Thursday, December 31, 2015

या

कैसे
और
कितना
बदले हो तुम
एक ही रात में
कहो,

तुम भी
हो नए
या साल ही!

जब से

आँखों से सुना
कानों से देखा
पोरों से महसूस किया है
जब से,

दुनिया
वैसी दिखी है
जैसी तजुर्बों में पाई है!

ज़िद

कुछ तो
बदल
इस बरस,

कोई
ज़िद
तो छोड़!

हाँ

हाँ
जानता हूँ
नया साल है,

तेरी सोच
तेरी एप्रोच में
नया क्या है,
ये बता!

फ़िलहाल

फ़िलहाल
तो ये तय कर
कि सफ़र
कैसा हो,

उन रास्तों पे
फिर
मय्यसर
कि
मंज़िलें क्या हों!

एक

फिर
पहुँच गया वक़्त,
साँप सीढ़ी के
एक पर,

किस्मत की गोटी
फुदकवायेगी तुझे
इस बार भी,
हाँ,
तू मेहनत कहेगा!

ज्वर

था
एक रात का
ज्वर
उतर गया,

अब बता
वो क्या थी
तमन्ना
बड़बड़ाई थी तूने
कल रात
ताप में!

टेक ऑफ़

एक और
टेक ऑफ़ पॉइंट
की हवाई पट्टी
के करीब है तू,

सब्रो एहतमाद से
पकड़ रफ़्तार
इस दफ़ा,
परवाज़ लिखी ही है
तेरी राह में
याद रख!

साल

लो
बीत गया
एक और
साल,

लो
मैं फिर
सोचता
रह गया!

Wednesday, December 30, 2015

तरीके

थे पास मेरे
ग़म को भुलाने के
तरीके कई,

ग़म
एक नहीं
कई थे!

कविता

रुख़
नज़र
मनोभाव
अभिवक्ति
हो तो
एक कवि सी,

कविता ही
दिखती  है उसे
जहाँ हो भी!

आज़ाद

ले
मूँदता हूँ आँखें
करता हूँ पीठ,
निगरानी की थकान से
ख़ुद को
करता हूँ
आज़ाद,

जाँच लूँगा
तेरा ज़मीर
जब
परख के लिए
मिलूँगा।

तस्वीर

ए कविता
इक
शोर दी
तस्वीर है,

जो चुप चुपीते
तपदे दिल ते
नंगा हत्थ
रखदी है!

वक़्त

कैसा
वक़्त है तू!

अरमान है हर दिल में
कि नश्तर सा चुभे
और दर्द से
कुछ आराम आये!

सोच

अपनी सोच बता
बेसब्र हूँ,

कौन है तू
क्या है
सुनूँगा कभी।

Tuesday, December 29, 2015

महफ़िल

आत्मसंवाद
कहाँ
किसी महफ़िल से
कम है,

हाज़री में है
कायनात,
सन्नाटा है चहुँ ओर
जग एक चित्त है!

यज्ञ

आग सिर्फ़ आग
कुण्ड सिर्फ़ कुण्ड
आहूतियाँ सिर्फ़ सामग्री
नहीं होती,

हर जीवन है एक यज्ञ
रूहें करवाती हैं!

हाल

है
मेरी ही वजह से
मेरा ये हाल,

बहरहाल,
अब आ गया हूँ मैं,
ग़म न कर!

एहसास

ऑस्ट्रेलिया से
आते हैं
मेरे बच्चों के बच्चे
खाने लड्डू
जलेबी
यहाँ,

वहाँ
मंगाता हूँ
यहाँ से
तो वतन का एहसास भी
माँगते हैं।

एहसास

ऑस्ट्रेलिया से
आते हैं
मेरे बच्चों के बच्चे
खाने लड्डू
जलेबी
यहाँ,

वहाँ
मंगाता हूँ
यहाँ से
तो वतन का एहसास भी
माँगते हैं।

असल

तेरी अय्यारी का
ऐ बन्दे
किस कदर
क़ायल हूँ मैं

कहलवाता है
ख़ुद को
इंसां
और असल क्या है!

असल

तेरी अय्यारी का
ऐ बन्दे
किस कदर
क़ायल हूँ मैं

कहलवाता है
ख़ुद को
इंसां
और असल क्या है!

हट के

ज़रा
इलेहदा
कुछ हटके
एक वक़्फे पे
हो खड़ा
अपनी मुश्क़िलों से,

यूँ उलझता रहेगा
तो सुलझेगा कैसे!

वजह

यकीनन
मसर्रत सी है
मेरे चेहरे पे
इधर
कुछ दिनों,

और क्या वजह
बेक़रार है
क़रार उनका!

