मत पहनो
चेहरे पर
मेकप
की
तरह,
ज़रा
बेसलीके से
छुआ
जो किसी ने
तुम्हारा
अहं,
निकल
आओगे।
लगा ले
मुखौटे
दोहरी
ज़िन्दगी के,
ख़ूब
जी ले,
इजाज़त है
तुझे,
हो
चाह
तो
तिहरी
चौहरी भी
जी ले,
मुझे
मुंशी
रख के।
हाँ
जानता हूँ
कि
जानता है
तू,
इसमें
नुक्सान है
तेरा,
ये भी
हूँ
मगर
जानता
लेगा ज़रूर
फ़ायदा
तू
इस
नुक्सान का।
विश्वकर्मा जी
के
हवाले
अब
इस देह का
जगत,
और
जगत की
देह,
अब
वही
करें
नवीन इन्हें,
जैसे भी...
बनाया जाए
कोई
एंड्राइड एप्प
जिसमे
बटन दबाते
हो
जाये
ई पशु की
बलि,
चाहे
जितने भी,
और
ई भगवान भी
आयें
सामने
मुस्कुराते
बहुत खुश,
दे तुम्हें
ई आशीर्वाद,
हो तुम्हारा
थोथा
ई दम्भ
शिथिल,
बेज़ुबानों का
तुम्हारे हाथों
ई कल्याण हो।
राजधानियों
के
हुक्मरान
बनेंगे
चौराहों के
बुत,
रिआया
कबूतर बन
उनके
सर पर
चढ़ेगी,
बारी बारी से
मिलेगा
ऊँचाईयों
का मौका,
ऐसी
लोक
शाही
तो
यूँ ही
चलेगी!
पहने
रखें
इस मन्दिर में
जूते
अंदर ले आयें,
बस
मुखौटा
जो हो
पहना
तो
बराहे मेहरबानी
ड्योढ़ी पर
उतार
आयें।
क्या
ढूँढ़ते हो
ईंट,
गारा,
पत्थर,
सरिया,
कहाँ
इनसे
बना हूँ मैं!
फैसलों
ने
बनाया है
मुझे,
चाहे
जिसने भी
लिए।
बंद बुर्के
की
ऊपरी
मंज़िल पर
खुली खिड़की
में
पलक झपकती
ज़िन्दगी को देख
यकीन हुआ
एक
छुपा जहान है
पूरा
अन्दर बसा
हुआ।
झुका है
फूलों पर
आस्मां
या
उठ पहुँचे हैं
अर्श तक
फूल,
तस्वीर से
बताना
मुश्किल,
उतरने दो
आस्मां से
मुझे,
ज़मीं से
ज़रा
उठने दो।
कब
गिरे
पहाड़ की
ढलान पर अटकी
चट्टान
कौन जाने,
कौन
करे
मना
बरसों
ज़िन्दगी को
नीचे
पगडण्डी से
गुज़रना
यहाँ वहाँ।
उड़
आते हैं
बगीचे
तितलियों के
नाज़ुक पंखों पर
पराग बन
मीलों दूर,
कुदरत को
कहाँ
रास्तों की
कमी है!
जाने
कौन कौन सी
भड़ास
निकाल दी
नौजवानों ने
कल रात के
पटाखों में,
जाने
क्या क्या
आएगा
फिर याद
आते दिनों।
बिताओ
चार दिन तो
ख़ुदा के संग,
ज़रा
मिलो बरतो
तो
सही,
कौन जाने
तुम
पसंद
न आओ
उसको,
या तुम्हें
वही...
चल
अब उठ
महफ़िल से,
अपनी राह
को बढ़ा,
छोड़ दे
परवानों को
शम्मा की नज़र,
यूँ हर किसी को
हमसफ़र
न बना।
जंगल के
फूल को
कब
किसने
जूड़े में सजाया,
गुलदस्ते में बाँधा,
इत्र में घोला,
ईश पर चढ़ाया?
बाज़ार ओ मीना में
कहाँ
क़ायनात की महक,
किसने बताया?
