Friday, October 31, 2014

मेकप

मत पहनो
चेहरे पर
मेकप
की
तरह,

ज़रा
बेसलीके से
छुआ
जो किसी ने
तुम्हारा
अहं,
निकल
आओगे।

शेर

होती हैं
शेरों
की
भी
प्रजातियाँ,

शायद
इसी लिए
है
सिंह
के
बाद भी
आपका
कुछ
उपनाम।

Thursday, October 30, 2014

तेरे लिए

पकड़
तो सही
कोई
मौका
कि
लिए तेरे
कुछ
करूँ मैं,

यूँ
बिन
कोशिश
जो दे दूँ
सब,
तो
बाक़ी
फ़रियादिओं
को
क्या
कहूँ मैं?

ज़िन्दा

ज़िन्दा है
तू
अगर
आज भी,
वाज़े है,
पूरी तरह,
गलत
नहीं था,

नहीं हुई
फ़ना
जो आज तक
दुनिया,
लाज़मी नहीं
मुसलसल
सही थी।

Wednesday, October 29, 2014

सात रूपये

सुबह सुबह
आई है
बेटी
किराने
की दुकान,
कुछ डरी
कुछ घबराई है,

लाई थी
सात रूपये
जो कम,
दूध की
थैली
न काट सकी
तो
पापा की
सिगरटें
डिबिया में
कुछ
कम
करवा
आई है।

मुंशी

लगा ले
मुखौटे
दोहरी
ज़िन्दगी के,
ख़ूब
जी ले,
इजाज़त है
तुझे,

हो
चाह
तो
तिहरी
चौहरी भी
जी ले,
मुझे
मुंशी
रख के।

फ़ायदा

हाँ
जानता हूँ
कि
जानता है
तू,
इसमें
नुक्सान है
तेरा,

ये भी
हूँ
मगर
जानता
लेगा ज़रूर
फ़ायदा
तू
इस
नुक्सान का।

विश्वकर्मा

विश्वकर्मा जी
के
हवाले
अब
इस देह का
जगत,
और
जगत की
देह,

अब
वही
करें
नवीन इन्हें,
जैसे भी...

Tuesday, October 28, 2014

ई कल्याण

बनाया जाए
कोई
एंड्राइड एप्प

जिसमे
बटन दबाते
हो
जाये
ई पशु की
बलि,
चाहे
जितने भी,

और
ई भगवान भी
आयें
सामने
मुस्कुराते
बहुत खुश,
दे तुम्हें
ई आशीर्वाद,

हो तुम्हारा
थोथा
ई दम्भ
शिथिल,
बेज़ुबानों का
तुम्हारे हाथों
ई कल्याण हो।

चाऊमीन

चाऊमीन
खा ही गई
फिर
उस
मज़दूर
की
देहाड़ी,

जिसे
निगल गई,
आज
भी,
जिव्हा,
स्वाद की
मारी।

दुआ

सोया
रह
गया
रही उम्र
वो
नींद में,

यूँ
क़ुबूल
हुई
दुआ
उम्र
बरस
हज़ार की।

Monday, October 27, 2014

ख़ुद

हो जाता
ख़ुद ही
लाज़वाल
जो
ख़ुदी में
वसूक
होता,

अपने
घर ही
रहता,
तेरे दर
क्यूँ
आता।

Sunday, October 26, 2014

रेत

किस
सहरा
की
रेत
किस मुहँ को
ढूँढती
किस लिबास
किस पहाड़
आई!

कहाँ पे
लगी
खजूर
किसने
खाई!

आवाज़

ख़ामोशी से
शुरू
ख़ामोशी पे ही
ख़त्म
हर बात
हुई,
आना पड़ा
आवाज़ को
समझाने
के
लिए।

Saturday, October 25, 2014

बता देना

अगले
जनम में
जी
लूँगा
आगे निकलते
ज़माने
की ज़िन्दगी,

बस
इतना
बता देना
कि
वो
मैं ही
था।

माँ

क्राँति
के
प्रसव से
पैदा होगा
जो युग,

वक्त की
माँ भी
चाहेगी
सुकून से
जिये,
फूले फले!

