Sunday, November 30, 2014

पत्थर

होगा ज़रूर
वो
किसी
सूखी नदी का
भीगने को तरसा
चकमक
पत्थर,

गुमनामी की हवाओं में
उड़ने से रोके है
मेज़ पर पड़े
जज़्बातों के समंदर भरे
सूखे काग़ज़।

यकीन

अलग थलग
पड़ा
छिटका
बीज,
बीज ही
न रहेगा,
यकीन था
उसे,

जंगल
बनने से पहले,
गुज़ारता था
शताब्दी,
गिनने
कोख़ के
दरख़्त।

Saturday, November 29, 2014

दसवीं

दसवीं
पास हूँ,
दुनिया वालो
कभी
पूछ तो लो,

है
सच में
मेरे पास
असली का
जीवन से कीमती
वो सर्टिफिकेट,
एक बार सही
देख तो लो.

Friday, November 28, 2014

एक बार

एक बार
दिखा दे
कर के,
फिर
कर लूँगा
ख़ुद ही
मैं,

पहली बार
रहा हूँ
जी,
ख़ुदा
नहीं हूँ
मैं.

सफ़ेदी

उम्र
की दीवार
पर
सफ़ेदी की
सूखती
पपड़ी सा
इंसान,

वक्त की
उतावली
कूची
थमी
इंतज़ार के हाथ,
गीले
पेंट से
तर|

खेल

लम्हों को
कब
मलाल
वक्त के
गुज़र
जाने का,

उड़ते हैं
कुछ देर
घड़ियों के
परिंदे बन
सूरज के पीछे पीछे
घौंसलों के रास्ते में
खेल समझकर.

Thursday, November 27, 2014

अट्टालिका

क्या
हासिल
बनाकर
अट्टालिका
इतने
आसमानों
वाली,

बचने
बाहर के
भेड़ियों से,
जिस जिस
ज़मीनी
मंज़िल पर
पाला
न कोई
कुत्ता,
साये मिले।

Sunday, November 23, 2014

प्रधान

सर से सर
तसले से तसला
काँधे से काँधा
मिलाया
मज़दूरी में
स्त्री पुरुष ने,

ठेकेदार प्रधान
समाज में
ग़ज़ब
समाजवाद
दिखा।

करम

ख़ुदा
तेरा
जहान
है
अब
बड़ा
बड़ा,

कर
बस
मेरा ज़हन
मेरे नाम,
करम
फ़र्मा।

खेल

तुझे
जहाँ जहाँ
ले कर
है जाना,
मुझे
ले
जाने दे,

ज़िन्दगी
ज़िन्दगी
न खेल,
मैं
मर
जाने दे।

पता

दुनिया को
नहीं पता
उसे
चाहिए
क्या,

तुझे
गर
पता है
तो
मुड़ के
न देख,
भाग जा।

मजबूरी

थी ये
मुश्किल की
मजबूरी
कि उसे
सुलझना
ही था,

बचानी थी
उसे
दहशत की
आबरू,
लौटने
के लिए
लौटना
ही था।

Saturday, November 22, 2014

रोकेगा

मेरा
नहीं
ख़ुदा
तो क्या
मार दोगे
मुझे?

रोकेगा
क्या
नहीं,
तुम्हारा
ख़ुदा
तुम्हें?

Wednesday, November 19, 2014

सवाल

मालिक
तेरा
ग़ुलाम पर
दावा
कब्र ए हातिम पर
लात* नहीं,  

क़ुबूल
जो हो
उसको
हर जवाब,
तेरा
सवाल
नहीं|

  *(मुहावरा=परोपकार)

Tuesday, November 18, 2014

काश!

मौला,
काश !
हों
ज़मीं पर
ख़ुदा
कुछ
कमतर,

हों
तेरी
दुनिया में
तआवुन के
इमकानात
और बेहतर।

कीलें

बीनता
सम्भालता
चलूँ
अपनी
नियती की
कीलें,

कहीं
रह न जाऊँ
सूली
की क़यामत,
सलीब
पीठ पर
उठाये।

कौन

मिला
ये आज
कौन
जो
अकेलापन
कुछ
कम
हुआ,

किसके
साये के
रुख़सत पे
महफ़िल के
उठने का
ग़म हुआ।

हद

तिजारत में
महदूद ए हद
न था,
वो शख्स़
ख़ुद भी
बिका था
ज़माना
खरीदने
के बाद।

सुइयाँ

काँटों की
सुइयाँ
बहुत
अज़ीज़
हैं
मुझे,

गुलाबों
के
ज़ख्म
सिलने में
बड़ी
काम
आती हैं।

Saturday, November 15, 2014

नियती

मृग मरीचिका
में
भटके
गर मृग
तो
नियती
उसकी,

कस्तूरी
तो
माँ ने
नाल से
बाँध कर
भेजी थी
सफ़र में|

पूजा

हो गई
पूजा
अब और क्या?

रख दिया
उसी के
आदमी ने
उस पर
हाथ,
और क्या!

