Friday, May 29, 2015

मंशा

संवारकर बाल
कंघी से
तूने
मंशा जताई है,

सुलझाना चाहता है तू
सब उलझनों
के खम,
निराशा उक्ताई है|

पोटलियाँ

यही सोच कर
उस मज़दूर औरत ने
पीठ पर लादी
पाँच पोटलियों को
धीरे से उतारा
पटका नहीं,

उन्हीं में से एक में
कहीं
था
बच्चा
उसका।

Wednesday, May 27, 2015

त्यागपत्र

ले सम्भाल
अपना निज़ाम,
मेरा त्यागपत्र
पकड़,

स्वरोज़गार भला
तेरी नौकरी से,
दुनिया!

Monday, May 25, 2015

समझा

ज़िंदगी का ब्राण्ड
मेगापिक्सेल
रैम
स्क्रीन साइज़
फ़ीचर्स न बता,
इनसे करेगा क्या
ये समझा!

जंग

माफ़ करना
मेरे दोस्त,
वो जंग
मेरी न थी,

मौत तो
मेरी थी
यकीनन,
वजह
मेरी न थी।

बहार

जवानी तुझपर,
मेरी जान,
बड़ी
देर से आई,

नादानी के
पत्ते झड़े,
तो बहार आई!

Sunday, May 24, 2015

हवा

यकीनन
गुब्बारों में
हवा नहीं
खुशियाँ होंगी भरी,

तभी थे भारी
बच्चों की
हल्की बाज़ुओं में,
और फूटे
तो
वो
रोये बहुत...

फन

इंसान
ज़िंदा तो तू है
बेशक़
हज़ार दसियों
बरस से,

तेरे दीमाग़ का फन
उठ रहा है
कैसे
मगर अब,
तेरी सोच की पूँछ पर पड़ा है
जब से
सूचना क्राँति का
पैर!

Friday, May 22, 2015

फिर क्यों

ज़िन्दगी
जानता हूँ
तू बहुत दूर निकल जायेगी,

पीठ पर बाँध मुझे
कहाँ से कहाँ
पहुँच जाएगी,

फिर आज से
मोह है या डर मुझे,
क्यों छूटना भी चाहता हूँ
और नहीं भी!

Thursday, May 21, 2015

नफ़रत

मत कर
इतनी नफ़रत
मुझसे
मेरे रक़ीब,

तेरी ही
पिछली
दुआओं से हूँ
आज तक
आबाद,
ज़हे नसीब।

Wednesday, May 20, 2015

बात

नैय्या को डगमगाना
और उसे डुबाना
दोनों अलग बात,

नियती की मंशा
और आपका डर
दोनों अलग बात...

Monday, May 18, 2015

पन्ने

बम फटा है कोई
मगर
पन्ने पर नौंवें,
ज़लज़ला कोई उठ कर थमा है
पास ही के सफ़े पर,

हुआ है फिर एक मुज़ाकरा
पन्ने पर दूसरे,
कोई गुप्त समझौता चुपके हुआ है
चौथी दफ़े पर,

पाँचवें पन्ने पर किसी ने की है
पुरज़ोर आवाज़ बुलंद,
छठी तह में अभी तक दबी है
नाउम्मीदी लौ जलाकर,

बीच के पन्नों में दिलाई है किसी नें
होश की नसीहत,
इश्तहार बन बिकी है हक़ीक़त
अगले ही पन्ने पर,

अंत से पहले
की है
ज़िन्दगी ने
खेल बन
दिल बहलाने की एक दिली कोशिश,
हाशिये की आवाज़ों ने
तस्दीक की है,

आख़िरी पन्ने पर हुई है
एक नई शुरुआत,
पहले पन्ने पर जिसको
चुनौती मिली है।

Saturday, May 16, 2015

कैमरा

लैंस
अपर्चर
सेंसर्स
ज़ूम
फ़ोकस
शटर

सब हैं
आँख के
कैमरे में,

याद्दाश्त
की मैमोरी भी है
वाह!
ताउम्र के लिए!