पीछे

मुड़के
देख
पीछे,
तेरी
पूँछ
नहीं है,

दो
पैरों पर
खड़ा है,
चार
नहीं हैं।

हाथ

छोड़ दे
अब
उस बात को,
कर हाथ
खाली
करने को
कुछ
और भी।

क्राँति

क्राँति
तैयार है
होने
के लिए,

बता
बशर
तेरी
तैयारी
क्या है!

वक्त

मान
न मान
गुज़र ही
जाएगा
वक्त,

अब
तू
बता
गुज़रेगा
या
रहेगा!

लोकशाही

राजधानियों
के
हुक्मरान
बनेंगे
चौराहों के
बुत,

रिआया
कबूतर बन
उनके
सर पर
चढ़ेगी,

बारी बारी से
मिलेगा
ऊँचाईयों
का मौका,

ऐसी
लोक
शाही
तो
यूँ ही
चलेगी!

जूते

पहने
रखें
इस मन्दिर में
जूते
अंदर ले आयें,

बस
मुखौटा
जो हो
पहना
तो
बराहे मेहरबानी
ड्योढ़ी पर
उतार
आयें।

Friday, October 24, 2014

आग

नहीं दिखती
तो क्या,

जला सकती है
ये आग
जो
सुलगाने
को हो,

चुपचाप
पड़े रहो
आग में
उसी
जो ठंडी
तो है।

ईंट

क्या
ढूँढ़ते हो
ईंट,
गारा,
पत्थर,
सरिया,

कहाँ
इनसे
बना हूँ मैं!

फैसलों
ने
बनाया है
मुझे,
चाहे
जिसने भी
लिए।

खिड़की

बंद बुर्के
की
ऊपरी
मंज़िल पर
खुली खिड़की
में
पलक झपकती
ज़िन्दगी को देख
यकीन हुआ
एक
छुपा जहान है
पूरा
अन्दर बसा
हुआ।

मिलन

झुका है
फूलों पर
आस्मां
या
उठ पहुँचे हैं
अर्श तक
फूल,
तस्वीर से
बताना
मुश्किल,

उतरने दो
आस्मां से
मुझे,
ज़मीं से
ज़रा
उठने दो।

बूँद बूँद

फटेगा
एक दिन
जब
भर उमड़ेगा
बाँध,

अभी
भरने दे
बूँद बूँद,
रिस्ता जा...

नोट

कहीं न चला
तो
भगवान के घर
चल ही
जाएगा
फटा
नोट,

उसे
परवाह
नहीं,
उसके
सेवकों की
चलती है
इतनी...

मना

कब
गिरे
पहाड़ की
ढलान पर अटकी
चट्टान
कौन जाने,

कौन
करे
मना
बरसों
ज़िन्दगी को
नीचे
पगडण्डी से
गुज़रना
यहाँ वहाँ।

Thursday, October 23, 2014

पैर

हाथ पैर
मारूँ
या कि
चलाऊँ?

ख़तरे की
घंटी है
या
रोमाँच का
बिगुल?

बगीचे

उड़
आते हैं
बगीचे
तितलियों के
नाज़ुक पंखों पर
पराग बन
मीलों दूर,

कुदरत को
कहाँ
रास्तों की
कमी है!

भड़ास

जाने
कौन कौन सी
भड़ास
निकाल दी
नौजवानों ने
कल रात के
पटाखों में,
जाने
क्या क्या
आएगा
फिर याद
आते दिनों।

ज़मीन

ज़मीन
बताया नहीं
तूने
थी मौजूद
पैरों तले,
ज़रा हौसले से
उचकता
एढ़ियाँ,
आस्मां
ठीक से
पकड़ता।

चार दिन

बिताओ
चार दिन तो
ख़ुदा के संग,
ज़रा
मिलो बरतो
तो
सही,

कौन जाने
तुम
पसंद
न आओ
उसको,
या तुम्हें
वही...

