Wednesday, December 28, 2016

आरे

आपणी
तरजणी
ते अँगूठे नाल
कदी मेरे बुल्लाँ ते
हासा ताँ लेआ,

तजुर्बेयाँ
खत्तेयाँ
दी चपेडाँ दी थाँ,
आपणे पोले पोटे
मेरी सुक्कियाँ गल्लाँ नूँ ला
मेरे पिता परमेश्वर,
मेरे हँजू ताँ पुंज,
किसे आरे ताँ ला!

कहीं और

अब कहाँ
रातों रात
इंद्रधनुष
अपने रंग बदले,

आसमान से कहो
कि सूरज को कहे
कि बादलों से कहे
कि कहीं और
बरसें!

चलो

चलो चलकर
कोई ज़िन्दगी
बचायें,

ख़ून ए पाक़ से
खेलकर
नहायेंगे
कहाँ कहाँ!

कुछ और

खेलते हैं
नाती संग
आप
पर
खुश कुछ और तो होइए!

ये आप ही हैं
तैयार
जीने को
मरने के बाद!

एक अक्षर

फड़फड़ाती
पताकाओं वाले "है" से
इति के स्तम्भ वाला "था"!

एक अक्षर से भी क्षीण निकली
तेरी वजूद की गाथा।

Tuesday, December 27, 2016

सड़क

"आ जाओ माँ,कोई गाड़ी नहीं आ रही,सड़क क्रॉस कर सकते हैं!" -
नेत्रहीन माँ का दायाँ हाथ पकड़े
पाँच साल का बेटा बोला,

"हाँ, हाँ माँ कोई गाड़ी नहीं आ रही, भऊ भऊ!" -
माँ के बायें हाथ से रस्सी में बंधा
नन्हा मोती भी इधर उधर देखकर बोला...

Friday, December 23, 2016

पैग़ाम

भेजा है
पैग़ाम
देखें
कब मिले,

कब आये
जवाब
हमें कहाँ मिले!

Thursday, December 22, 2016

शुक्रिया

घिसे तो होंगे ज़रूर
तेरे ब्रेक पैड,
मोशन भी टूटा होगा,
एक आध मिनट की
हुई भी होगी देरी तुझे,
और बस पाँच एक रूपये का ही
हुआ फ़ायदा होगा,

पर
बहुत शुक्रिया तेरा
ओ विरल बस के ड्राइवर
रोकने और चढ़ाने का
सड़क किनारे खड़े उस इकलौते बच्चे को
पहुँच गया जो
आज भी
समय पर
गाँव से दूर
अपने स्कूल!

Wednesday, December 21, 2016

रूख़सत

बड़े
एहतमादो एहतराम से
हम
हुए
महफ़िल से रूख़सत,

वहीं रहे
फिर
ताउम्र
पर वहाँ न रहे।

शिकवा

सिरहानों से नहीं है
सपनों को
शिकवा,

नींद ही
उड़ी है
दुनिया की
मख़मल के
पत्थरों पर...

फिलहाल

हमें मालूम है
आपके
सच की सच्चाई,

फिलहाल
हैरान हैं
झूठ के दावे पर...

Sunday, November 13, 2016

किनारा

कितना दूर
आ गया
मैं
बहते बहते,

दरिया के बीच ही
किनारा हो गया।

Sunday, November 6, 2016

ज़रूरत

क्या है ज़रूरत
मन्दिरों गुरुद्वारों की
देहात में,
हर कहीं तो
मौजूद है
वो,

शहरों में
बनाओ
जहाँ
सिर्फ़ फ़्लैट हैं!

हिसाब

मॉलिक्यूल मॉलिक्यूल का
हिसाब देखा
क़िस्मत की उंगलियों वाले
ईश्वर के हाथों में,

हैरानगी से देखता हूँ
वो चावल
वो दाल के दाने
जो पहुँचे हैं मेरी थाल में
लंगर की पंक्ति में!

फ़ुर्सत

बेशक़
हूँ ज़िंदा,
पर पूरा
वर्तमान
न समझ,

एक बड़ा
हिस्सा हूँ
अपने इतिहास का
फ़ुर्सत में
पढ़ता।

धूप

उसकी
अदृश्य
कार पर तो नहीं,
उसके
किराये के मकान
की छत पर थी
एक
सन रूफ़,

सिर्फ़
सर और गर्दन ही नहीं,
पूरा वजूद
निकाल
बैठता था वो
परिवार सहित
इतवार की गुनगुनी धूप सेकने
हर सर्दियाँ।

Tuesday, November 1, 2016

सौरमण्डल

एक पूरा सौरमण्डल था
तिड़ तिड़ जलता
उस लौ में,

एक मैं
बाहर था
देखता,
एक सूक्ष्म
कहीं भीतर
तपता।

Monday, October 31, 2016

लैम्पपोस्ट

नस्लों
के फूलों
की डण्डियों से
हटाये जो भारी बस्ते
तो कुबड़े निकले,

सूरजमुखी
की कुदरत
के वारिस
समझदार
मजबूरियों के
लैम्पपोस्ट निकले।

Saturday, October 29, 2016

कमी

एक और एक
ग्यारह हुए
तो मुश्किलें
नौ दो ग्यारह हुईं,

उन्नीस बीस
कि कमी थी
इरादों में,
पूरी क्या हुई
कि पौ बारह हुई!