स्मारक

ज़िंदगी का ताजमहल
उतना बनाऊँ
जितना मेन्टेन कर सकूँ,

स्मारक हो मेरा
मकबरा न बने।

Friday, May 15, 2015

मस्जिद

ख़ुदा जिनकी
मस्जिद में था
उन्होंने सिजदा किया,

हमारे दिल की बात थी
हमनें गले लगाया।

मलाल

बड़ा मलाल था
उनके छूटने का,

वक़्त गुज़रा
तो
उनको पकड़ने पर भी
सवाल आया|

ख़ुद

नानक
कृष्ण
राम
हज़रत,
उन्हीं को बुलाओ
बड़ी सख़्त ज़रूरत है,

ख़ुद आकर
पढ़ सुनायें
समझायें
अपनी बातें,
यहाँ बड़ी ग़फ़लत है।

Thursday, May 14, 2015

सुना

मत कह
पढ़ने को,
सुना दे,

रूह
बुझी बुझी सी है,
कुछ कर,
जला दे!

Wednesday, May 13, 2015

फ़र्क

हे ईश्वर,
तुमने गाय को
बेज़ुबान बनाया
मर्ज़ी तुम्हारी,

रोटी और
गत्ते में
मगर
फ़र्क तो समझा देते उसे,
मेरे मालिक!

Monday, May 11, 2015

मनीप्लान्ट

एक मनीप्लान्ट था
जो छूने को था
छत,

और एक व्यापार था
जो ज़मीन से उठने को
राज़ी न था,

काश
घूरा होता
व्यापार को भी
दिन रात
मनीप्लान्ट की तरह
लालाजी नें।

देर

होनहार था बड़ा,
यकीनन जानता होगा
सुलगाना आग
सीली लकड़ियों में भी,

होता न
इसी का
अंतिम संस्कार
तो शमशान के
भीगे लट्ठों का भी
ढूँढ लाता
कोई इलाज,

मज़दूरी की तरह
आग भी आज
इसे
देर से मिलेगी
सम्भवतः।

झोला

वीरजी,
झोले के अंदर
कुछ नहीं है,
खाली है,

बाक़ी की उम्र भी अगर
रहोगे ढूँढ़ते भीतर,
टटोलते
खंगालते रहोगे,
तो भी
नहीं मिलेगी
इसमें
कोने में भी,

वीरजी,
मानो मेरी बात
झोला ही
ज़िन्दगी है।

Wednesday, May 6, 2015

रथ

चलाओ
फिर
जल्द
कोई
धर्म का रथ,
कुछ हवा चले,

बुझते तन्दूरों में
फिर आग जले
कुछ नया पके|

पूँछ

होड़ का
हाथी
था यद्यपि
कब का
मर चुका,

इन्द्रियों का महाउत था
कि ज़िद की
पूँछ से
अभी तक
लिपटा था|

Monday, May 4, 2015

पर

उड़ते
बैठते
विचरते हैं
बेख़ौफ़
रिआया के परिंदे
सचिवालय में
छुट्टी के दिन,

नहीं होती
जहाँ
उन्हें
इजाज़त
बाक़ी दिनों
पर भी मारने की।

प्रसाद

घटनाओं के ताप में
वक्त के चूल्हे पर
मजबूरी के चिमटे में
नियती के हाथ नें
तुम्हें
पका ही दिया...

बिना नमक के भी
अब नमकीन हो,
स्वादिष्ट हो,
पौष्टिक हो,
ईश्वर का
प्रसाद हो!

Saturday, May 2, 2015

अंगूर

यूँ सड़क पर
पैर तले
कोई अंगूर
न दबे,

बेहतर है
कि मय बने,
किसी को
सुकून दे!

तस्वीरें

तस्वीरों में
गति है
जो ठहरों को
दिखती है,

है एक
ध्वनि,
खामोश ज़हनों को
सुनती है|

परतें

उन लाखों तस्वीरों का क्या
जो खींची हैं जीवों नें
आँखों से
ज़हन में रखीं हैं,

कितनी परतें हैं दुनिया की
कहाँ कहाँ रखी हैं!

याद

अगले जन्म
कर लूँगा
अरमान पूरे
जो होते
दिखते नहीं,

रूह भूल भी
जाये अगर
मिट्टी याद रखेगी|

Friday, May 1, 2015

थाली

हक़ीक़त से रूखे
चावल,
नियती सी पतली
दाल
के बावजूद,
है ख़ाली अभी
उनकी आस की थाली,

डालें
मास्टरजी
जो एक मुट्ठी
ज्ञान के दानें भी
तो भरे
सब समझनें को आतुर
बच्चों के
विश्वास का पेट।

पानी

आईने
इतना स्पष्ट भी न हो
कि बुरा लगे,

तेरा पानी
शराब हो
ज़हर न लगे।