एक दिन

एक दिन
तू
आज
भूल
जायेगा,

जैसे
आज
उस दिन को
तू
भूल
गया है।

दीवाली

ये तो
दीवाली है,
ठीक है,
लक्ष्मी के
आने का है
पर्व,

उस दिन
का भी तो
बताओ
जब
सरस्वती
आती है!

साया

ताउम्र
रहा
मलाल
दे रहा हूँ
पैरों तले
अपना ही
साया,

क़यामत
के दिन
उठा कर
देखा
तो
वहाँ
नहीं था...

दुनिया

सूखे
ज़ख़्म सी
दुनिया,

अन्दर से
हरी,
बाहर से
सख्त़।

Wednesday, October 22, 2014

हमसफ़र

चल
अब उठ
महफ़िल से,
अपनी राह
को बढ़ा,

छोड़ दे
परवानों को
शम्मा की नज़र,
यूँ हर किसी को
हमसफ़र
न बना।

महक

जंगल के
फूल को
कब
किसने
जूड़े में सजाया,
गुलदस्ते में बाँधा,
इत्र में घोला,
ईश पर चढ़ाया?

बाज़ार ओ मीना में
कहाँ
क़ायनात की महक,
किसने बताया?

गुब्बारे

यूँ न
थूको
देखते ही,

शुभकामनाओं
के
गुब्बारों में
ज़रा
दम तो भरो,

लो तो सही
तनिक
गहरी साँसें
छोड़ने से पेश्तर,
इन्हें फुलाओ तो।

हाथी

मदमस्त
हाथी सी
चल रही हो
जो दुनिया,
तुम्हारे
मेहंदी लगे
पाज़ेब जड़े
पैरों तले
क्या क्या
कौन कौन
जाता है
कुचला,
उठाओ तो
नक्शीन घाघरा
अपना,
ज़रा देख तो लो।

महाकुम्भ

कहते थे
मनोचिकित्सक
कि
बाज़ार में
बिकता है
सुकून,
क्षणभंगुर ही सही,

त्योहार को
उपचार का
महाकुम्भ बना दिया,
हाय
दीवाली
तुझे
क्या बना दिया।

आशीष

पूँजी
की खुशियाँ,
पूँजीवाद
का संतोष,
सम्पत्ति
की
शान्ति,
कैसे करूँ
भेंट,

क्या आशीष लाऊँ
आपको
इस दीवाली
ज़ुबान भर,
क्या कहूँ।

शुभकामनायें

पिछली
इस
और
अगली सारी
दीवालियों की
आपको
सुविधा अनुसार
रिवायतन
मनचाही
मनमोहिनी
मनघडंत
मन बहलाऊ
स्वसम्मोहित
शुभकामनायें।

चाहने से ही
सपनों में
मिल जाये
आपको
आपकी
हक़ीकत,
जागना
न पड़े।

मंज़िल

रास्ते में
क्या
खड़ा है
सड़क
की तरह,

क्या
तेरी
कोई
मंज़िल
नहीं,
घर की
तरह?

यजमान

पूजा
संपन्न,
पंडित
गदगद,
भगवान
खुश,
यजमान
बरी।

द्वार

गुरु
तेरे द्वार
के इस तरफ़
की दुनिया
उस तरफ़ की
दुनिया से
मुख़तलिफ़
है क्यों,

है
तू
मौजूद
जब
दोनों तरफ़,
दुनियावालों को
शुबा
है क्यों!

आदाब

अनजान
हो कर भी
इस
गर्मजोशी से
उसने
आदाब
कहा है क्यों,

मैं
उसको
भूल गया
या
मुझको
भूला है
वो!

दिवाली

दीपक
तुझे
देखता हूँ जब
इस करीब से,
पुतलियों की
बंद खिड़कियों से भी
ठिठुरती
रूह को
आती है
ग़ज़ब
गर्माइश,
तेरी
इसी दीवाली को
बीनता है दिन
बरस
मेरा।

पीढ़ा

पीढ़ा
तेरे दुःख में
ये
सुकून
कैसा!

