Wednesday, June 29, 2016

अर्पण

न ओ
मंगता ए,
ते
न ऐ
कोई
तमाशा ए,

इंज
न सुट्टो
सिक्के
पैसे,
अर्पण नहीं
समर्पण चढ़ावो।

तर्जुमा

मन्दिर में
अनायास ही
जब
मुँह से निकला
"सत् नाम"!
दीवारों से तर्जुमा
हो हो
गूँजा
"अल्लाह हू अक़बर"
"ॐ नमः शिवाय"

Tuesday, June 28, 2016

सूरजमुखी

सूरजमुखी की तरह
पलकों के फूलों को
सूरज के बोसों से
जगने दे,
पर्दों को हटा,

अलार्म के नगाड़ों से
सुबह सुबह
अपने मरघट का
गदर न जगा।

रफ़्तार

तेरी
फर्राटेदार रफ़्तार से
जो जो
छूट रहे हैं पीछे
उन्हें छुपाऊँ
या हटाता चलूँ?

ऐ ज़माने
किन से है तू
बता दे,
तुझे बनाता
या मिटाता चलूँ।

Sunday, June 26, 2016

दौड़

थोड़ी और तेज़
भाग
दौड़
दुनिया की,
लटकें  जो
तेरे अपनों
की भी
गर्दनें,
तमगों सी
जीत की
टहनियों से।

Saturday, June 25, 2016

दिल की

सोचता हूँ
तुझे
अपने दिल की
करने दूँ,

कहीं तू ही
न हो
ख़ुदा,
मेरा बच्चा
बना न हो।

सपने

माथा चूम कर
जगा लेती थी
माँ,

हमारे
बुरे सपने
देख लेती थी वो।

कब्र

समझ
इसी को
अपनी कब्र
मिट्टी नहीं
तो क्या,

हिल डुल
चल फिर
देख सुन
सकता है,
ज़िंदा नहीं
तो क्या।

खेल

तू
इतना नादान
तो नहीं,
कि सपने को
सपना
समझे,

कायनात
खेलती है
तुझसे
पीछे
जब
जागता है तू।

पंजाब

ये
इत्तेफ़ाक़ की बात
कि
पंजाब
इसे कहते हैं,

वो लोग
वो माहौल
वो खुशियाँ
अब यहाँ कहाँ,
वो बरकतों के दरिया
अब
कहीं और
बहते हैं।

Friday, June 24, 2016

आटा

केड़ा केड़ा तत्
गुन्न गुन्न
बणाया सी
तैनूं
पेड़ेया!
सोचेया सी
मुकावेंगा
किसे दी
भुक्ख।

इक तूँ ऐं
जो सुक्क सुक्क
फेर
लभणा ऐं
आपणा
गवाचा
आटा!

पेड़ा

केड़ा केड़ा तत्
गुन्न गुन्न
बणाया सी
तैनूं
पेड़ेया!
सोचेया सी
मुकावेंगा
किसे दी
भुक्ख।

इक तूँ ऐं
जो सुक्क सुक्क
फेर
लभणा ऐं
आपणा
गवाचा
आटा!

Tuesday, June 21, 2016

अर्पण

पुष्पों का वध कर
हे देव!
करता हूँ
आपको
अर्पण।

मैं

वो रहे
मेरे पैर
मेरे घुटने
मेरी टाँगें,

ये
मेरे हाथ
मेरी बाज़ुयें
मेरा धड़,
मेरा सर,

मैं भी
यहीं हूँ कहीं,
गूँजता
अदृश्य।

पुष्पम्

पुष्पम् अवध्
त्वम् समर्पयामि।

Saturday, June 18, 2016

भूल

अंत को
अंत
समझने की
फिर
भूल न कर,

किसी आरम्भ का
आरम्भ भी
नहीं
ये अभी।

सबक

किस किस को
सिखाता
मैं सबक,

ख़ुद ही
सीख कर
स्नातक हो गया।

Thursday, June 16, 2016

कैसे?

बता
तू
रुकेगा
कैसे?

कौन सा
दूँ
तुझे
झटका,
तू सुनेगा
कैसे?

Tuesday, June 14, 2016

मुक्ति

मोक्ष से मुक्ति
ही यदि
मोक्ष हुआ
तो?

इंसां
तू मूलतः
मुक्त हुआ तो?

Saturday, June 11, 2016

बारिश

धुल कर
क्या शफ़्फ़ाक़
सफ़ेद
चमक गई
चढ़ी रात में
ये भीगी वादी!

आसमाँ के
अंधेरों की नहीं,
दिल के सितारों की है
रूह की
ये वादी
आदी।

किले

कहते हो तुम
कि
राजा के किले की
ये धज्जी दीवारें
बिना ईंट गारे के
बनी हैं,

पसीने की
उन नदियों का क्या
जो दर्जों दर्जों में
बही हैं!

दरिया

रख
दिल पर पत्थर,
और
गुज़र जा,

हैं
और भी
लम्हें
इंतज़ार में
गुज़रने को।

बह जा,
ऐ दरिया!
लहरों में छिप,
मिलने
सागर से अपने,

रहे समझता
ज़माना
कि यहीं है तू,
दे जगह अपनी
किसी और
रवानी को।

बूँद

कह दो
आसमाँ से
कि
आज
न बरसे,

रूह तक
सूखा है
मेरे वजूद का पृष्ठ,
आँसू न समझ ले
किसी
बूँद को,
सुलग न जाए!

ख़्वाब

कुछ
अधूरे ख़्वाब
कतार में रखना,

उम्र ए रफ़्ता
हर हाल
रफ़्तार में रखना।

वो लम्हा

लौटा हूँ
आज
बाद बरसों,
वहीं,
ढूँढने
वही लम्हा,

बनकर
याद की हवा,
करता है
मेरे ज़हन के जंगल में
सायें सायें,
बिना दिखे!

सताता है
मुझे
किसी नन्हें की तरह,
खेलता
मुझसे
आँख मिचौनी
हाथ मगर
आता नहीं,

न मिलना चाहे
मुझसे
न मिले
बेशक़ मुझे,
कोई कह दे
उसे,

रखे
मेरी उम्मीद
ज़िंदा,
लौट आने की
सिहरन
जगाता रहे,

जा चुका हो
भले ही
बहुत दूर
हमेशा के लिए,
खिलखिला मगर गूँजता रहे
मेरे वजूद की वादी में
कि
अभी आया
अभी आया।

Saturday, June 4, 2016

झण्डा

जिसे
समझता है तू
अपनी ज़िन्दगी का
डूबता जज़ीरा,

हालातों के समन्दर में
हक़ीक़तों के तल से
फूटे
ज्वालामुखी का है
शिखर,
तेरे कभी न मरने के जज़्बे का
झण्डा।

दुआ

अपने ज़हन के
गिरजे में
गूँज तो सही
दुआ बनके,

मुमकिन है
सुन ले
ख़ुदा
ख़ुदी बनके।

Thursday, June 2, 2016

प्याला

पूरी सुराही
ज्ञान की
न सही,
एक प्याला ही
पिला दे,

ऐ वक़्त के दर
नहीं पूरी क़िताब
तो आज
एक सफ़ा ही
पढ़ा दे!