मुआवज़ा

जिस दुनिया को
देते हो मुआवज़ा,
कब की
उजड़ चुकी,

ये कहो
कि उतारते हो
ज़हन का बोझ,

माँगते हो जिनसे क्षमा
रूहें
कब की
जा चुकी।

सबब

बताऊँगा
हर बात का सबब
चल तो सही,

तेरे चलने से है
खुदाई
समझ तो सही!

जवाब

कैसे दूँ
उन सवालों के जवाब
जो फ़क़त
तेरे डर से हैं,

अपने हौसले से पूछ
किस दिन के लिए है!

देख

अब देख
मुड़कर
उन चिंताओं को
जिन्हें
छोड़ने से
इनकार था तुझे,

कितनी
ख़ुश हैं
तुझसे छूट कर वो,
और
कितना
ख़ुश है तू!

छोड़

वो
गा नहीं,
रो रहा है,

एंड्राइड एप्प
डाउनलोड कर,
तोते को
छोड़ दे!

ड्यूटी

ले लेता हूँ
मैं भी
रिस्क
कभी कभी,

क़िस्मत
कहाँ हमेशा
ड्यूटी पर रहती है!

Monday, December 28, 2015

सर

ये सर
सर वाला सर है
या सर वाला सर?

डर है
अदब है
या है
सिस्टम का लकवा?

रेल

बीड़ियों के धूएँ से चल रहे हैं
कितने दफ़्तरों के इंजन,

ये कैसे सफ़र पर है निज़ाम की रेल
जंग की पटड़ी पर खड़ी
खा रही है ज़ंग।

Sunday, December 27, 2015

गज़ब

ख़्याल और गुस्सा
दोनों रखते हो!

गज़ब करते हो,
पेट्रोल तो पेट्रोल
दीया सलाई भी
रखते हो!

रस मलाई

रस मलाई
गुलाब जामुन
खाने के बाद
अदरक लहसुन चबाना
मुझे पसंद नहीं,

विदेश के
सैर सपाटे पश्चात,
पुरानी दिल्ली से गुज़रना
मुझे पसंद नहीं,

कहीं
सीधा
कल्पा काज़ा में
उतारो
तो आऊँ,

विदेश की
दूसरी तस्वीर
भी दिखाओ
तो जाऊँ!

Saturday, December 26, 2015

धुंध

कहाँ जाता है
ये रास्ता
धुंध में
बताओ मत,

आज
मन्ज़िल नहीं,
चाह है
बस चलने की!

जुदाई

न कर मिलने मिलाने की बातें
दूरियों को कहाँ समझा जुदाई हमने !

सुन्दर

मीठे गले का चेहरा
लाज़मी होता है सुंदर,
कानों में हो गर नज़र
दिल गुम्बद सा गूँजे!

जाने दे

न पकड़
लम्हों को,
जी ले,

जाने दे
ख़ुद को,
जीने दे!

दीवा

बणावो मन्दिर मसीत
ते होर वी, जो वी,

इक दीवार बणायो घट्ट
पायो साँझ,

बचियाँ इट्टाँ दी
बणायो इक मढ़ी,
बाल नज़र दा दीवा
बीते दिन दी साँझ।

लकीरें

मुसलमाँ
सिक्ख
हिन्दू,

कितनी लकीरें
एक बिंदू!

साज़

मरदानेया!
अज्ज तुसी गावओ उस्तत् मिट्ठे कण्ठ,
बुझावओ खू दी प्यास, मेरी रसना है नासाज़,

उतार लेहावो फेर आकाश ज़मीन
खोलो आपणी रूह, वजावो साज़!

दीवार

ये मस्जिद की ईंटों में
गूँजती हैं
शब्द की तरंगें कैसी!

कौन है
दीवार के उस पार,
ये आज़ान में
अरदास की
उमंगें कैसी!

Friday, December 25, 2015

बिगड़ी

वक़्त तो दे
बिगड़ी
बनाने की,

बहुत मुमकिन
असल में बिगड़ी न हो,
फ़रमाइश ही
पूरी करवाने की!

इरादे

इंतज़ार तो कर
अपनी फ़ना का,

हैरानगियों के इरादे
अभी और भी हैं!

अलविदा

टेम्परेरी शै में
कभी
हमारा दिल
परमानेंटली न लगा,

परमानेंटली
पास से गुज़रते रहे
टेम्परेरी अलविदा कह के!

वीरान

कौन कौन
किस किस
दुनिया में
जीते देखा,

हमने
इस धरती को
वीरान देखा!

Thursday, December 24, 2015

मैरी क्रिसमस

बिजली से नहीं
धूप से चमकते हैं
मेरे क्रिसमस ट्री!

