बरगलाया
दिल की
आरज़ू
ने
हमें,

एक
पुरानी
टीस की
चुभन नें
संभाले
रखा।

इनायत

बड़ी
इनायत
कि आपने
ऐसा
किया,
ज़रा
आसान है
अब
आप पे
बे ऐतबार
करना!

ज़रा

जा
तू भी
ज़रा
ज़िन्दगी
घूम आ,

फिर
न कहना
आया था
और
कुछ
देखा नहीं!

Friday, September 12, 2014

सुकून

लिखा
नहीं था
कुछ भी
कुछ दिनों से,

हम
कुछ दिनों से
किसी
तूफ़ान
के
सुकून में थे।

इजाज़त

लेने
दुनिया
से
इजाज़त
खड़े हैं
कब से
यहाँ,

दुनिया
बे इजाज़त
जाने
कब से
कहाँ है!

Tuesday, September 9, 2014

दरख़्त

उठाये
फिरता हूँ
सलीब सा
अपने
वजूद का
दरख़्त,

ज़मीन
ही
ज़मीन है
हर जगह,
जड़ें
नहीं हैं।

तुरंत

तुरंत
की
तलाश में
रहे
वो
निरंतर,

एक बार
का
कड़वा
घूँट
उनसे

हुआ।

रास्ते

कहाँ कहाँ
से
कौन कौन सा
रास्ता
निकला,

एक
मंज़िल
की
तलाश में
हम
कहाँ कहाँ
पहुँचे!

Monday, September 8, 2014

परत

मत
छेड़ो
मुस्कुराहट
की परत
अभी
ज़ख्म
हरा है,

अभी
रोने की
तबीयत
है बाक़ी
दिल
भरा है!

भाव

इतना
भी
न बिक
कि तेरा
भाव गिर जाए,

कुछ तो
कर
ख़्याल
अपनी हस्ती का
कहीं
बनाते मिट न जाए।

याद

क्या बात है?

बड़ी
याद आ रही है
गाँव के
खेतों की?

देखते हो
अर्श की
छत को
सीली पुतलियों से!

कहूँ
आसमान से
कि न चलाये
हवा के हल
बादलों पे,
यूँ
क्यारियाँ सी
न बनाये!

Friday, September 5, 2014

डर

क्यों
डरता है
व्यर्थ
अनहोनी से,

तेरे
चाहने से
कहाँ
आज तक
कुछ
हुआ है!

अमीर

बिना
उधार
उसने
अपनी
मैय्यत
का
इंतज़ाम
कर लिया,
आज
वो
शख्स़
तबीयत से
अमीर
हो गया।

उम्र

माँ
के
पीछे
बच्चे
जल्दी
बड़े
हो गए,

किसकी
उम्र
किन्हें
लग गई।

इंतज़ार

मैं तो
आई थी
मिलने,

तुम्हीं से
तक़दीर का
इंतज़ार
न हुआ।

इनकार

बदल दोगे
मेरा चेहरा
हौले हौले,
पता है
मुझे,

पहचानने से
मुझे
मगर
कैसे
इनकार
करोगे।

जानवर

घोड़े को
होता
इल्म
कि
कमाता है
उसका मालिक
करवा कर
उससे काम,
तो
माँगता
अपना हिस्सा।

उसकी
समझ में तो
था वो
किसी
ताकतवर
जानवर
के गिरफ़्त में
जो देता था
खाना।

सीधा प्रसारण

बैठा हूँ
सबके बीच,
ठीक जगह,
पूजा में लीन,
कैमरे के
बिलकुल
सामने,

शायद
हो
देखता,
ईश्वर,
सीधा प्रसारण,
लगाये
मेरी
हाज़री।

चलाना

टूटे
ज़ख़्मी
हाथ से
कैसे
आप
चलायेंगे
मोबाइल?
मैंने
पूछा,

बेबसों
का
बेतकल्लुफ़ी
से
जवाब आया
- उसी ने
चलाना है
हमको,
हमने
क्या
चलाना है!

सब

इन
सब
इंसानों
का
मैं
क्या करूँ?

सब
के
सब
हैं
अपनी
ज़द
में
क़ैद...

चाँदनी चौक

आज भी
सजता है
चाँदनी चौक
अकबर
के बिना,

इंसान
तेरे
बाज़ार
तेरे बाद
भी
लगेंगे।

कान

करवा लो
बेशक
नुक्कड़
के
सलीम से
कान
साफ़,

सुनकर
भी
जो
न पहुँची
ज़हन तक
अज़ान
किसे
इल्ज़ाम
दोगे?

फल

फलों
की
टोकरियों
के बीच
बैठते
बेचते
हो,

ख़ुद भी
खाते हो
बच्चे!
या
सिर्फ़
बचपन
बेचते हो।

आवाज़

ज़रा
झुककर
डाल
दीजिए
भिखारी
के
कमण्डल में
सिक्का,

इतनी तो
रकम
नहीं
दी
आपने
जितनी
आवाज़
हुई है।

शिक्षक

हम
में
जीते हैं
हमारे
शिक्षक,

वो
जो
थे,
और
वो
जो
हो
न सके।

हिसाब

अब
क्या
करूँ
आपसे
मैं
हिसाब किताब,

बेहिसाब
से
क्या
घट
जाएगा!