यूँ न
थूको
देखते ही,
शुभकामनाओं
के
गुब्बारों में
ज़रा
दम तो भरो,
लो तो सही
तनिक
गहरी साँसें
छोड़ने से पेश्तर,
इन्हें फुलाओ तो।
मदमस्त
हाथी सी
चल रही हो
जो दुनिया,
तुम्हारे
मेहंदी लगे
पाज़ेब जड़े
पैरों तले
क्या क्या
कौन कौन
जाता है
कुचला,
उठाओ तो
नक्शीन घाघरा
अपना,
ज़रा देख तो लो।
कहते थे
मनोचिकित्सक
कि
बाज़ार में
बिकता है
सुकून,
क्षणभंगुर ही सही,
त्योहार को
उपचार का
महाकुम्भ बना दिया,
हाय
दीवाली
तुझे
क्या बना दिया।
पूँजी
की खुशियाँ,
पूँजीवाद
का संतोष,
सम्पत्ति
की
शान्ति,
कैसे करूँ
भेंट,
क्या आशीष लाऊँ
आपको
इस दीवाली
ज़ुबान भर,
क्या कहूँ।
पिछली
इस
और
अगली सारी
दीवालियों की
आपको
सुविधा अनुसार
रिवायतन
मनचाही
मनमोहिनी
मनघडंत
मन बहलाऊ
स्वसम्मोहित
शुभकामनायें।
चाहने से ही
सपनों में
मिल जाये
आपको
आपकी
हक़ीकत,
जागना
न पड़े।
गुरु
तेरे द्वार
के इस तरफ़
की दुनिया
उस तरफ़ की
दुनिया से
मुख़तलिफ़
है क्यों,
है
तू
मौजूद
जब
दोनों तरफ़,
दुनियावालों को
शुबा
है क्यों!
दीपक
तुझे
देखता हूँ जब
इस करीब से,
पुतलियों की
बंद खिड़कियों से भी
ठिठुरती
रूह को
आती है
ग़ज़ब
गर्माइश,
तेरी
इसी दीवाली को
बीनता है दिन
बरस
मेरा।
माँगता है
जब
भीख
बाज़ार
मुझसे,
बाख़ुदा
बड़ा
लुत्फ़
आता है,
होते हुए भी
कुछ
ज़रूरत
नहीं
जब
ख़रीदता
मैं,
ज़ख़्मी दिल
क्या बताऊँ
क्या सुकून
पाता है।
दिया था
तेरे
हाथ में
वज्र
इसलिए नहीं
कि
क्या
चला पायेगा?
देखना था
बस इतना
कि
बिन चलाये
कब तक
रह पाएगा!
देखा
नहीं था
किसी
अलमारी को
पैरों पर
चलते
सड़क पर
कभी,
आज
धनतेरस के दिन
पीछे से
ये भी
देख लिया,
एक पल को
लगा...
आगे पहुँच
बगल से
देखा,
तो टूटा भ्रम,
आज भी
किसी की
दिवाली को
किसी के घर
बिन पैरों की
अलमारी ढोता
वो
दो पैरों का
मज़दूर
निकला।
घुटने पर
पट्टी बाँधे
नोट से
मैंने पूछा
“चल
सकोगे?"
नोट
मुस्कुराया
और
अपनी
चमकती
हस्तरेखा देख
बोला
“पकड़
मेरी उंगली,
तेरी मंज़िल तक
तुझे
पहुँचा ही
दूँगा,
मेरे सफ़र की
पूछता है
क्यों,
कहाँ
मेरी
क़यामत तक
तू
मेरे साथ
चलेगा?"
समझा जाये
पत्तियों को
फूल,
और
डालियों से
लटकना
लाज़मीं
न हो,
पतझड़
बसंत
ही तो है
आस्मां का
नहीं
तो
ज़मीन का
सही!
हीरे सी
चमकी हैं
भीगी
आँखें,
ज़रूर
खुला है
कहीं
सब्र का
बाँध,
यादों की
चलीं हैं
टरबाइनें,
संवेदना की
कहीं
बिजली
बनी है!