रात में नहीं
अलबत्ता
दिन दहाड़े
भरी दोपहरी!

हैं भले आज
छोटे,
पर एक नहीं
हैं हज़ारों
बनने की राह में,

हो जायेंगे तैयार
बैसाख़ तक
खेतों में मेरे
सुनहरी बल्ब लिए!

उस दमकती आस
और ईश्वर के दिलासे के सदके
मैरी क्रिसमस!

सिक्का

मेरी
मुस्कराहट का सिक्का
गर क़ुबूल है उसे,

क्यों न डालूँ
उसकी आँखों की
गुल्लक में
सवेरे सवेरे...

मोड़

कहाँ कहाँ से गुज़रा होगा
जो यहाँ है तू,

कुछ मोड़ अँधेरों में
कुछ दुआ में
मुड़े होंगे
जो यहाँ है तू!

Tuesday, December 22, 2015

जहाँ

लेते ही
अल्लाह का नाम
ये कौन सा मुल्क
महफ़िल के ज़हन आया,

या इलाही,
तू सारे
जहाँ में
क्यों नहीं!

रु ब रु

रु ब रु
दे दूँ
ख़िराज ए अक़ीदत
आज ही
ख़ुद को,

कौन जाने
बिछड़ने के बाद
मुलाक़ात
हो न हो!

Monday, December 21, 2015

इंतज़ार

जब
वक़्त ही रुक गया
तो इंतज़ार कैसा,

ऐ मुस्तक़बिल
खड़ा हूँ माज़ी में,
जब फ़ुर्सत मिले
तो मिल!

दाद

हद से बढ़ गये जो हस्ताक्षर
तख़ल्लुस बदल लिया,

कलाम से पेश्तर दाद
देने लगे थे लोग!

दायरा

यकीनन
सुरक्षा के दायरे में हैं हुज़ूर
जो इस कदर हैं मेहफ़ूज़
कि अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता
के वशीभूत
फैला रहे
असुरक्षा
यदा कदा
अत्र सर्वत्र
येन केन प्रकरेण !

शान्तिदूत

बाँसुरी से मीठे
शान्तिदूत से
आपके बोलों नें
इस बार
रोक ही दी है
होने से पहले
महाभारत!

जीते हैं
पहली बार
दोनों पक्ष,
दिल का
हस्तिनापुर
बहुत ख़ुश है!

Sunday, December 20, 2015

मसीहा

ये
मसीहा भी
सियासी निकलेंगे,

बना लेगी दुनिया
इन्हें
सीढ़ी,
ज़मीनो आसमां तक
दिखेंगे!

की मंगदैं तूँ
फ़क़ीराँ तों,

अमीराँ दे
अमीरा ओ!

याद

गुज़र जायेगा
ये वक़्त जब
बाद एक अरसा
तुझे याद आयेगा,

बा मतलब
बे क़सूर लगेगा,
ख़ुश्क आँखों में
सैलाब लायेगा!

बस्तियाँ

आपकी
मेहरबानी से उजड़ी
बस्तियाँ
कचोटती हैं मुझे,

पूछती हैं
हरदम सवाल
और
जवाब भी
नहीं सुनती!

Saturday, December 19, 2015

एहसास

ज़िंदा हूँ मैं
एहसास तो दिला,

आईना ही आईना हूँ कब से
मुझ से तो मिला।

जश्न

है तेरी नस्ल
रवानी में,
जायज़ है तेरा जश्न,

इंसानियत क्या करे
जो बे-औलाद है!

चर्चे

आज
उस
महफ़िल में
सुन रहा हूँ
तेरे चर्चे,
जिस अंजुमन की
नवाज़िश तुम्हें
गवारा न थी!

ख़ुश

बहुत
ख़ुश होगा
तू ख़ुशनसीब
यूँ जीत कर,

कहाँ
जानता होगा
अपनी
खुशनसीबी के मनसूबे!

कहाँ

अभी
यहाँ
कैसे
समझूँ समझाऊँ,

कभी
कहीं
मिलूँगा
जहाँ
तू और मैं न हों!

परेशाँ

इतना परेशाँ है तू गर सोच सोच कर
परेशाँ हूँ मैं सोचकर कि तू सोचता क्यों है!

किनारा

सम्भाला है नाख़ुदाओं नें जब से
किनारों का भी निज़ाम,
मिलता हूँ मझधार ही में
अपने ख़ुदा से
टूटा किनारा बन के!

मजबूरियाँ

होंगी कुछ आपकी मजबूरियाँ
जो आप आप न थे,

और कुछ हम भी मजबूर न थे
सो हम हम रहे!