दुआ

दिली ख़्वाहिश है
ज़माने की
कि वहाँ पहुँचे
जहाँ जाता है!

कोई बदल दे
जहन्नुम को
जन्नत में
दुआ है मेरी!

हाज़िर

तेरे दर से
गर हूँ
ग़ैरहाज़िर
तो कहीं तो
हाज़िर हूँ,

तू भी तो
मुफ़लिसों के ख़ैरख़्वाह!
कभी
कहीं से हो ग़ैरहाज़िर
कहीं हाज़री दे!

लिहाज़

कपड़े पहन कर तो
नाचा कर
ऐ पैसे!

रस्मन
अभी भी है
सभ्य
ये समाज,
कुछ तो
लिहाज़ कर!

Friday, October 28, 2016

कौन

तुम्हारे
चेहरे के पीछे
ये कौन है?

बोलता है
तुम्हारी आवाज़ में,
ख़ुद मौन है!

Wednesday, October 26, 2016

दस्तक

जाने
कौन सा
अनिष्ट
मेरी दहलीज़ पर है,

दस्तक दी है
हराम नें
मेरी हथेली में
फिर आज।

Monday, October 24, 2016

सच

सच बता,
सच!
तू कितना सच है?

है झूठ के शहर में अकेला
या तेरे
कई सच हैं!

Sunday, October 23, 2016

देव

परम् आनंद है
अनभिज्ञता,

रोमांचित हैं
देव,
तभी
मानव हैं।

Saturday, October 22, 2016

तलाश

जब जब भी मैंने
पूछा उनसे
कि क्या
जानते हैं वो
शान्ति का रास्ता?
बता सकते हैं मुझे?

शरीफ़ाना सा मुँह बना
उन्होंने
हर बार
खोला
बाज़ार का रास्ता!

Friday, October 21, 2016

बोलचाल

दुनिया
तुझसे रूठने को
हूँ मैं,

हमारी बोलचाल
टूटने को है,

तेरा झूठ है अब
मलिन हो चुका,

मेरा सब्र भी
अब टूटने को है।

जल

सूरज
पूरब के क्षितिज में था
और मैं
पहली मन्ज़िल पर,

चौथी मन्ज़िल
के पड़ोसी ने
जल उसे चढ़ाया,
चढ़ा मुझे!

Tuesday, October 18, 2016

नदी

ख़ामोश पर्बतों पर
ग्लेशियरों के सफ़ेद कम्बलों से रिसती
महावृंद बूँदों की ख़ामोशी
तिब्बत किन्नौर की गलियों में
सतलुज बन
क्या पुरज़ोर गूँजती है!

दुनिया समझती है जिसे
हज़ारों बरस से नदी
हाथ पकड़े अदृश्य बेटियों की
ब्रह्माण्डीय टोली है!

Monday, October 17, 2016

भविष्य

ज्योतिष नहीं हूँ
मगर देख रहा हूँ
भविष्य,

नहा धो
हो तैयार,
छोड़ पीछे
संयुक्त राष्ट्र के मसले,
बस संवार कंघी से
अपने ही सर के बालों की उलझनें,
सजा मुस्कुराते चिकने गालों पर
माँ के प्यार में भीगा चमकता बोसा,
निकल रहा है
गलियों से
जुड़ते सैलाब की तरह,
टाँग पीठ पर
आज भर बस्ते
स्कूलों की ओर...

चावल

आलोचकों नें ढूँढी
व्याकरण
मात्राओं की
त्रुटियाँ,

हमनें
सहज भाषा के
कच्चे पक्के
चावलों से
भावनाओं का
पेट भर लिया।

सरे आम

सरे आम
चौराहे पर
पेड़ से
टाँग दिए
सुबह सुबह
बाज़ार में,

तालिबान थे
इन्सां
उन
बेबस
केलों की
नज़र में!

देखते देखते

देख
सुबह
क्या हो गई?

देखते ही देखते
दोपहर
फिर शाम हो गई!

होगी रात
तो कौन मानेगा
यही सवेर थी,
सुबह
किसे याद होगी
क्या रात थी!

लंका

रावण
कुम्भकर्ण
मेघनाद
से खड़े हैं,
हर शहर
कस्बे
गाँव
के आकाश में
मोबाइल टावर,
तरक्की का सेतू लाँघ
क्या क्या
पहुँच गया
लंका से
यहाँ!