ख़ुशी
तेरे कहकहों में
आत्मविश्वास की
ये
कमी
कैसी!

भीख

माँगता है
जब
भीख
बाज़ार
मुझसे,
बाख़ुदा
बड़ा
लुत्फ़
आता है,

होते हुए भी
कुछ
ज़रूरत
नहीं
जब
ख़रीदता
मैं,
ज़ख़्मी दिल
क्या बताऊँ
क्या सुकून
पाता है।

कोशिश

नहीं
आई
समझ
जब जब
ज़िन्दगी,
हमने
कोशिश
छोड़ दी,

जैसे
इसी के
इंतज़ार में
थी वो,
समझ
आ गयी।

Tuesday, October 21, 2014

वज्र

दिया था
तेरे
हाथ में
वज्र
इसलिए नहीं
कि
क्या
चला पायेगा?

देखना था
बस इतना
कि
बिन चलाये
कब तक
रह पाएगा!

अलमारी

देखा
नहीं था
किसी
अलमारी को
पैरों पर
चलते
सड़क पर
कभी,
आज
धनतेरस के दिन
पीछे से
ये भी
देख लिया,
एक पल को
लगा...

आगे पहुँच
बगल से
देखा,
तो टूटा भ्रम,

आज भी
किसी की
दिवाली को
किसी के घर
बिन पैरों की
अलमारी ढोता
वो
दो पैरों का
मज़दूर
निकला।

साथ साथ

घुटने पर
पट्टी बाँधे
नोट से
मैंने पूछा
“चल
सकोगे?"

नोट
मुस्कुराया
और
अपनी
चमकती
हस्तरेखा देख
बोला
“पकड़
मेरी उंगली,
तेरी मंज़िल तक
तुझे
पहुँचा ही
दूँगा,

मेरे सफ़र की
पूछता है
क्यों,
कहाँ
मेरी
क़यामत तक
तू
मेरे साथ
चलेगा?"

Monday, October 20, 2014

वापिस

एक ही
क्रान्ति से
ले लेंगे
वापिस
उनसे
वो सब,

हज़ार
कानूनों से
समेटा था
जो जो
उन्होनें।

बसंत

समझा जाये
पत्तियों को
फूल,

और
डालियों से
लटकना
लाज़मीं
न हो,

पतझड़
बसंत
ही तो है
आस्मां का
नहीं
तो
ज़मीन का
सही!

बिजली

हीरे सी
चमकी हैं
भीगी
आँखें,

ज़रूर
खुला है
कहीं
सब्र का
बाँध,

यादों की
चलीं हैं
टरबाइनें,

संवेदना की
कहीं
बिजली
बनी है!

Saturday, October 18, 2014

तो

अब तो
पहुँच गए हैं
पहुँचने वाले,

उनके
आने से पेश्तर
जो होती
आपको
ख़बर
तो
वली
समझते।

इरादा

उसका तो
इरादा था
बनाना
तुझ
बुत को
बस
गले से
ऊपर,

नीचे का
निज़ाम
मजबूरी में
इंतज़ाम को
किया।

Friday, October 17, 2014

क़ुबूल

हसरत है
निकल
जाऊँ
करने
फ़तह
दुनिया,

बदलने
उसका
धर्म
ख्वामख्वा,

कमबख्त़
होती नहीं
क़ुबूल
उसके यहाँ
मेरी ही
इल्तेजा।

मिलन

कुछ
मैं घुमाऊँ
ज़मीं
लगा ज़ोर,

कुछ
आफ़ताब को
बहकाना
तुम,
जल्द
उतारना
फ़लक के
शजर* से,            (*वृक्ष)

आओ
करें
मिलकर
इस सुबह
की
शाम
कुछ
जल्द,
मिलन का
फल
खायें।

एफ़ आइ आर

खोये
सपनों की
एफ़ आइ आर
कहाँ करवाऊँ
कौन सुनेगा?