सज़ा

हो गई ख़ता
चल सज़ा बता,

हो मगर सज़ा,
फिर कोई
गुनाह न हो!

Friday, December 18, 2015

इरादा

जा
कर ली
तूने
ख़ुदकुशी,
मान लिया!

अब
ये बता कि
तेरा
तमन्ना क्या है!

यकीन

न कर अपने सवाल पर यकीन
बेशक़ मेरा जवाब न सुन,

कुछ जवाबों से तू है महरूम,
जैसे कुछ सवालों से हूँ मैं!

पशेमाँ

नहीं हैराँ
मैं
तेरी तक़लीफ़ पे,
पशेमाँ ज़रूर हूँ,

था जो
ख़लल
तेरे माज़ी में,
पहचानता था मैं!

पशेमाँ

नहीं हैराँ
मैं
तेरी तक़लीफ़ पे,
पशेमाँ ज़रूर हूँ,

था जो
ख़लल
तेरे माज़ी में,
पहचानता था मैं!

Tuesday, December 15, 2015

कम्बल

बण जाँदै
सारा पिण्ड
गुरुद्वारा
जदों गूँजदा है
सारे आकाश दा गुम्बद
ज्ञानी जी दे नितनेम नाल
मिट्ठा मिट्ठा
सवेरे चार वजे,

मैं
रैण सबाई च
मम्मी डैडी नाल जाग के
ओहनां दी गोद विच ही
सवेरे सवेरे सुत्ते
किसे छोटे बच्चे दी तरह
कई वार
कम्बल च
दुबक जाँदाँ
कुज होर,

मिट्ठी बाणी
कम्बल दे बारों
लोरी दी तरह
पुचकार्दी वि ऐ
ते रोम रोम जगौन्दी वी!

Monday, December 14, 2015

मिट्टी

बना के दिखा
अपने भीतर
सुराही
फिर छू मुझे,

कुम्हार से पहले
मिट्टी
बन के दिखा!

कम्बल

एक सदी बाद भी
लिपटे संजोये हैं
पंजाब के कम्बलों में
सिंध, कराची,

बटवारे के बावजूद
आ गये होंगे
वो
बचते बचाते
दबे पाँव
सरहद के इस पार।

Sunday, December 13, 2015

क्षितिज

बदल रहा है
जहान
आज के क्षितिज पर,

जिसे
कह रहे हो
सूर्यास्त,
कल का है!

बात

करो
रक़ीबों को
मिलाने की
कुछ बात,
कोई बात बने,

मिले
रंजिशों को
फिर हवा,
कारोबार चले!

शम्मा

प्यार
के बिना भी
चल सकती है दुनिया,

पतंगे
के बिना भी
जल सकती है शम्मा!

चेहरा

पक गया है
आपकी
रूह का चेहरा
इस कदर,

जिस्म के
मुहँ पर भी
दिखता है
अब
मुखौटा बनकर!

लकीरें

आपके चेहरे पे
वाज़े है
आपके
माज़ी का मुस्तक़बिल,

लकीरें
पहुँच गई हैं
हथेलियों से
आपके
मुहँ पर!

मंज़िल

सदियों के
मुसाफ़िर को
मन्ज़िल पर
तीसरे ही दिन
हुई जो
घुटन,

मुहँ अंधेरे
लौट पड़ा
पहले रास्ते
ढूँढ़ने मंज़िल!

सदके

सदके
आपके
ख़ुलूस पर
उनका
वसूक्,

उन्होंने कहा
और
आपने
मान लिया!

शराफ़त

क्या जाऊँ मैं
आपकी गर्मजोशी पर
रक़ीबों के संग,

दोस्तों से
मुलाक़ात की
शराफ़त
आपके रोम रोम में थी!

Saturday, December 5, 2015

आमद

बाज़ार में
काले झण्डों की
फिर आमद,
या रब!

फिर वही
सुने जाने की तड़प
और
बहरेपन की ज़िद!

मोम


पिघल जायें
आप
हमारी ख़ातिर
मोम की तरह,

अंधेरों
से ही
कर लिये
उजाले
हमनें!

क़रार

आपकी
बेक़रारी से
हमें
क़रार न था,

आप के
क़रार की ख़ातिर
हम बेक़रार हुए!

कैसे

चश्माज़ार है
आपकी
इनायत का
बाज़ार,

कुछ धूप
कुछ साया
हों जो,
आपके
नज़ारों में
दिखें
कैसे!

इंतज़ार

साक़ी
तेरी नज़र का
इंतज़ार है
मुझे,

पैमाना थामे हूँ
शम्मायें बहलायें हूँ
होश सम्भाले हूँ!