ख़ज़ाना

बीनता हूँ
नदी का
सूखा किनारा
शायद कोई
ख़ज़ाना मिले,

दिखे कोई
पानी में उड़ता
क़ैद परिंदा,
कोई बदनसीब
डूबा
अफ़साना मिले।

Sunday, October 16, 2016

बीहड़

क्यों बजाते हो
यूँ अटूट लय में
सुनसान बीहड़ की
इन सड़कों पर
ढोल घण्टियाँ
यूँ चलते चलते,
कौन देखता सुनता है
यहाँ!
-पूछा मैंने
नंगे पैरों की कन्धों से,

अजब तेज वाले
पसीने से तर बतर
वो मीठे
पके
कोमल चेहरे
मुस्कुराये
और बोले-

जानते हैं आप
किसे हैं उठाये
पालकी में
हमारे वजूद?

और
असंख्य हैं
जीव निर्जीव
जो रहे हैं
सुन देख
अपने प्रिय देव,
करते सिजदा
हर जगह...

Saturday, October 15, 2016

बहस

कोई
उन्हें भी तो पूछे
जिनके नाम पर
ये बहस है,

क़ैद में ख़ुद को
चुनवाने की आज़ादी
है किसका हुनर
जिसका इतना असर है

दम

वो
सुनने में
थक गए,

हम
करने में
अभी
बेदम नहीं।

दिल की बात

तू जानता है
मेरे दिल की बात
ओ चाँद!
आज छत पर
बस एक मैं हूँ एक तू है!

ये किस इम्तिहान में
गिरफ़्त हूँ
ज़मीं पर,
खुले आसमाँ में तू है!

Wednesday, October 12, 2016

स्मारक

वो शब्द
अब कहाँ रहे मेरे,

किसी दिन
किसी लम्हे
किसी एहसास से उठी
किसी तरंग से काँप
स्याही बहा
कलम को बिना नदी की कश्ती बना
बिना बने
बने होंगे,

कहते कहते
मेरी बात
गए सूख होंगे,

मैं गुज़र गया
होऊँगा,
वो स्मारक बन
रह गए होंगे,

वो शब्द
अब कहाँ रहे मेरे,
कभी रहे होंगे!

Tuesday, October 11, 2016

लाचारी

ज्वारभाटे से
जोश के तीर
इरादे की कमान पर
सम्मोहन की प्रत्यंचा चढ़ा
तैयार तो थे
करने अपनी बुराइयों का दहन
क्षणभंगुर आत्म निरीक्षण के रावण,

लक्ष्य की पहचान
की अनभिज्ञता
के असमंजस में
किंकर्तव्यविमूढ़ता नें
क्षत्रिय अहम्
लाचार कर दिया।

Monday, October 10, 2016

बनवास

अपने अंदर के किसी को
आज मारूँ,
अपने अंदर के किसी को
आज आज़ाद करूँ,

अपने अंदर के किसी की
भटकन भरी तलाश का
करूँ अंत,

कर सरयू किनारे
उसी घर का रुख़,
सुक़ून के बनवास का
शुभारम्भ करूँ।

दृष्टिकोण

शुक्र है
आपके दृष्टिकोण से
ये
बस
पीठ किया
टाँगें पसारा
मुँह फुलाया
नौ ही था,

आप पर
तपाक
उंगली उठाये
मेरे दृष्टिकोण के
थुलथुल
छः नें तो
अनबन की
छोड़ी ही न थी
कोई कसर।

Tuesday, September 27, 2016

यूँ

करनी ही थी
तो
काश
ख़ुदकुशी यूँ करते,
अपनी देह
साँसों
तमन्नाओं पर
छोड़ते दावा,
दुनिया के लिए
जी कर मरते।

Monday, September 26, 2016

ठोकर

उस शख़्स को
और उठने से रोकने का
बस यही है उपाय
कि उसे ठोकर न मारी जाय,

हज़ारों ठोकरों से
बना है वो,
कहीं और
बन न जाए।

Friday, September 23, 2016

रंग

रोम रोम पर तेरे
क्या ग़ज़ब
हिना का रंग,

जैसे
ब्याही हो रूह
अपने भाग्य के संग!

प्यास

बुझा तो दूँ
तेरी प्यास
मगर
पानी
खारा
पिलाऊँ
कैसे?

तेरी नज़र
है जो
मेरी आँखों के प्यालों पर,
आँसुओं के जाम
बनाऊँ कैसे!