कौन
मानेगा
ये कंगाल
दिल
कभी
अमीर था
कितना!

Thursday, October 16, 2014

इतिहास

तेरी
किताबें
ही होंगी
तेरा
इतिहास,
जब
इन्सां!
आख़िरी तू भी
आख़िर
नहीं रहेगा।

फ़रियाद

अब
जब के
यकीनी है
कि
ज़्यादा
नहीं है
वक्त,

चलो
फ़रियाद
को छोड़ें,
बचायें वक़्त,
हक़ीक़त
कुबूल करें।

सुकून

बुझने से
पहले
क्या ये
शम्मा
कभी
जलेगी?

तड़पते
अरमानों
के पतंगों को
क्या
सुकून की
चिता
मिलेगी?

Wednesday, October 15, 2014

कोचवान

सोतों में
छुपकर
जागता सी
काटी
एक दिन
जो रात
मैंने,
इतना तो
लग गया
पता
कि
किसको
शॉर्टकट
किसको
लम्बे रास्ते
से
लगाता है
रात के पार
वक्त का
कोचवान।

Monday, October 13, 2014

छूट

लेते हो
साँस भी
तो
पूछते हो
कि
छूट
क्या है,

किसी रोज़
छूटने से
छूटी
तो
छूट
जाओगे।

कैसे

ज़हर
बनके
आए हो,
पीयूँ
कैसे,

आपके
मयख़ाने
से
उठ तो जाऊँ,
मगर कैसे!

बादल

तुम्हारे
दिन हैं,
बरस लो
बादलो,

जिसके
ताप
की भाप
से
बने हो,
कब तक
ढकोगे!

उलझनें

उलझे न
उलझनों में
तो
कहाँ
उलझे!

सुलझी
ज़िन्दगी में
बेचैन इन्सां
के उलझने को
क्या है!

जवाब

चाहिए थे
उनको
जवाब
सवालों
जैसे,

रहा
हमारे
जवाबों
को
इंतज़ार
ताउम्र
अपने
सवालों का।

यकीन

उनकी
खुशनसीबी पर
हमें
रश्क
होता,

गर
न अपनी
तक़दीर पर
यकीन
होता...

फ़ैसले

बड़ा
आसान था
ज़िन्दगी के
फ़ैसले
लेना,

उस की
रज़ा में
राज़ी
रहना
भर था।

बुत

तेरे
भरोसे
की मूरत
हम
तोड़
न सके,

कोई
बुत
दिल के
काबे में
अगरचे
हमने
रहने
न दिया।

तुजुर्बे

एक
हमीं
मिले
ज़िन्दगी को
तुजुर्बों
के
लिए,

हर दर्द
की
दवा
आजमाई
हमपे...

Sunday, October 12, 2014

भ्रम और यकीन

तेरे
भ्रम से
तेरे
होने का
यकीन सा है,

ख़ुद
हो कर भी
वजूद का
अपने
धोखा
सा है!

पहचान

कभी
तस्वीर
कभी
बुत
देख कर
पहचानते हो
ख़ुदा,

आवाज़
और
एहसास को
पहचानो
तो
कहाँ कहाँ
दिखे!

वक्त

तेरी
तस्वीर
पर लगी
स्टेपलर
की पिन
तक को
जंग
लग
गया,

फिर
क्या वजह
हैरान है
तू
कि
बड़ा
वक्त
गुज़र गया!

तैयारी

बिन पिये
तुझे
जो
हरदम
ये
खुमारी है,

लोग
कहते हैं,
करता है
तू
खुदा से प्यार
बेइंतेहा,
उसका
प्यारा
होने की
बस
तैयारी
है।

आगे पीछे

सामने बैठा
मार पलाती
मुस्तकबिल का मैं
देखता
सुनता
सूँघता हूँ
आज के
ख़ुद को,
सोचते
विचारते
विचरते
भोलेपन में
न जाने
क्या क्या
कहाँ कहाँ!