वृक्ष

गिन सकेगा
अपने
भीतर की
पुश्तें?

वंश वृक्ष
है तू,
एक
शख़्स
नहीं है!

Friday, December 4, 2015

फेर वी

रज्ज के जा
रजा के जा,

रोवणगे ओ
फेर वी,
हस के जा
हसा के जा!

Monday, November 30, 2015

संयम

यूँ तो
बहुत
संयम था
उसमें,

वक़्त पड़े
संयम खोलने का
संयम नहीं था!

Sunday, November 29, 2015

ज़िंदा

आपके
इन्तक़ाल की
ख़बर
मुझे
बहुत देर से
मिली,

मरने के बाद भी
आप
एक अर्सा
थे
ज़िंदा!

नसीब

अपनी अपनी
कम्फर्ट ज़ोन में
जी
रही है
दुनिया,

कम से कम
इतनी ज़िंदगी
हर किसी को
नसीब है!

ऊन

उलझी हुई
ऊन है
ये दुनिया
का घोसला,

सुलझाओगे
इसे
तो
कहाँ
जाओगे!

Friday, November 27, 2015

हौसला

हमें
दबाकर
चलो
उन्हें
हौसला तो है,

गुमराह
हो कर भी
कोई
मन्ज़िल ओ मक़सूद
तो है!

ज़िद

मुझे
करने की
ज़िद में
ये क्या
कर लिया
ख़ुद को
तुमने,

होने देते
मेरा
मुझको,
ख़ुद को
अपना
करते!

इंकार

बदल
कर भी
कुछ
वही रहना,

तौबा
ये
तेरा इंकार
ख़ुदाई से,
इंसां रहना!

मकाँ

जब तक
गिरता नहीं
ये मकाँ
रह लूँ
इसमें,

देह होती
तो
रहता
हमेशा!

मकाँ

जब तक
गिरता नहीं
ये मकाँ
रह लूँ
इसमें,

देह होती
तो
रहता
हमेशा!

Thursday, November 26, 2015

ख़ज़ाना

किस किस सफ़े नें
बाँध पीठ पर
करवा पार
युगों के दरिया
पहुँचाया है
आपके लबों से
शब्दों का ख़ज़ाना
मेरे कानों के तट,
मालूम नहीं,

मुझ ही से
शायद
जो कहा था
आपने,
मैंने सुन लिया!

चुपके से

मेरे ही कानों में
आपके
अधरों ने
कुछ
चुपके से
कहा है,

शब्दों के
अंदाज़े में है
दुनिया,
उनके
नसीब में
वो
लर्ज़िश कहाँ है!

सौग़ात

मैं
आप्पे
पा लवाँगा
सिन्ने लरज़ दी कम्बणी
आप जी दे
शब्दां च
रूह नूँ
नव्हा के,

सुक्के
तय कीते
अक्खराँ दी सौग़ात
बस पुचा देवो
मेरे कन्ना दी
बुक्क!

शक़

यूँ
तपाक से मिला
कुछ सवालों
का जवाब,

कुछ
शक़
सवालों पर
कुछ
जवाबों पर
आया!

Wednesday, November 25, 2015

चन्न सूरज

चन्न,
तूँ ताँ
ऐत्थे ही सी
ओदों वी,

तूँ ताँ
ज़रूर
होवेगा वेखेया,
ओ मुख,

की सी
भाव
ओहना दे चेहरे ते
जदों सी उचारया
“जो तुद भावे साई भली कार"!

की
ओस तों पहलां वी सी तूँ
ऐना ही शीतल!

सूरज,
वेखेया होवेगा ज़रूर
तूँ वी
तुर्देयाँ
तिन्ना नूँ
तपदी ज़मीन ते
हर दिशा,

की ओस तों बाद वी
हैं तूँ
आपणे बलदे वजूद तों
ओना ही
विचलित!

Tuesday, November 24, 2015

नया जहाँ

चलो
बसायें
एक
नया
जहाँ,

कहीं और
न सही
तो
यहीं सही।

Monday, November 23, 2015

ऋतु

फल की तरह
पक कर
टपक गया
मुश्किल वक़्त,

विश्राम के पतझड़ नें
मरहम की शीत ऋतु का
हौले से
मेरे कानों में
फिर
नाम लिया।

आवाज़

दूर
अन्तरिक्ष में
जाने कहाँ तक
पहुँच चुकी होगी
उनकी रूह
पता नहीं,
कौन झाँके
गहरे
स्पेस के कूएँ में,

फूलों की मिट्टी में है
किशोर की देह,
फ़िज़ाओं में आवाज़!