Thursday, September 22, 2016

बुक्कल

काग़ज़ी बुक्कल मार
चुप चुपीता बैठा सी ओ
चमड़े दियाँ दीवाराँ दे ओहले
लुक के
मार चौकड़ी,

मैं लभ के
जदों
"जा चला जा" केहा
ताँ बाज़ार जा
ख़ुद नूँ वेच
चा दा कप्प लै आया
वास्ते मेरे
मेरे दस्साँ दा
ओ पुराणा नोट।

Wednesday, September 21, 2016

दावतनामा

आपको
खून से लिखा
भेजेंगे दावतनामा
जब आपको
हम ख़ुद बुलायेंगे,

इसे
पैग़ाम ए जार* समझिये,
क़यामत को
कौन समझाये
हमारे दोस्त
हमारे कहे बिन
न आयेंगे।


*जार=पड़ोसी

Monday, September 19, 2016

तारिका

इतनी बड़ी
सिने तारिका
बम्बई से इतनी दूर
हिमाचल के दूर दराज़
गाँव आयेगी
भरी दोपहर
और वो भी
एक ढाबे वाली का
मन बहलाने
सोचा न था,
वो भी
बीस साल पुराने
ब्लैक एंड वाइट टीवी में,
अद्भुत!

Sunday, September 18, 2016

मिथ्या

निशाचर की सुबह
दिवाचर की संध्या,

मानव का सच
किस किस की मिथ्या।

स्केच

ये सारी दुनिया
कहीं
एक स्केच ही तो नहीं,

नासमझ पछतावे
फैली स्याही,
और भय
मिटाने की
रबड़ तो नहीं,

किसके हाथ है
पेंसिल
दिखे तो,
कहीं
मैं भी तो
लकीरों में
एक लकीर तो नहीं!

स्टेडियम

स्टेडियम से निकलते
भीड़ देखी
तो सोचा
कि मैच
ख़त्म हुआ,

सीढ़ियाँ
उतर कर देखा
तो दर्शक दीर्घा के नाम पर था
दीवारों से घिरा
एक अंधेरा कोना,
और ऐस्ट्रोटर्फ़ के नाम पर
बस एक
चटाई,

शायद अभी भी
कार पार्किंग की वो बेसमेंट
असामाजिक ही थी,
ताश के खेल का
छुपा
खामोश
स्टेडियम,
सट्टे का अड्डा।

Saturday, September 17, 2016

हद

जब चाहो
जितना चाहो
माँग लो
मेरी इंसेक्योरिटी की हद तक,

उससे परे
जो निकलो
माँगने
तो साथ ले चलो।

Thursday, September 15, 2016

तितली

शीशे की दुनिया से
टकरा टकरा
फड़फड़ाती
रूह की
तितली को
आज़ाद करूँ
न करूँ?

जाने
यही खेल है
उसका,
या वाकई क़ैद है वो!

Wednesday, September 14, 2016

अक्स

दरारों से
हमनें
जो अक्स देखा
वो तेरा ही था,

दर ओ दीवार
कोई और थे,
पता तेरा ही था।

शब्द

यूँ तो
दूर हूँ आप से,
करीब तीन सौ बरस,

शब्द आपके
गूँजते हैं जब
वजूद में मेरे
बारम्बार झाँकता हूँ भीतर
मिलने को तरस।

Wednesday, September 7, 2016

निर्वाण

अभी
कुछ दिन
निर्माण के
और,

मेरे परिवार
के निर्वाण को
और...

मामा

तेरा तोता मामा
तो पास हो गया
कामगार के बच्चे!

डिग्रियों की दुनिया में
फेल होने के लिए ही सही
तू पढ़ने कब जायेगा?

Monday, September 5, 2016

दुल्हन

मेरी तरह
यतीम ओ मुफ़लिस निकली,
दुनिया की दुल्हन
पौ फटते
बाज़ार ओ रौनक़ की
अमीरन निकली।

Wednesday, August 31, 2016

कुट्टी

इधर
कुछ दिनों से
कविता की
कुट्टी है
मुझसे,

कलम की
टॉफ़ी दिखा
जब भी बुलाता हूँ उसे,
चुप्पी के गाल फुला
शब्दों की बाहें लपेट
मेरे दिल के कोने में
बेटी सी
बैठी रहती है रूठी।

Friday, August 26, 2016

एम्बुलेंस

108 नहीं ताँ
4 पैराँ दी एम्बुलेंस ही सही
शमशान दे आख़िरी अस्पताल तइँ,

दो मेरे मोडे ते
दो क़िस्मत दे सीने,

ऐ वतन
मेरे देशवासियाँ नूँ
कुज ना कहीं!

Thursday, August 25, 2016

यक़ीन

कौन करेगा,
आईने!
तेरे इल्ज़ामों पे यक़ीन!

यहाँ हर कोई
संवारता है
मुखौटा
दीवारों के पीछे।

Wednesday, August 24, 2016

इम्तेहान

इम्तेहान लेकर
गुज़र गईं
घड़ियाँ,

घबराये
किनारे
उस पार
रह गए!

Monday, August 15, 2016

आज़ाद

चाहता तो है
पर चाहता नहीं है,

खुला है जब पिंजरा
क्यों आज़ाद नहीं है!