हसरत है
निकल
जाऊँ
करने
फ़तह
दुनिया,
बदलने
उसका
धर्म
ख्वामख्वा,
कमबख्त़
होती नहीं
क़ुबूल
उसके यहाँ
मेरी ही
इल्तेजा।
कुछ
मैं घुमाऊँ
ज़मीं
लगा ज़ोर,
कुछ
आफ़ताब को
बहकाना
तुम,
जल्द
उतारना
फ़लक के
शजर* से, (*वृक्ष)
आओ
करें
मिलकर
इस सुबह
की
शाम
कुछ
जल्द,
मिलन का
फल
खायें।
सोतों में
छुपकर
जागता सी
काटी
एक दिन
जो रात
मैंने,
इतना तो
लग गया
पता
कि
किसको
शॉर्टकट
किसको
लम्बे रास्ते
से
लगाता है
रात के पार
वक्त का
कोचवान।
तेरी
तस्वीर
पर लगी
स्टेपलर
की पिन
तक को
जंग
लग
गया,
फिर
क्या वजह
हैरान है
तू
कि
बड़ा
वक्त
गुज़र गया!
बिन पिये
तुझे
जो
हरदम
ये
खुमारी है,
लोग
कहते हैं,
करता है
तू
खुदा से प्यार
बेइंतेहा,
उसका
प्यारा
होने की
बस
तैयारी
है।
सामने बैठा
मार पलाती
मुस्तकबिल का मैं
देखता
सुनता
सूँघता हूँ
आज के
ख़ुद को,
सोचते
विचारते
विचरते
भोलेपन में
न जाने
क्या क्या
कहाँ कहाँ!
पीछे खड़ा
कंधों
के ऊपर से
झाँकता है
मेरा बीता मैं
मुझे
कुछ मायूसी
कुछ सुकून
कुछ कौतुहल से!
बेताब हो
संघर्ष की
जिन
पत्तियों को
छान
निकाल
फैकनें को,
है
उन्हीं के
उबलने से
ज़ायका
ज़िन्दगी की
चाय का।
मत खाइये
गुस्सा
शेख़ जी
पी
जाइये,
होगी
कोई
साक़ी की
मजबूरी,
मौत भी दे
जो पैमाना ए लब से
अभी,
रिंद का
निभा फर्ज़
जी जाइये।
बच्चों
जाना तुम
यूरोप,
घूमना
इंग्लैंड
फ्राँस
नीदरलैंड्स,
रह जाना
वहीं
जो आ जायें
पसंद,
भूल जाना हमें
मज़े करना
उम्र भर,
आना
कभी
फिर
सपनों में
हिंदोस्तान,
घूमना
वादियाँ
परबत
पहाड़,
ढूँढना
हमें
जो हों हम
तब भी
यहाँ!
चढ़
आया हूँ
आधा
आसमान,
शहर तमाम को मगर
आज
मुझसे
कोई
सरोकार
नहीं!
कल
ढूँढेंगे
लेकर
चिराग भी
पूजने को
तो
मिलूँगा
आसानी से
मैं भी
नहीं।
क्या
हो गई है
नींद
तुम्हारी
पूरी
जो
आधी रात
उठ बैठे हो,
या
हुआ है
आज फिर
सपने के
बंद कमरे में
किसी से
झगड़ा
जो
गुस्से में
बाहर निकल
जग के
आँगन
घुटनों पर
ठुड्डी रख
सिमटे हो।
एक
अलग
दुनिया
बसा दे
मेरे लिए
मेरे मौला,
जिसमे
रहूँ मैं
अपनी
तरह,
गर
न हो
बाक़ी
कुछ ज़मीन
पास तेरे
तो
मेरे
ज़हन
में बसा।
आए
इजाज़त
कंधो
के ऊपर से
तो
उठाने दूँ
बाज़ुओं को
हाथ
फैलाने
के लिए,
इस बार
सोचता हूँ
जुड़ी हथेलियों से
बस
शुक्रिया को
पढूँ
नमाज़।
नहीं
गर
किसी को
किसी की
तकलीफ़
का
एहसास
तो
उसका
प्यार
कैसा!
है
नफ़े
नुक्सान
का
हिसाब
तो
उस
व्यापार पर
ऐतराज़
कैसा!!!
