Friday, January 30, 2015

बात

भगवान से मिलना है
-मैंने कहा,

क्यों
-उसने पूछा

बात करनी है
-मैंने कहा

हिन्दी,पंजाबी,उर्दू या अंग्रेज़ी
किसमे
-उसने पूछा

क्यों?
मैं सकपकाया...

ताकि
करूँ मैं फ़ैसला
कि भेजूँ तुम्हें
मन्दिर या गुरद्वारा
मस्जिद या गिरजा
-वो बोला

मौन रहकर
बतियाना हो तो?
-मैंने पूछा

Monday, January 26, 2015

सुबह

पीठ
मुड़ी है
तेरी
उस पर,
सूरज तेरा
अभी
डूबा
नहीं है,

अभी तो
हुई है
रात की
सुबह,
सुबह की
शाम
नहीं है।

Saturday, January 24, 2015

तस्वीर

जब भी
हूँ देखता
ख़ुद को
तस्वीर में
आती है
कहीं से
आवाज़
कि ये
पर
मैं तो नहीं,

किसे
फिर
हूँ चाहता देखना,
हूँ कौन,
ज़हन में
पहचान है
किसकी!

Tuesday, January 20, 2015

गुस्ताख़ी

ढूँढ़ती है
बे ऐतबारी में
चप्पा चप्पा
ताजमहल का,
अमरीका की
सीक्रेट सर्विस,
सुरक्षा में
राष्ट्रपति की,
डालती है
ख़लल,

होते
जागते
गर
शहंशाह
और बेग़म,
देखता
कैसे
फिर
गुस्ताख़ी
ये
अज़ीम
होती!

Monday, January 19, 2015

कभी

न इतरा
इस कदर
बनके
सिक्का,

एक
रूपये का
नोट भी
कभी
हज़ार
सा था....

Saturday, January 17, 2015

फूल गुब्बारे

छोड़ दिए
जब
मैंने
तमन्नाओं
बेहलावों
के रंग बिरंगे
फूल
गुब्बारे
ज़िद के
हाथों से,
जाने दिए,

देखते रहे
पहले तो
दूर तक,
मुझे,

फिर
हो ओझल,
आसमाँ से
अगली रुत
मुझ ही पर
बिन बताये
इन्द्रधनुष
के बहाने,
झमाझम
बरस गए।

नाराज़गी

नाराज़गी
उतर गई
देह के
पिंजर से
यही सोच कर

कहीं
रिश्ते के
लोहे को
पस्त न कर दे
ज़ंग
बनकर।

ख़ता

ख़ुदा ने
बनाया
मुझे
मुख्तलिफ़
क्या ख़ता
मेरी,
भरी
जब
नसों में
स्याही
निकले खूँ
किधर से।

टुकड़ा टुकड़ा

चलता रहा
जिस
मंज़िल को
ताउम्र
नंगे पैर,
जब पहुँचा,
नहीं मिली,

टुकड़ा टुकड़ा
बिखरी थी
यकीनन
उन राहों में
जिन्हें
छोड़ आया।

तैंतालीस

तैंतालीस में भी
जब तू
नहीं है
खुश,

किस बात की
है
ग़लतफ़हमी
कि
सैंकड़े पे
तू
ख़ुदा होगा?

Friday, January 9, 2015

घर

चल जा
अब
घर
अपने,
पहाड़ के
पीछे वाले,
पौ फट चुकी,

देख लेगा
जो तुझे
कोई
आसमाँ में
दिन के उजाले,
तो
मेरे चाँद,
क्या सोचेगा!

Wednesday, January 7, 2015

आँखें

आपकी
हसीन
आँखें
देखीं,

इनके
क़त्लों का
प्रायश्चित
कीजियेगा
ज़रूर,

इन्हें
दान
यकीनन
करवाइयेगा।

बोझ

बड़ी
शान्ति
मिली
भण्डारा
करवा के,

भण्डार का
बोझ था
बड़ा
मन पे।

Saturday, January 3, 2015

दोपहर

चल
जाग
मेरी क़िस्मत,
दोपहर
होने को है,

पिछली
रात का
वादा था
तेरा,
रात
अगली
आने को है।

जहाँ से

ज़माना
गुज़र गया
आपके
यहाँ से गुज़रे,

कौन
गुज़रे
अब
इस गली से
जहाँ से
आप गुज़रे...

गाली

कहीं
दे तो नहीं दी
गाली
मैंने
अपने ही
ख़ुदा को
समझकर
उनका!

हो नहीं सकता
आधे जहाँ का मालिक
जो था न
अधूरा....

हाँडी

चढ़ा
तो लूँ
देह की
हाँडी
बहलावों की आँच,
मगर
काठ की है,

क्यूँ करूँ
ज़ाया
आत्मा की
भात
जो
पकाने को है।

Friday, January 2, 2015

डीज़ल

न समझ आया
जब
कोई
वाजिब
इस्तेमाल
इकठ्ठा किये
पैसे वाले डीज़ल के
ड्रमों का,

ख़ुद के
वजूद पर
छिड़क कर
आग लगाने के
काम आया।

Thursday, January 1, 2015

आवाज़

आई है
फिर आज
अज़ान की
आवाज़
पर मस्जिद से नहीं,

हूँ दूर
मस्जिद से,
कहीं अंदर से
उठी है आज
ढूँढ़ते
उसे