Friday, August 5, 2016

जन्म

कब्रों पे
लगा दिये
पेड़ हमने,

गर्भ के
कणों का
पुनः
जन्म हुआ।

आलोचना

आलोचना की निगाह से
तासीर छूट गयी,
देह हो गई छलनी
रूह छूट गयी।

प्रतिध्वनि

वो कविताएँ
जो लिखूँगा
उस पार
कितनी हसीन होंगी,

बिना काग़ज़
कलम
आवाज़
रूहों के खुले सभागार में
गूँजेगी उनकी
ख़ामोश प्रतिध्वनि,

जिस्मों की धरती
भले
तब भी
अनजान होगी।

मदद

उफनते दरिया में
डुबो कर ही
नाख़ुदा ने
दम लिया,

मैं कहता रहा
मैं खुश हूँ
इस ओर,
मदद की ज़िद में
उसने एक न सुनी।

हाथ

अब
हम
अक्सर
हाथ जोड़
नमस्कार ही करते हैं,

जबसे
देखा है हमने
कई हाथ मिलाने वाले
कम ही धोते हैं।

कमाई

किसी ने धन
किसी ने पाप कमाया,

चित्रगुप्त की नौकरी में
यमराज नें
क्या नाम कमाया!

ज़रूरी

आपका
दुनिया में होना
ज़रूरी था
बहुत,

लाज़िम था
कि क़ायनात हो
मुकम्मल।

Thursday, August 4, 2016

रसगुल्ले

हिंदी की चाशनी में डूबे
डोरेमॉन नोबिता शिज़ूका जियान के रसगुल्ले
सरहद पार करते हैं जब उर्दू पश्तो की नन्हीं ज़बानों को तर,

कड़वाहट के अभिभावकों को सताता है
प्रेम की डायबटीज़ का मर्ज़,

मिठाईयों पर माँगते हैं पाबन्दियाँ
सताता है अगली नस्लों के सीधा सोचने का डर।

किश्त

अपनी इस ख़ता की क़ीमत
बस इतनी न समझ, रुक जा,

पहली किश्त है ये
ता उम्र चलेगी।

Monday, August 1, 2016

मन्दिर

घण्टियाँ ही घण्टियाँ
होंगी
यक़ीनन
खुले प्राँगण सी
इस देह में,

गूँजती है
मन्दिर सी,
जब भी चलती है
साँसों की हवा!

Wednesday, July 27, 2016

कप्तान

सानूँ पता नहीं सी
कि तुसी
सिद्धू हो,

असीं ताँ
समझदे सी
तुसी
कप्तान हो!

खू

तेरे
भम्बड़ भूसेयाँ च
मैं कमली
हो जाणा,

तू जा
खू च,
दुनिया!
मैं ताँ
नहरो नहर
आणा।

Monday, July 25, 2016

देर

आपके
मोक्ष के लक्षण
आरम्भ से थे,

आप
इंतज़ार में थे
सो देर लगी।

Thursday, July 21, 2016

कहाँ कहाँ

तेरे दस्तख़त हैं
कहाँ कहाँ,
कायनात को छेड़ा है तुमने
कहाँ कहाँ,

अब मिट्टी भी हो जाओ
तो क्या,
ज़मीन को पहले सा कर पाओगे
कहाँ कहाँ,

मेरी मान
ज़िन्दगी में इतना संजीदा न हो,
किस्मत ए यार से लड़ेगा
कहाँ कहाँ,

माना कि तेरे माज़ी के हैं
ज़ख्म हज़ार,
नए फूलों को खिलने से रोकेगा
कहाँ कहाँ,

जो करना है कर ले
इन साँसों से,
बाद में बहती हवाओं से करेगा इल्तजा
कहाँ कहाँ,

चल जा कर
बचा कोई ज़िन्दगी,
ख़ून ए पाक़ से खेल कर
नहायेगा कहाँ कहाँ।

शक़

बिना ईंधन के
घूमते हैं
कैसे
ये धरती
ये चाँद
ये सितारे!

अब तो
पूरा शक़ है मुझे
कि सपना देखता हूँ मैं,
मेरा ज़ोर है
लग रहा।

शर्त

एक छत है
मेरे और आसमान के बीच,

हटने को है
तैयार
मगर शर्त ये है
कि दीवारों से निकलूँ!

रास्ते

नहीं दिखते
जहाँ रास्ते
होते वहाँ भी हैं,

मंज़िलें
ब्याह लेती हैं जो आँखें
शेष रास्ते
उनसे
छुपा लेती हैं!

सोच

किन्ना
सोचदैं
चंगे कम्म नूँ
सेयाणेया!

कदे
माड़े परतावेयाँ नूँ वी
करवाइये
उडीक?