पीछे खड़ा
कंधों
के ऊपर से
झाँकता है
मेरा बीता मैं
मुझे
कुछ मायूसी
कुछ सुकून
कुछ कौतुहल से!

Saturday, October 11, 2014

बरसात

खुशनसीबी
की
बरसात
मेरे सहरा
बरसे
न सही,

काफ़ी है
मेरे लिए
हर रात के
पिछले
पहर
की
ओस।

सुबह

इस कदर
देर से
जागोगे
सो कर
तो
कैसे
चलेगा,

जिंदगी की सुबह
दोपहर
बनने को है।

पत्तियाँ

बेताब हो
संघर्ष की
जिन
पत्तियों को
छान
निकाल
फैकनें को,

है
उन्हीं के
उबलने से
ज़ायका
ज़िन्दगी की
चाय का।

ज़मीन

पैरों की
हक़ीकत से
बना के
रख,

किसी दिन
जो
खींच ले
आसमान
परों तले
ज़मीन!

Thursday, October 9, 2014

क़ुबूल

आपका
फ़रेब
उसूलन
क़ुबूल था
हमें,
आपने
एहसान भी
जताया
तो बुरा मान गए।

मजबूरी

मत खाइये
गुस्सा
शेख़ जी
पी
जाइये,
होगी
कोई
साक़ी की
मजबूरी,

मौत भी दे
जो पैमाना ए लब से
अभी,
रिंद का
निभा फर्ज़
जी जाइये।

ज़िन्दा

ज़िन्दा है
जिसकी
जुबां पर
अभी
तक
फ़रियाद,
करता है
अभी तक
ख़ुद से
बातें,
दिल की
सुनता है।

यूरोप

बच्चों
जाना तुम
यूरोप,
घूमना
इंग्लैंड
फ्राँस
नीदरलैंड्स,
रह जाना
वहीं
जो आ जायें
पसंद,
भूल जाना हमें
मज़े करना
उम्र भर,

आना
कभी
फिर
सपनों में
हिंदोस्तान,
घूमना
वादियाँ
परबत
पहाड़,
ढूँढना
हमें
जो हों हम
तब भी
यहाँ!

आधा आसमान

चढ़
आया हूँ
आधा
आसमान,
शहर तमाम को मगर
आज
मुझसे
कोई
सरोकार
नहीं!

कल
ढूँढेंगे
लेकर
चिराग भी
पूजने को
तो
मिलूँगा
आसानी से
मैं भी
नहीं।

Wednesday, October 8, 2014

नींद

क्या
हो गई है
नींद
तुम्हारी
पूरी
जो
आधी रात
उठ बैठे हो,

या
हुआ है
आज फिर
सपने के
बंद कमरे में
किसी से
झगड़ा
जो
गुस्से में
बाहर निकल
जग के
आँगन
घुटनों पर
ठुड्डी रख
सिमटे हो।

Tuesday, October 7, 2014

दुनिया

एक
अलग
दुनिया
बसा दे
मेरे लिए
मेरे मौला,
जिसमे
रहूँ मैं
अपनी
तरह,

गर
न हो
बाक़ी
कुछ ज़मीन
पास तेरे
तो
मेरे
ज़हन
में बसा।

इजाज़त

आए
इजाज़त
कंधो
के ऊपर से
तो
उठाने दूँ
बाज़ुओं को
हाथ
फैलाने
के लिए,

इस बार
सोचता हूँ
जुड़ी हथेलियों से
बस
शुक्रिया को
पढूँ
नमाज़।

याद

मत
दिला
याद
दिल को
बिसरी
हसरतें
उसकी,

बामुश्किल
समझाया है
उसने
ख़ुद को
फ़र्ज़
उसका!

Monday, October 6, 2014

खेल

किसके
पैसे से
कौन
खेला,
इस
बात पे
मुनहसर,
कौन बिका
किसने
ख़रीदा|

ऐतराज़

नहीं
गर
किसी को
किसी की
तकलीफ़
का
एहसास
तो
उसका
प्यार
कैसा!

