उलझा के रखा
है मुझे
कि जागूँ न,
कमाल तजुर्बा
आपका
मेरे ख़ुदा,
गर जानूँ न!
हैं कायनात में
कई आसमां,
आसमानों में
सितारे कई
मुझे इनकार कहाँ!
क्या है
मगर
ये आँख
जिसमें
आसमां भी हैं
सितारे भी!
ऐ ज़िन्दगी
मुझे ख़ुश कर
हैरान कर
मेरा मन बहला,
कर मेरा मनोरंजन
मेरा ध्यान खींच
मुझे दिखा
बता
सुना,
हूँ आया
तेरे खींचे
बुलाये
मेरी कद्र कर,
रखूँ तुझे फ़ैरिस्त में
फिर लौटूँ
कुछ ज़ोर लगा।
पहाड़ी की उस चोटी से
लौटते समय
रास्ते में
सड़क किनारे
है एक छोटा सा वीरान मन्दिर
न जिसमें कोई मूर्ति है
न पुजारी,
न घंटी है
न चारदीवारी,
चिराग भी किसी नें
बरसों से अब जलाया नहीं,
कोई यहाँ आया नहीं,
रहते हैं उस दो हाथ के मन्दिर में
बस दो जन,
एक वो शख्स़
जो गिरा था
जीप संग
वहाँ से
खाई में
उस रात
एक मुद्दत पहले,
दूसरा
उसका भगवन
जिसकी मर्ज़ी थी|
नहीं पहुँच पाईं
न जाने कितनी किरणें
ध्वनि तरंगें
और न जाने क्या क्या
मन्ज़िल तक अपनी
बीच में आ जाने से तेरे,
तेरे साये के नृत्य में
ईश्वर का
मोर्स कोड है।
बच्चो
बनना बेशक
तुम
हमारे जैसा तीर,
चढ़ना
मगर
किसी और कमान,
खींचना कोई और
प्रत्यंचा,
लगना किसी और
लक्ष्य!
तूने
जाने में
बड़ी जल्दी कर दी
मेरे दोस्त,
दुनिया
अभी भी है वही,
ज़िन्दगी
अभी भी है वैसी,
यकीनन था राज़ कुछ और
तूने जानने में
ज़रा जल्दी कर दी!
न होता सुना
मैंने वो गीत
तो ज़रूर समझता
प्रतिभावान संगीतकार गीतकार
सड़क पर मेरे पीछे चलते
उस फटेहाल
नौजवान को,
अब इस उधेड़ बुन में हूँ
कि क्योंकर होगी
उसके वैसे जीवन की
वो तर्ज़
क्या और क्यों होंगे
उन बोलों में
उसके बोल!
काश होते
बचपन और जवानी में भी
बुज़ुर्ग
ये सियासतदान,
दिखते और लगते
खोजने वालों को
ऐसे ही
नेक
और
पाक!
कह न दूँ
किसी नामुनासिब
शै को ख़ुदा
या इलाही
बड़ी उलझन में हूँ,
मजबूरी में ढोता हूँ
ख़ुदी का बोझ
मुझे मुआफ़ करना!
ख़ुदा की तरह
ही हो
उसी का
हर ज़र्रा,
बहुत मुमकिन है
उसे ही
नामंज़ूर हो,
होगी उसकी भी
कोई तमन्ना
जो
कुछ और बना|
लाखों
लटके हैं
उल्टे
महीनों से
अंधेरे गर्भों में,
अधर
भरे हैं
इंतज़ार में
ज़िन्दगी की
जिसके आप
शुक्रगुज़ार नहीं!
तड़पता हूँ
क़ैद गोली सा
जिसे बात बात पर
दागता हूँ,
मिल जाती है
जलकर
उसे
खुली फ़िज़ा,
मैं पीछे
फिर
नली में
धूएँ सा
भटकता हूँ !
उनके मिलने में
अब वो
जोश नहीं,
उंगलियों से उंगलियाँ
आज छुई उन्होंनें,
जो
कभी
हथेली की लकीरें
मिला
मिलते थे!
चाँद
कितना बड़ा होगा तू
जो इतनी दूर होकर भी
दिखता है,
या है,
बता,
बहुत क़रीब
उस पहाड़ के ऊपर
और
न मिल सकने का
बहाना ढूँढ़ता है!
चलते फिरते
पंडितजी
के झोले में
होंगे
कुछ चावल
जिन्हें पकड़ाकर
वो पकड़ते हैं,
होगी
एक पतरी
जिसे खोल
वो बंद सबको करते हैं,
होगा नहीं
मगर
झोले में
कोई
भगवान
जिसके लिए वो मन्दिर बुलवायेंगे,
बाक़ी की बात
वहीं
समझायेंगे|
भीग ले
कुछ देर
साफ़
बारिश के पानी में
मेरी पीठ पर बंधे
ईश्वर के बच्चे,
झुका लेने दे
खुली छतरी
पैरों के पास
एक तरफ़,
अंधी कारों
के बेसब्र पैरों से उछलते
निज़ाम की टूटी सड़कों में भरे
नियती के कीचड़ से
तुझे बचाने|
गेहूँ की
खड़ी फ़सल
गिरने पर
की है
पति पिता बेटे
नें
ख़ुदकुशी,
पति पिता बेटे की
खड़ी फ़सल के
गिरने पर
क्या करें अब
पत्नी बच्चे माँ बाप?
ग़ौर से देखूँ अगर
तेरे क्रिया कलाप
तो माफ़ करना
ऐ बशर,
करने को
तेरे पास
कुछ ख़ास
नहीं है,
ज़िन्दा है तू
इत्तेफ़ाकन,
वर्ना
नहीं है!