कम

खोली
जो
उस
भीख
माँगते ने
लाचारी में
समझाने को
अपनी
बंद मुठ्ठी
तो
ऐ दुनिया
उसमे
तू
निकली,

दिखी
बन
चारों
दिशाओं सी
एक एक
धातू की अशर्फ़ी
मगर
खाली पेट
को भर
सुला देने को
अभी
दस
कम
निकली|

फिंगरप्रिन्ट

बहुत
रगड़ा
पोंछा
चमकाया
उसने
नई
बाइक का
क्रोम मड गार्ड
कोशिश के
हर कपड़े से,

आँखों से
छिपकर भी
ज़हन से
दुआ बाँटते
भिखारी के
फिंगरप्रिंट्स
न गए|

Friday, November 14, 2014

ऐसे

दिखा ले
बेशक
वो ज़ख्म
जो
दिल में हैं,

कुछ ऐसे
मगर
दिखा
कि
करार मिले।

वही

वही हूँ
मैं
आज भी,
मेरा
यकीन कर,

बदलने
न बदलने
की
कशमकश में
गिरफ़्त हूँ,
मुझे
आज़ाद कर।

ताजमहल

कहाँ कहाँ से
उठा कर
लाया
कौन कौन
ताज महल के
टुकड़े,

किसकी
ज़िद में
किसने
जोड़ा
कहाँ कहाँ के
जिंदा
पत्थरों का
मकबरा।

Thursday, November 13, 2014

पार

न लौटीं
जिन पर्बतों से
टकराकर
मेरी
सदायें,

गहरा गयीं
कुछ और
बीच की
खाइयाँ,

पार
न हुईं
एक
मुद्दत
मेरी
मैं से|

क़िस्मत

करवा ले
मुझसे
जो
सोचा है
तूने,

फिर
न कहना
तेरी
क़िस्मत
नहीं
की|

Monday, November 10, 2014

क़रीब

पढ़के
तेरी
किताब
तेरे
करीब
आया हूँ,

कुछ
ख़ुद से
मिला हूँ
और,

कुछ
हुआ
पराया
हूँ।

रश्क़

क्या
करूँ
रश्क़
तेरी
क़िस्मत पे
मैं,

तेरा
हश्र
भी तो
मुझे
पता
नहीं।

ज़मीर

तेरे
बढ़ाये
क़दमों में
बिछाता
पलकें
मैं
ज़रूर,

मेरी
आँखों में
ग़र
ज़मीर का
बाल
न होता।

नज़्म

न हो
मायूस
मेरी
संगदिली से
सनम,

ज़रूर
कहता
तेरी
ज़ुल्फ़ पर
नज़्म
गर
मदहोश
होता।

सलाम

जा
लम्हे
तेरा
ख़ुदा
हाफ़िज़,
मेरा
मुस्तकबिल
ग़र
मिले कहीं
तो
सलाम
कहना।

ख़ामोशी

दुनिया नें
मेरी
ख़ामोशी के
क्या क्या
मतलब
निकाल
लिए,

था
मुझसे तो
इस
कोहराम में
कुछ
सोचा
भी न
गया।

किनारे

जज़ीरे
बन के
मिले
वो साहिल
जो हमारी
क़िस्मत
के थे,

पहुँच कर
भी
किनारे
नसीब
न हुए।

Sunday, November 9, 2014

ख़त

भेजना हो
कोई
ख़त
तो
ज़रूर
बताना,

कई बार
होता है
आना जाना
स्वर्ग नर्क
मेरा
रोज़ाना।

लिफ़्ट

20 रूपये
ग़ालिबन
बचे होंगे
उसके
मुझसे
लिफ़्ट लेकर,

उतरते वक्त
धन्यवाद भरी
मुस्कराती
2000 की
लिफ़्ट
दे गया।

बात

न जाने
किसने
कौन सी
बात
दिल में
रख ली है,

बदल
चुकी है
हमारी
दुनिया,
हमें
ख़बर भी
नहीं है|

सन्ज़

अभी
तुम्हारे
बाज़ार
बदले
नहीं हैं,

कुमार एंड सन्ज़
हैं
हर तरफ़,
कुमार एंड डॉटर्ज़
डॉटर इन लॉज़
नहीं हैं|

प्यास

अक्सर
कह देता हूँ
ख़ुद को
आई लव यू,
दिल में
नहीं
रखता,

कौन जाने
लौट जाये
मायूस
मेरा वजूद
इसी
प्यास में।

काँटे

काँटे
फूलों को
मुबारक,

खाने दो
मुझे
उँगलियों से
अपनी,

उस
क्यारी की
मिट्टी
बनने में
वक्त है
अभी।

Saturday, November 8, 2014

यही तो

थूक दे
गुस्सा
ख़ुदा
के लिए,

ख़ुदा से
भी
तूने
यही
तो
कहा था।

रेखायें

जल कर भी
जब
न जलीं
हाथ की
रेखायें,

आँसू
पोंछ
लिए
हमनें,
काम में
जुट गए।

समझ

न आई
जो
समझ
वो
ख़ुदा पे
डाल दी,

हम
समझदारों ने
यूँ
ज़िन्दगी
गुज़ार दी।

मुख़बरी

बाहर बाहर
पीछे पीछे से
जी कर
गुज़ार दी,

किसी ने
कर दी
जो
मुख़बरी
कि
शहर में
क्या है!