है
नफ़े
नुक्सान
का
हिसाब
तो
उस
व्यापार पर
ऐतराज़
कैसा!!!

खोज

खोज में
निकलोगे
तो
कुछ तो
मिलेगा,

जन्नत की
हकीक़त
उभरेगी,
दोज़ख का
रंग
बदलेगा!

आवाज़

सुनाओ
कोई
आवाज़,
उतरे
भीतर
बिन इजाज़त,

बीन डाले
सारी यादें
कर
उथल पुथल,

निकाले
ढूँढ़
वो आह
जो
छुपी है
कहीं
कब से
सहमी सी
बिन आहट।

Sunday, October 5, 2014

संतुलन

बड़ी
संतुलित है
ये
कायनात,

आपका
बेहतर
चेहरा
गर
ये है
तो
दूसरा
कहाँ है?

स्वस्थ

ईश्वर
की
धमनियों में
दौड़ते
रक्त की
बेशुमार
कोशिकाओं
में
एक
मैं भी हूँ,

मेरे
वजूद
से
स्वस्थ है
उसका
वजूद।

घूँट

टहनियों
पत्तियों
के बीच
किरणों से
टटोलता है
हर पेड़ को
शरीर सूरज,
जैसे
माँगता हो
ऊर्जा के बदले
पके फलों
के रस का
वाश्पिकृत
घूँट।

दावत

मत बदलिए
आप
वक्त के साथ
गर
मुश्क़िल
है
इस कदर,

बस
इतना ही
कीजिए
कि
दावत
कोई
उसकी
हरगिज़
न ठुकराइए।

कामयाबी

एक
उम्र से पहले
तेरा
मरना
है
मुश्किल,
इन्सां ये तेरी
यकीनन
कामयाबी है,

एक
उम्र
से
ज़्यादा
तेरा
जीना है
मुश्किल,
बशर
तेरी
कामयाबी
की ये
मुख़्तसर
कहानी है।

दुनिया

दुनिया
ज़रूर
ढूँढती
तुम्हें,
तुम्हारा
इस्तक़बाल
करती,

गर होती
दुनिया
दुनिया की मानिंद,
बाग़ी
एकाकी
बशरों का
बस देखने में
झुण्ड न होती।

भ्रम

आपके
ये
दो दाँत,
रहते हैं जो
होठों से
अकसर
बाहर,
देतें हैं
बिना इजाज़त आपकी
आपके
हमेशा
ख़ुश रहने का
भ्रम!

शुबा

मुल्क
आपका भी है
अब
शुबा
है मुझे,

हाशिए
पे
क्यूँ हैं आप,
पन्ने
से
क्या सबब
गिरने को हो!

बेशुमारी

दौलत की
बेशुमारी नें
दानिशमंद
बना दिया,

मुफ़लिसी ने
नसीहतें
तो दीं,
ज़हानत
न दी।

पगड़ी

ईमारत
के गुम्बद
ने
बाखूबी
किया है
आबादखानों की
पगड़ी का काम,

बाशिंदों को
कहाँ था
अपनी
चारदीवारों
पर
यकीन।

तलाश

ज़मीं से
आस्मां
की
तलाश में
निकलें हैं
मिट्टी से
पेड़,

सफ़र के
रास्ते में
जहाँ
थके हैं
वहाँ से
घोंसलों में
परिंदे बन
उड़े हैं!

शक्लें

इतनी
शक्लों
के लोग
तूने
क्यों
बनाये?

बहलाने उनका
या
अपना दिल?

करने
आपस में
प्यार
या
देने दग़ा?

सुधारने
तेरे ख़ुद
की गलती
या
देने
ख़ुद ही को
सज़ा?