फ़ाइव स्टार

फ़ाइव स्टार नूँ
पेड़ दे थल्ले
लेआवें
ताँ आँवाँ,

सोफ़ेयाँ
दी जगह
डावें
दाओण दा मंजा,
ताँ खावाँ।

Sunday, November 22, 2015

याद

चाँद देख
याद आया घर
रूह की
बच्ची को,

चाँद को भी
घर बसाने का
फिर
ख़्याल आया!

अंदाज़ा

क्या लगाते हो
अंदाज़ा
मुस्कुराहटों से
खुशनसीबी का,

दिल
के सहरा से
वो दौर भी गुज़रें हैं
जिनके निशां नहीं!

पलस्तर

दीवारों में
हंसते हंसते
चुनवाये
नहीं गए हैं,

वो लोग
खड़े हैं
ईंटों के
बिन पलस्तर
मकाँ के भीतर
खिड़की से
झाँकते हैं।

बन्दूक

हाँ,
उँगलियों
के हाथ में
थी बन्दूक,
जब चली,

दीमाग
दूर दूर तक
नहीं था!

वीडियो

उल्टा
चला कर
देखे
जो इन्सानों के
वीडियो,

कब्रों से
निकल कर
चलते पाये!

धूप

जाती
गर्मियों
की धूप है,
सेक ले,

कौन जाने
अगले बरस
तू
दर्मियाँ
न रहे!

सोचाँ


सामणे
पैरापिट ते
कौण ऐ बैठेया
बन्न
बेबसी दे सिर ते
हौसले दा
मधेड़,
मार
चमड़ी दे कम्बल दी बुक्कल,

किदरे
फेर
सोचाँ दी अंतहीन राह ते
कोई
वचारा
इंसान ताँ नहीं!

हमराह

अपने भीतर के
जीपीएस,नक्शे
के हिसाब से
चल,

मील के पत्थरों
से गुमराह न हो,
जो
तेरी नहीं है
मंज़िलें
उन राहों का
हमराह न हो!

पलकें

तीन टाँगों पर
खड़ा है वो
अकेला
देखता
आसमाँ से लटकी दुनिया,

करते इंतज़ार
आँख की
उस ऊँगली का
कि आये
और झपकवाये
पलकें उसकी!

Friday, November 20, 2015

पैरापिट


सामणे
पैरापिट ते
कौण ऐ बैठेया
बन्न
बेबसी दे सिर ते
हौसले दा
मधेड़,
मार
चमड़ी दे कम्बल दी बुक्कल,

किदरे
फेर
सोचाँ दी अंतहीन राह ते
कोई
वचारा
इंसान ताँ नहीं!

धूप

जाती
गर्मियों
की धूप है,
सेक ले,

कौन जाने
अगले बरस
तू तो रहे
गर्मियाँ
न रहें!

वीडियो

उल्टा
चला कर
देखे
जो इन्सानों के
वीडियो,

कब्रों से
निकल कर
चलते पाये!

बन्दूक

हाँ,
उँगलियों
के हाथ में
थी बन्दूक,
जब चली,

दीमाग
दूर दूर तक
नहीं था!

Wednesday, November 18, 2015

होश

है उनके
सुरूर में
ग़ुरूर अभी बाक़ी,

पिला
उस इंतहा तक
साक़ी!
कि इन्हें
होश आये!

ज़ंग

ज़ंग
लग गया
चूड़ियों में,

बन गईं
बेड़ियाँ
इंतज़ार ए इजाज़त में!

किसकी

किसकी थी
सोच
जो आपकी आवाज़
में थी,

ख़ामोशी आपकी
कह रही है
कुछ और,
वो खुशनीयत,वो तसल्ली
किसकी थी!

लहर

मत
बह
लहर में,

हवाओं
के लिए
ये आम है!

चलचित्र

नहीं जानता
चल रहा है
कौन कौन सा
स्वप्न चलचित्र
किस किस
पलक के पटल पर,

बैठा
देखता है
अकेला
निद्रा गृह का मालिक
या वो भी
नहीं है!

सान्निध्य

नेता
पक्ष
प्रतिपक्ष
दोनों हैं
पहुँच चुके, स्वामीजी!
आपके सान्निध्य में,

बताइये
सरकार
गिरने से पहले
सम्भलेगी,
या
सम्भलने के बाद
गिरेगी?

चमक

बारूद की चमक है
उनकी आँखों में,
है धुएँ सी
मुस्कुराहट,

शायद
छिड़ी है
कहीं जंग,
नया
ऑर्डर मिला है!

ज़ुल्म

बड़ी ना इंसाफ़ी
बड़ा ज़ुल्म है
रिआया का
हुक्मरानों पर,

कीमत भी लेते हैं
मय भी पीते हैं

दे कर बहु मत
करते हैं मति ख़राब
और तानाशाह भी कहते हैं!