Wednesday, July 20, 2016

मुक्त

एक
"वाह" कह कर
वो
अपनी ज़िम्मेदारी से
मुक्त हुए,

एक
"आह"
आज फिर
ठगी सी
रह गई।

ज़िंदा

देख
अभी तक
ज़िंदा है तू,

कब का
मर चुका।

राक्षस

मौत को
यूँ
राक्षस न बना,

लोरी सी है
चूम के
सुलाती है!

चिंता

न रहे
हुण
ओ मुग़ल
न तुर्क,
ते ना हुण
ओ अफ़ग़ानी रहे,

सरहदाँ नूँ
हुण ए
सिर्फ़
एस तरफ़ दी
चिंता,
ऐना पंजाबियाँ तों
पंजाब बचाओण लई
ओ पंजाबी ना रहे!

लावा

हुण
एस तो हेठाँ
पाणी नहीं
लावा निकलेगा,

परत जा
किसान वीरा,
ज़मीन दे
सवालाँ दा जवाब
ज़मीन ते ही
मिलेगा!

स्नान

मत करो
यूँ
ज्ञान का स्नान,
करवाओ
अपितु
मस्तिष्क की
खुजली का
ईलाज पहले,

पुनः पुनः
डालते रहोगे
अन्यथा
वजूद पर
मूढ़ता की मिट्टी,
ऐ गजराज!

दुआ

उठा तो दूँ
आपकी समस्या
के समाधान
की दुआ में
अपने
बेबस
बेचैन
झिझकते हाथ,

पहले
मगर
समस्या के
आपको एहसास बाबत
मेरी मन्नत तो
क़ुबूल हो!

टाँग

आपकी
टाँग थी,
जहाँ
चल रहा था मैं,

मेरे
पैरों से नहीं
ज़हन से
अड़ रही थी।

पता

ज़रूर
मान लेता
आपको
ख़ुदा
गर उससे
मैं
मिला न होता,

आप सा
ही था
मगर
उसे
पता न था।

वक़्त

तेरे
बिखरने में
वक़्त है
अभी...

तुझे
बद्दुआ देने वाला
फिर
सोच में है
अभी...

Tuesday, July 19, 2016

गूगल

गूगल
से पूछ लूँगा,
आपका
दम्भ
कौन सहे,

एक की सौ
बताता है वो,
सुनाता नहीं है।

बुक्कल

बद्दलाँ दी बुक्कल च
ताँ होवणगे
बोतलाँ दे पाणियाँ दे
ख़ौरे
किन्ने दरेया,

जिमीदारा
धरती माँ दे
खाली सीने ते
तू ताँ
अन्ने वा
इंज ट्यूबवैल न चला!

एहद

डेमोक्रेसी का
ये एहद
बड़ा ग़मगीन है,

लूट के
तख़्त के एवज़
लूटने की इजाज़त
बड़ी संगीन है।

वादा

न मैं
करूँगा तारीफ़
न माँगूंगा
माफ़ी,
और न ही
अपेक्षा करूँगा,

करता हूँ
मगर वादा
कि जुडूंगा
ईमानदारी से
बनकर
कटी कलम
तुम टहनी से
देने मौका
फिर उग आने का
हमारी
साँझी
नसें।

Friday, July 15, 2016

खाते

छड्ड मीआँ
मुनाफ़ेयाँ दियाँ गल्लाँ,
हिसाब रहण दे,

लेखेयाँ दे
खातेयाँ नूँ समझ,
खातेयाँ च
लिखियाँ नूँ
रहण दे।

Saturday, July 9, 2016

विलुप्त

गिद्धों की
प्रजातियाँ
अब
विलुप्त
शायद
न हों,

हज़ारों
कैम्पों में
कूड़ा बीन
जीनें को हैं
निरंतर उमड़ रहे
उजड़े
रेफ़्यूजी लाखों।

ईद

मुहर्रम से पहले
ये ईद कैसी,

लड़ मरना ही है
तो ये विराम क्यों?

खिड़की

खिड़की भर
समुद्र थे
उन पाँच सितारा
कमरों में,

फिर क्यों
तड़पते थे
मछलियों से
वो लोग
दीवारों के
समंदर में!

राहें

तो क्या
जो इस मन्ज़िल से
लौटने की राहें
हज़ार हैं,

अंजाम ए आगाज़ की
अब तलब किसे
आगाज़ ए अंजाम की जब
बाहें हज़ार हैं।

चीख

गूँगियाँ
चीखदियाँ नें
वेखदेयाँ सार,

खौरै दीवार ते
ओ नें टंगियाँ
या मैं!

अमीर

सब कुछ
लुटा देने वाले
फ़क़ीर हैं हम,

शहंशाहों के
शहंशाह हैं,
इत्मिनान से यूँ
अमीर हैं हम!