गेटअप

फटे जूते
गंदे कपड़े
उलझे बाल
कुम्हलाई देह
खाली जेब,

फिर भी
कूड़ेदान से
अधजली
अनबुझी
त्यागी
सिगरेट
को
उठा
उसने
उस अंदाज़ से
जो लगाया
एक कश,
कुछ पल को
लगा
ऑस्कर विजेता है कोई,
मुफ़्लिस के गेटअप में,
पैकअप के बाद।

सेल्फ़ी

क्या
खींचूँ
अपनी
हक़ीक़त की
सेल्फ़ी
मोबाइल से अपने,
वो जो
नहीं
दिखाता
इसका
कैमरा
जो हूँ मैं।

तस्वीरें

बेहलावों
के
चिड़ियाघर में
ख्वाहिशों
के मगरमच्छों
संग
मदहोशी में
खिंचवा तो
रहे हो
बेकाबू इन्द्रियों के
कैमरे से
रंगीन
तसवीरें,
मुहँ
गर
खोल लिया
उन्होंनें
तो
सुकून की टाँग
क्या
दे सकोगे।

Saturday, October 4, 2014

पोस्टर

पहले
वो तो खा ले
जो काग़ज़
मुहँ में है,

घास की
किल्लत है
तेरे शहर में,
बकरी!
दीवारों पर
पोस्टर
बहुत हैं!

फ़ैसले

ज़िन्दगी
तू
ख़ुद ले
अपने लिए
फ़ैसले,

मुझ पर
तो
एक
ज़िन्दगी की
कशमकश
भारी है!

किनारे

माँ
पिता
के चप्पू
बस
यहीं तक,

पाल की
नौकाओ,
मेरे बच्चो,

हवाओं
की गोद
चढ़ो
और
अपने किनारों
उड़
जाओ|

मुक्ति

मुक्ति
के द्वार पर
जब
याद आया,
दिनों गुज़रे
नहीं की
ख़ुदकुशी
हमनें,

रोक लिया
दस्तक
को उठा
हाथ,
गले
तक लाए,
तमन्ना को
हलक से
उतरा|

टुकड़ा

बहुत दिनों से
गुम था
मेरे दिल का
एक
टुकड़ा,
रहा ढूँढ़ता
वादी वादी
मिलता न था...
अपने
नाम
की
सुनकर
प्रतिध्वनि
जो
सर उठाया
तो चोटी पर
मुस्कुराता
हाथ हिलाता
बेदम
मिला।

Thursday, October 2, 2014

मुबारक

जन्म दिन
मुबारक
आपको
बहुत बहुत
आज
फिर,
उठ ही
गए
जो आप
सोकर
इस
सुबह
भी।

न सही
आपका
कोई
सरोकार
कुछ ख़ास
तारीख़ से
इस,
आपकी
अभी भी
मौजूदगी
किसी
उत्सव
के
बहाने को
कुछ
कम
तो नहीं!

आविष्कार

आविष्कारक
बनाओ
एक
बंदूक
ऐसी भी
जो
चले
उल्टी,
निकाल
लाये
चली
लगी
गोली,
भर
आए
ज़ख्म,
लौटा
छीनी
ज़िन्दगी।

भिखारी

यही
सोच कर
मैंने
भिखारी
को
जाने दिया,

एक
रुपया
मेरे पास
था,
एक
रुपया
वो लेगा
नहीं।

Wednesday, October 1, 2014

अनहोनी

ज़िन्दगी
क्या तेरी
अनहोनी
पर
शिकवा
करूँ,
तेरी
होनी
भी तो
उसी से
हुई!

वैसा

ज़िद
है
मेरी
कि
अतीत
मुझे
वैसा मिले
जैसा
छोड़
आया था,

अतीत
चिढ़ाता
है मुझे
कि
वैसा
बन
और
ले जा!

गया

तेरा
क्या गया
जो
चला
गया,

उसका
क्या
रहा
जो
रह
गया!

अतीत

अतीत
तू तो
पीछे था
आगे
कैसे?

तेरा
नाम तो
माज़ी था,
मुस्तक़बिल
कैसे!