सुनाओ
कोई
आवाज़,
उतरे
भीतर
बिन इजाज़त,
बीन डाले
सारी यादें
कर
उथल पुथल,
निकाले
ढूँढ़
वो आह
जो
छुपी है
कहीं
कब से
सहमी सी
बिन आहट।
ईश्वर
की
धमनियों में
दौड़ते
रक्त की
बेशुमार
कोशिकाओं
में
एक
मैं भी हूँ,
मेरे
वजूद
से
स्वस्थ है
उसका
वजूद।
टहनियों
पत्तियों
के बीच
किरणों से
टटोलता है
हर पेड़ को
शरीर सूरज,
जैसे
माँगता हो
ऊर्जा के बदले
पके फलों
के रस का
वाश्पिकृत
घूँट।
मत बदलिए
आप
वक्त के साथ
गर
मुश्क़िल
है
इस कदर,
बस
इतना ही
कीजिए
कि
दावत
कोई
उसकी
हरगिज़
न ठुकराइए।
एक
उम्र से पहले
तेरा
मरना
है
मुश्किल,
इन्सां ये तेरी
यकीनन
कामयाबी है,
एक
उम्र
से
ज़्यादा
तेरा
जीना है
मुश्किल,
बशर
तेरी
कामयाबी
की ये
मुख़्तसर
कहानी है।
दुनिया
ज़रूर
ढूँढती
तुम्हें,
तुम्हारा
इस्तक़बाल
करती,
गर होती
दुनिया
दुनिया की मानिंद,
बाग़ी
एकाकी
बशरों का
बस देखने में
झुण्ड न होती।
आपके
ये
दो दाँत,
रहते हैं जो
होठों से
अकसर
बाहर,
देतें हैं
बिना इजाज़त आपकी
आपके
हमेशा
ख़ुश रहने का
भ्रम!
ईमारत
के गुम्बद
ने
बाखूबी
किया है
आबादखानों की
पगड़ी का काम,
बाशिंदों को
कहाँ था
अपनी
चारदीवारों
पर
यकीन।
ज़मीं से
आस्मां
की
तलाश में
निकलें हैं
मिट्टी से
पेड़,
सफ़र के
रास्ते में
जहाँ
थके हैं
वहाँ से
घोंसलों में
परिंदे बन
उड़े हैं!
इतनी
शक्लों
के लोग
तूने
क्यों
बनाये?
बहलाने उनका
या
अपना दिल?
करने
आपस में
प्यार
या
देने दग़ा?
सुधारने
तेरे ख़ुद
की गलती
या
देने
ख़ुद ही को
सज़ा?
फटे जूते
गंदे कपड़े
उलझे बाल
कुम्हलाई देह
खाली जेब,
फिर भी
कूड़ेदान से
अधजली
अनबुझी
त्यागी
सिगरेट
को
उठा
उसने
उस अंदाज़ से
जो लगाया
एक कश,
कुछ पल को
लगा
ऑस्कर विजेता है कोई,
मुफ़्लिस के गेटअप में,
पैकअप के बाद।
बेहलावों
के
चिड़ियाघर में
ख्वाहिशों
के मगरमच्छों
संग
मदहोशी में
खिंचवा तो
रहे हो
बेकाबू इन्द्रियों के
कैमरे से
रंगीन
तसवीरें,
मुहँ
गर
खोल लिया
उन्होंनें
तो
सुकून की टाँग
क्या
दे सकोगे।
पहले
वो तो खा ले
जो काग़ज़
मुहँ में है,
घास की
किल्लत है
तेरे शहर में,
बकरी!
दीवारों पर
पोस्टर
बहुत हैं!
माँ
पिता
के चप्पू
बस
यहीं तक,
पाल की
नौकाओ,
मेरे बच्चो,
हवाओं
की गोद
चढ़ो
और
अपने किनारों
उड़
जाओ|
मुक्ति
के द्वार पर
जब
याद आया,
दिनों गुज़रे
नहीं की
ख़ुदकुशी
हमनें,
रोक लिया
दस्तक
को उठा
हाथ,
गले
तक लाए,
तमन्ना को
हलक से
उतरा|
जन्म दिन
मुबारक
आपको
बहुत बहुत
आज
फिर,
उठ ही
गए
जो आप
सोकर
इस
सुबह
भी।
न सही
आपका
कोई
सरोकार
कुछ ख़ास
तारीख़ से
इस,
आपकी
अभी भी
मौजूदगी
किसी
उत्सव
के
बहाने को
कुछ
कम
तो नहीं!
आविष्कारक
बनाओ
एक
बंदूक
ऐसी भी
जो
चले
उल्टी,
निकाल
लाये
चली
लगी
गोली,
भर
आए
ज़ख्म,
लौटा
छीनी
ज़िन्दगी।