Thursday, September 4, 2014

ऊन

इतनी दूर
आकर
भी
जब
न दिखी
मंज़िल,

गुरु ने
पीछे
नपे
हज़ारों मील
रास्ते
को
ऊन
की तरह
लपेटकर
कहा
- यही तो है!

तथास्तु

गर
इसी में
है
तेरी
ख़ुशी
तो
तथास्तु,

वैसे
बहुत कुछ
सोचा
रखा है
तेरे लिए,
बता तू।

गुरु

कभी नक्षत्र
कभी चाँद
कभी सूरज बन
करते हो
रास्ता
मुझे इंगित,
धुरी
मुझ
नभचर की
बनते हो,

गुरु
क्यों
रुके हो
मेरे लिए,
क्यों
छूटता ब्रह्माण्ड अपना
मेरे लिए
खोते हो!

बीज

देह
की मिट्टी में
जब भी
दिख
सुन
उतर
जाते हैं

उड़ते
भटकते
ख़्यालों के
बीज

स्वतः
उग आते हैं
वक्त की
बूँदें पी
ऊँचे
यतीम
जंगली
पेड़।

जज़बातों से
तर बतर,
मेरे अन्दर
एक घना
वर्षावन है।

Wednesday, September 3, 2014

लारा

कोई
हसीन
झूठा
मुस्तकबिल का
लारा
न हो,

ऐसा
सच्चा,
या इलाही,
ज़िन्दगी का
नज़ारा
न हो।

प्रीपेड

प्रीपेड
हैं
साँसें,
बैलेंस
पता नहीं है,

किसी दिन
जो
हो जाऊँ
नौट रीचेबल
समझना
पैक
ख़त्म
हो गया।

नुमाइश

मैं
आया था
देखने
अमीर ए दुनिया
जो
नुमाइश पे था,
मुफ़लिसी
देखी
जो उसकी
तो
दुआ
दे आया!

रूह

चेहरे को
ज़रा
ढक,
झाँकती
है
तेरी रूह,

कहीं
देख न ले
जो
देखता है
तू।

ज़मीन

दिया था
सिर्फ़
आप ही को
हिमालय
दुनिया में,

यूँ
रख देंगे
उसे
ज़मीन पर
आप,
सोचा न था।

Tuesday, September 2, 2014

घोड़ा

सवार हैं
घोड़े पर
आप,
समझता हूँ
आपकी
मजबूरी,

घोड़ा
आपका
मजबूर नहीं
चूँकि
उसी को
समझा देखता हूँ,

शायद
दिख जाए
उसे
वो
खाई
जहाँ
लिए जाते हैं
उसे
आप!

अपने

सूट
सलवार
उसके थे
ज़रूर
माँग कर
पहने
हुए,

चुन्नी
बारहा
उस ग़रीब की
अपनी
थी।

इंसाफ़

कमाल के
इन्साफ़गो
हो तुम,

वहीं
करते हो
आबाद
जहाँ
बर्बाद
करते हो!

कलम

इंतज़ार है
हमें भी
सफ़ेद
कलमों का,

स्याह कलम
पे
जब
शबाब आए!

असर

छोड़ी है
ज़ुबान की
कमान से
बात,
बिना
ज़ोर की
प्रत्यंचा
बहुत ज़्यादा
खींचे,

देखें
सच्चाई
के
पंखों से
असर
कहाँ तक
पहुँचे।

वज़न

हम
अकेले ही थे
ज़माने के
उस तरफ़,

शायद
बात में
वज़न था,
जो
तावाज़ुन                  (balance)
न बिगड़ा।

चैन

भरपूर
दुकान सजाओ
कि
ख़रीदने
का
लुत्फ़ आए,

नयन
भर कर
समेटें,
खाली जेब को
चैन आये!

रिमोट

कहता था
पहले
बहुत है
गर्मी
बरसात लाओ
बरसात लाओ,

अब
कहता है
तबाही है ठण्ड
बस करो
सूरज चमकाओ,

कुदरत को
लगता है वक्त
मौसम बदलने में,

तेरी तो
आदतें हैं
ख़राब
रिमोट के
बटन
दबाने से।

बारिश

मुझे
क्या पता था
कि
पॉपकॉर्न
की भाप
का बादल
अभी अभी
निकला है
सड़क
की बगल वाली
दुकान से,

परबत बन
जा टकराया
और
भूख
की बारिश से
भीतर तक
भीग गया

Monday, September 1, 2014

सामान

श्रीमान,
पीछे
सड़क पर
आपका
कुछ
सामान
गिरा है,

जाकर
उठा लीजिए,
अभी
वहीं
पड़ा है,

मुहँ से
गिरा है,
थूक
ही होगा,

गिर गया
होगा,
गिराया
न होगा।