Tuesday, November 17, 2015

आविष्कार

करो
आविष्कार
किसी दूसरे
शून्य का,

भ्रष्टाचार बाबत
ज़ीरो टॉलरेंस
के उनके
शंखनाद को
करो
सत्यापित!

हक़ीक़त

मंज़िल
की हक़ीक़त
गर जानता है,

ठहर के चल,
रुक के पहुँच!

दो शब्द

जब भी
करता हूँ
टीवी ऑन,
लगाता हूँ
कोई भी
न्यूज़ चैनल,
चन्द मिनटों में
लाख कोशिशों के
बावजूद,
निकल ही जाते हैं
हमेशा
दो शब्द
मुँह से...
"साला ड्रामा"

फ़ना

दुनिया
फ़ना भी हो जायेगी
तो रहेगी,

इंसान का रहना
कोई एहसान नहीं है!

Monday, November 16, 2015

कर्ज़

किस किस बात पे
अब बे ऐतबारी करूँ,

कर्ज़दार हूँ
पहले से
ज़िन्दगी पे
यकीन करके!

बिस्तर

अभी
वक़्त है
एलन!
फ़िलहाल
वहीं
रेत पर सो,

किस पार
लगेगा
तेरी
मिट्टी का बिस्तर
बतायेंगी सरकारें,
कुछ मसले
हल तो हों!

मजबूर

मजबूरियाँ
हम से भी ज़्यादा
मजबूर निकलीं,

हमें
तरस आया
ख़ुद पे,
उन्हें न आया!

जुदाई

जुदाई की पीड़ा
मिलन के एहसास से मीठी,

एक
ज़ुबाँ पर ठहरे,
एक ज़हन में!

ताज और शमशान

कहीं और बनाओ
अपने
धुएँ का
ताज महल,
कोई दूर का
शमशान
ढूँढो,

यहाँ
शाह और बेग़म
को चढ़ता है धुआँ,
इतिहास
का दम घुटता है।

विचित्र

चील कौओं का चरित्र
ये इंसान कितना विचित्र!

नज़र

तेरे
मन बहलावे को
बनाई है
दुनिया,

"नहीं पसन्द"
कहने से पहले
इस नज़र से तो
देख!

बात

चलो
वो बात न करें
जहाँ
इत्तफ़ाक़ नहीं,

वो हाथ
तो मिलायें
जिनमें
तलवार नहीं!

क़ुर्बानी

लेनी है
मेरी
क़ुर्बानी
तो शौक़ से ले,

मेरी
आख़िरी तमन्ना को
अपनी
नादानी तो दे।

जैकेट

कर दूँगा
मैं
फ़ौजी
आपको
दुश्मन प्रूफ़,

बस
मेरी जैकेट
कर दीजिये
ईमानदारी से
बुल्लेट प्रूफ़।

उस ओर

देखता है
मुझ को
मर कर
उस ओर से
तस्वीर में,

जाने क्या
बताता
पूछता
समझाता है!

मदद

पूछ मत
मदद को,
कर सकता है
तो कर,

मैं तो
चला हूँ
मर्ज़ी से उसकी,
मुझसे न पूछ।

दरवाज़ा

एलन,
जा
घर लौट जा
तैर कर,
बच्चे!
अपने आँगन में ही
जा कर
शहीद हो,

करवा दिया है
किसी फ़िदायीन नें
उम्मीद की शरण का
दरवाज़ा
बन्द!

अरमान

जिनका
अरमान था
रहे साँस
किसी का
हो के रहना,

मयस्सर न हुआ
उन्हें
ताउम्र
अपना ही होना!

आग

पड़ोस की आग से
कम तो हुई है
हमारे अहम् की
ठिठुरन,

जाने वो आग
चिमनी की है
या
मकान जलता है!

स्क्रीन

स्क्रीन की जगह
आज
मुद्दत बाद
जब
अख़बार को
नंगे हाथों से
छुआ मैंने,

लगा
बीच उतर गया मैं
दुनिया के,
खिड़की से कूदकर।

आग

पड़ोस की आग से
कम तो हुई है
हमारे अहम् की
ठिठुरन,

जाने वो आग
चिमनी की है
या
मकान जलता है!

आग

पड़ोस की आग से
कम तो हुई है
हमारे अहम् की
ठिठुरन,

जाने वो आग
चिमनी की है
या
मकान जलता है!

Sunday, November 15, 2015

पैर

देखूँ तो ज़रा
उसके
पैरों में
क्या है,

भटक रहा है वो
या टहल रहा है!