हुनर

गर अभी भी है
आप में
वही
माँगने का
हुनर,

हाथ बढ़ा देने में
अब भी
नादाँ हैं हम।

Monday, July 4, 2016

ताले

कहाँ मानती है ज़िन्दगी
उम्मीदों पे ताले!

रुकी साँसों
की दरारों में
उग आती है
धड़कन बनके।

Sunday, July 3, 2016

गाँठें

शब्दों की गाँठें
क्या खूब लगाते हो,

देह के सबक के लिए
बे क़सूर रूह
फंसाते हो।

भाषा

भाषा
सही सीखी होती
तो आज
यूँ
सड़क पर न होते,

बिना दुश्मनी के
कोई क्यूँ लगाता
ढाबे में आग!
गर
"तुरन्त चाहिए मसालची"
की जगह
"मशालची" न लिखते!

माँ

माँ
बहुत स्वादिष्ट थी
आपके हाथ की बनी
दाल
सब्जी
कढ़ी
और चने भी!

आपके
मन्दिर का
प्राँगण भी
आपकी गोद की तरह था
सुकून से भरा।

अलविदा

गया तो था मैं
किसी को
कहने
अलविदा,

शमशान से लौटा
मगर
"जल्द मिलूँगा"
कह के!

सुबह

एक रात
ऐसी
सो के उठ
कि सुबह
आसमानी हो,

जिस्म हो
रूह रूह,
रूह
जिस्मानी हो।

Friday, July 1, 2016

सचखण्ड

किन्नी कोल नें
सचखण्ड दे,
हुण,
तनखैय्या,

पक्कियाँ शक्लाँ
दे पिच्छे
कच्चे किन्ने।

असीस

तेरी दित्ती
असीस
ताँ नहीं
तेरी हाय
ज़रूर लग्गी मैनूँ,

फेर सोचदाँ
जद नहीं लग्गी असीस
किवें लग सकदी
हाय किसेनूँ।

Wednesday, June 29, 2016

अर्पण

न ओ
मंगता ए,
ते
न ऐ
कोई
तमाशा ए,

इंज
न सुट्टो
सिक्के
पैसे,
अर्पण नहीं
समर्पण चढ़ावो।

तर्जुमा

मन्दिर में
अनायास ही
जब
मुँह से निकला
"सत् नाम"!
दीवारों से तर्जुमा
हो हो
गूँजा
"अल्लाह हू अक़बर"
"ॐ नमः शिवाय"

Tuesday, June 28, 2016

सूरजमुखी

सूरजमुखी की तरह
पलकों के फूलों को
सूरज के बोसों से
जगने दे,
पर्दों को हटा,

अलार्म के नगाड़ों से
सुबह सुबह
अपने मरघट का
गदर न जगा।

रफ़्तार

तेरी
फर्राटेदार रफ़्तार से
जो जो
छूट रहे हैं पीछे
उन्हें छुपाऊँ
या हटाता चलूँ?

ऐ ज़माने
किन से है तू
बता दे,
तुझे बनाता
या मिटाता चलूँ।

Sunday, June 26, 2016

दौड़

थोड़ी और तेज़
भाग
दौड़
दुनिया की,
लटकें  जो
तेरे अपनों
की भी
गर्दनें,
तमगों सी
जीत की
टहनियों से।

Saturday, June 25, 2016

दिल की

सोचता हूँ
तुझे
अपने दिल की
करने दूँ,

कहीं तू ही
न हो
ख़ुदा,
मेरा बच्चा
बना न हो।

सपने

माथा चूम कर
जगा लेती थी
माँ,

हमारे
बुरे सपने
देख लेती थी वो।

कब्र

समझ
इसी को
अपनी कब्र
मिट्टी नहीं
तो क्या,

हिल डुल
चल फिर
देख सुन
सकता है,
ज़िंदा नहीं
तो क्या।

खेल

तू
इतना नादान
तो नहीं,
कि सपने को
सपना
समझे,

कायनात
खेलती है
तुझसे
पीछे
जब
जागता है तू।

पंजाब

ये
इत्तेफ़ाक़ की बात
कि
पंजाब
इसे कहते हैं,

वो लोग
वो माहौल
वो खुशियाँ
अब यहाँ कहाँ,
वो बरकतों के दरिया
अब
कहीं और
बहते हैं।

Friday, June 24, 2016

आटा

केड़ा केड़ा तत्
गुन्न गुन्न
बणाया सी
तैनूं
पेड़ेया!
सोचेया सी
मुकावेंगा
किसे दी
भुक्ख।

इक तूँ ऐं
जो सुक्क सुक्क
फेर
लभणा ऐं
आपणा
गवाचा
आटा!

पेड़ा

केड़ा केड़ा तत्
गुन्न गुन्न
बणाया सी
तैनूं
पेड़ेया!
सोचेया सी
मुकावेंगा
किसे दी
भुक्ख।

इक तूँ ऐं
जो सुक्क सुक्क
फेर
लभणा ऐं
आपणा
गवाचा
आटा!