टुकड़ा टुकड़ा

छिपा हूँ
अपने
अक्षरों में
टुकड़ा टुकड़ा,

कोई
पढ़
जोड़
न ले
इन्हें,
मुझे
देख
न ले।

Thursday, November 6, 2014

पैग़ाम

बिजली
की रफ़्तार
से तेज़
पहुँचते हैं
दिल के
पैग़ाम,

जानते हैं
वो
हम
क्या
सोचने
को हैं!

तसल्ली

क्या क्या
न हुआ
ज़ाया
ज़िद की
ज़िद में,

इक
हमीं
न काम आये
बस इतनी
तसल्ली
है|

उपन्यास

कहाँ
की बात
कहाँ
जा कर
ख़त्म
हुई,

लिखे
कोई
उपन्यास
तो
बीच का
पता चले।

सनद

आपके
बुत की
उम्र
दराज़ हो,

सनद रहे
आवाम को,
न फिर
ये
गुनाह
हो।

पहचान

अब से
भेजना
बेनक्श
इन्सां
ज़मीं पर,
इल्तेजा
है मेरी,

कोई
उतरे
तो ज़रा
अन्दर
पहचान
के लिए।

मायूस

न हो
मायूस
गर
तेरी उम्मीद सा
सुंदर
नहीं हूँ
मैं,

आँखों
की
न सुन,
अपनी
धड़कनों
से पूछ।

Wednesday, November 5, 2014

बेल

बन
मेरे
सपनों की
बुलंद दीवार,
बेल
बन
लिपट
उठूँ मैं,

चढ़ूँ
पकड़
तेरे
सम्बल
की पीठ,
निर्वाण
की छत से
हक़ीक़त की
ज़मीन
देखूँ मैं।

Tuesday, November 4, 2014

एकमत

जिन
नन्हें
प्यारे
नुक्कड़ के
पिल्लों पर
छिड़कता था
जान
सारा मोहल्ला,

उन्हीं
के लिए
बेझिझक
एक मत से
आज
मंगवाया है
म्युनिसिपेलिटी से
सबने
ज़हर...

इन्साफ़

हमनें
आग में
जल कर
मुकद्दमा
जीता है,

एक
वो हैं
जो
दस्तावेज़
जला
जीते
हैं।

महफ़िल

कब
लिखा
कुछ
मैंने
किसी
महफ़िल
के लिए,

शम्मा
दिखी
जो
कोई
जलती,
पिघलता
रहा।

Sunday, November 2, 2014

पोटली

मसरूफ़ हूँ
और
कुछ
मजबूर
अभी,
आना है
मुश्किल,

भेज दो
मुझ ही तक
दुनिया
बाँध
पोटली में
किताबों की।

प्यार

कर ले
मेरे
अक्स
से प्यार,
हक़ीक़त से
कम नहीं,

ज़िन्दा हूँ
मैं भी
इसी के
सहारे,
कोई
ग़म नहीं।

दोस्ती

कर लूँ
इस
बच्चे
से भी
दोस्ती,
कल
यही
होगा
मेरी
छड़ी से ऊँचा
इससे
नहीं
डरेगा।

बाज़ार

और भी गुनाह हैं बाज़ार में तिजारत के सिवा
इक ज़मीर बेचना ही काफ़ी नहीं आदमी के लिए।

सफ़ेद

सफ़ेद
काले से
काला,
काला
पाक़
सफ़ेद,

उल्टी
सारी
दुनिया,
सीधी
बात
अचेत।

Saturday, November 1, 2014

परमेश्वर

किस गाँव किस घर की छत से निकलते धुएँ के गुबार मेरी फूँकी धौंकनी की बदौलत उठेंगे,
किस किस उपले पे होंगे मेरी उंगलियों के निशाँ, किस संयुक्त परिवार की भीड़ की रोटियाँ सेकने में जलेंगे!

किस हतोत्साहित पति की मार के निशान उठाऊँगी पीठ की सलीब पर,
किस सास ससुर ननद की तीखी ज़ंग लगी सोच की सूली पर चढूँगी,

किस देश की राहें बाँचेंगे मेरे कोरे पासपोर्ट के पन्ने,
किस यूनिवर्सिटी के प्रॉस्पेक्टस पर चिपकने को मेरी तस्वीरें रोयेंगी,

कौन शहर तरसेगा मेरे काम के कमाल को,
किस महाद्वीप के आकाश मुझ बिन वो सारे जहाज़ उड़ेंगे,

कौन सी हक़ीक़त लूटेगी मेरी कौन सी क़िस्मत,
मेरे किस भविष्य को मेरा आज निगलेगा,

किस पति परमेश्वर की मैं दुल्हन बनूँगी,
किस शख्स़ को,पापा, मैं बॉय फ्रेंड चुनूँगी!

धर्म

चल
बदल भी
लूँ
धर्म अपना
पर
बता
अपनाऊँ
कौन सा,

तेरा जो
अधर्म है,
कहाँ है
धर्म सा?