नक़ाब

रहने दो
कम्बख़्त के
चेहरे पर
नक़ाब,
कहीं
देख न ले दुनिया,
है कितना
ख़ुद ही
आतंकित!

आज भी

जानता हूँ
आज भी
यहीं
कहीं
ऋषिकेश में
हो तुम,

कौन सा हो
परिंदा
पहचानता
ढूँढ़ता हूँ!

पूजा

शुक्र है
ऐसी
बदतमीज़ी से
नहीं पेश आये
जनाब
जलाते समय जोत
दुकान के मन्दिर में,

भाग जाता वरना
भगवान् भी
ग्राहक की तरह
कभी न लौटने के वास्ते।

वक़्त

तेरे होने से है
वक़्त,
जहाँ नहीं है तू
तेरा वक़्त भी
कहाँ है!

मोड़

उस चेहरे के पीछे
क्या है कहानी
सोच के बता,

और
कहानीकार है
तो कह,
अब क्या मोड़ आयेगा!

रंग मंच

बम ब्लास्ट में
200 मृत
300 घायल
400 करोड़ आतंकित,

शायद
सम्मोहित
फिदायीनों के रंगमंच का
हो यही
ऑस्कर!



"Terrorism is theater" (1974)[5] "Terrorists want a lot of people watching, not a lot of people dead" (1975)[6]

- Brian Michael Jenkins, authority on international terrorism

तार

तार तार कर दी है
वादी की
खूबसूरती,

हटा दो
सब तारें,
नज़ारे बे-तार कर दो।

Saturday, November 14, 2015

नक्शे

ज़मीनी नक्शे
उनके,
काग़ज़ी हमारे,

भविष्य के
वर्तमान
उनके,
इतिहास
हमारे!

मुद्दा

होता
बायाँ बशर
दायें,
या दायाँ
बायें,
मुद्दा न था,

किस तरफ़ था
काला नक़ाब
हमारा डर
किधर था!

ग्लानि

डेमोक्रेसी
राज शाहों को
बहुत रास आई,

आत्म ग्लानि
थी जितनी,
जंग ए रायशुमारी में
काम आई!

कतार

राज कुमारों की
कतार है
अब
उम्र दराज़
रानी के पीछे,

और कई तमन्नायें
अनकही
उन कतारों
के पीछे!

मेज़बानी

आज
बख़्श दे मुझे
मेज़बानी के
फ़र्ज़ से,

मकाँ में तो हूँ,
घर नहीं हूँ मैं!

बट्टे

ज़माना
अब भी
लफ़्ज़ों को आपके
यकीनन
बट्टों की जगह रखता,

होता जो
आज भी
आप ही का
तराज़ू,
आपकी ही मूरत का
हाथ होता!

कलम

दे तख़्त को
तलवार
मगर
कलम न दे,

दे दे
बेशक़
सारा आज,
इतिहास न दे!

इल्ज़ाम

बहुत मज़बूत हैं
धागे
गर न भी दिखें,

कठपुतलियों को
ख़ुद मुख़्तारी का
इल्ज़ाम न दो!

दुनिया

बहुत
बिखरी बिखरी सी है
दुनिया,

सर ही सर हैं
पैर ही पैर!

हुनर

आपके
छुपाने के
हुनर को
सलाम,

आप भी
न आते
नज़र
तो क़यामत होती!

मैडल

मैडल के
लहू से
कीमती था
उसका रिब्बन,

हुक्मरानों का
पसीना
छुआ था उससे!

ख़्याल

जापान से
सफ़ाई व्यवस्था का
अध्ययन कर
लौटने के बाद
आया
कर्मचारियों के मन में
ख़्याल,

काश आ जाते
साथ
जापानी ही
नागरिक
बन के!

सौभाग्य

कुछ नहीं हुआ
अमावस्या की उस रात
शमशान में,

रोज़ रोज़
कहाँ मिलता था सौभाग्य
रूहों को
बैठना
कवि सम्मेलन में!

मुआवज़ा

दिया जाता है
भोपाल गैस पीड़ितों को
अंतिम मुआवज़ा,

तीस साल की रात,
और
सुबह के बाद
चालीस बरस का बुढ़ापा।

मोटिवेशन

करने दूँ
आपको
हेरा फ़ेरी,
कारोबार आपका
जानकर भी
चलनें दूँ!

है यही
मोटिवेशन
आपकी,
तो यही सही।

Friday, November 13, 2015

सिक्के

सिर्फ़
तिजारत के लिए
ख़र्च करूँ
साँसों के सिक्के
मंज़ूर नहीं,

फ़क़ीरी के
मुकाम भी हों
हासिल,
तो कोई
बात बने!