Tuesday, June 21, 2016

अर्पण

पुष्पों का वध कर
हे देव!
करता हूँ
आपको
अर्पण।

मैं

वो रहे
मेरे पैर
मेरे घुटने
मेरी टाँगें,

ये
मेरे हाथ
मेरी बाज़ुयें
मेरा धड़,
मेरा सर,

मैं भी
यहीं हूँ कहीं,
गूँजता
अदृश्य।

पुष्पम्

पुष्पम् अवध्
त्वम् समर्पयामि।

Saturday, June 18, 2016

भूल

अंत को
अंत
समझने की
फिर
भूल न कर,

किसी आरम्भ का
आरम्भ भी
नहीं
ये अभी।

सबक

किस किस को
सिखाता
मैं सबक,

ख़ुद ही
सीख कर
स्नातक हो गया।

Thursday, June 16, 2016

कैसे?

बता
तू
रुकेगा
कैसे?

कौन सा
दूँ
तुझे
झटका,
तू सुनेगा
कैसे?

Tuesday, June 14, 2016

मुक्ति

मोक्ष से मुक्ति
ही यदि
मोक्ष हुआ
तो?

इंसां
तू मूलतः
मुक्त हुआ तो?

Saturday, June 11, 2016

बारिश

धुल कर
क्या शफ़्फ़ाक़
सफ़ेद
चमक गई
चढ़ी रात में
ये भीगी वादी!

आसमाँ के
अंधेरों की नहीं,
दिल के सितारों की है
रूह की
ये वादी
आदी।

किले

कहते हो तुम
कि
राजा के किले की
ये धज्जी दीवारें
बिना ईंट गारे के
बनी हैं,

पसीने की
उन नदियों का क्या
जो दर्जों दर्जों में
बही हैं!

दरिया

रख
दिल पर पत्थर,
और
गुज़र जा,

हैं
और भी
लम्हें
इंतज़ार में
गुज़रने को।

बह जा,
ऐ दरिया!
लहरों में छिप,
मिलने
सागर से अपने,

रहे समझता
ज़माना
कि यहीं है तू,
दे जगह अपनी
किसी और
रवानी को।

बूँद

कह दो
आसमाँ से
कि
आज
न बरसे,

रूह तक
सूखा है
मेरे वजूद का पृष्ठ,
आँसू न समझ ले
किसी
बूँद को,
सुलग न जाए!

ख़्वाब

कुछ
अधूरे ख़्वाब
कतार में रखना,

उम्र ए रफ़्ता
हर हाल
रफ़्तार में रखना।

वो लम्हा

लौटा हूँ
आज
बाद बरसों,
वहीं,
ढूँढने
वही लम्हा,

बनकर
याद की हवा,
करता है
मेरे ज़हन के जंगल में
सायें सायें,
बिना दिखे!

सताता है
मुझे
किसी नन्हें की तरह,
खेलता
मुझसे
आँख मिचौनी
हाथ मगर
आता नहीं,

न मिलना चाहे
मुझसे
न मिले
बेशक़ मुझे,
कोई कह दे
उसे,

रखे
मेरी उम्मीद
ज़िंदा,
लौट आने की
सिहरन
जगाता रहे,

जा चुका हो
भले ही
बहुत दूर
हमेशा के लिए,
खिलखिला मगर गूँजता रहे
मेरे वजूद की वादी में
कि
अभी आया
अभी आया।

Saturday, June 4, 2016

झण्डा

जिसे
समझता है तू
अपनी ज़िन्दगी का
डूबता जज़ीरा,

हालातों के समन्दर में
हक़ीक़तों के तल से
फूटे
ज्वालामुखी का है
शिखर,
तेरे कभी न मरने के जज़्बे का
झण्डा।

दुआ

अपने ज़हन के
गिरजे में
गूँज तो सही
दुआ बनके,

मुमकिन है
सुन ले
ख़ुदा
ख़ुदी बनके।

Thursday, June 2, 2016

प्याला

पूरी सुराही
ज्ञान की
न सही,
एक प्याला ही
पिला दे,

ऐ वक़्त के दर
नहीं पूरी क़िताब
तो आज
एक सफ़ा ही
पढ़ा दे!

Tuesday, May 31, 2016

शिकवा

वो जो
एक शिकवा था हमें
आपकी
बेरुख़ी से,

आपके
ख़ुद ही पर
देखे जो
तसदीहे
तो पस-ए-मन्ज़र आया!

ज्ञान

ज्ञान
कहीं अहम्
बन न जाए,

उस
दरकिनार
ज़र्रे में
कहीं दुनिया
खो न जाये।

बड़ी

दुनिया जितनी
बड़ी है
दुनिया
तो क्या?

ज़र्रा ज़र्रा
क़ैद है
ज़र्रे ज़र्रे में!