सानूँ पता नहीं सी
कि तुसी
सिद्धू हो,
असीं ताँ
समझदे सी
तुसी
कप्तान हो!
तेरे दस्तख़त हैं
कहाँ कहाँ,
कायनात को छेड़ा है तुमने
कहाँ कहाँ,
अब मिट्टी भी हो जाओ
तो क्या,
ज़मीन को पहले सा कर पाओगे
कहाँ कहाँ,
मेरी मान
ज़िन्दगी में इतना संजीदा न हो,
किस्मत ए यार से लड़ेगा
कहाँ कहाँ,
माना कि तेरे माज़ी के हैं
ज़ख्म हज़ार,
नए फूलों को खिलने से रोकेगा
कहाँ कहाँ,
जो करना है कर ले
इन साँसों से,
बाद में बहती हवाओं से करेगा इल्तजा
कहाँ कहाँ,
चल जा कर
बचा कोई ज़िन्दगी,
ख़ून ए पाक़ से खेल कर
नहायेगा कहाँ कहाँ।
बिना ईंधन के
घूमते हैं
कैसे
ये धरती
ये चाँद
ये सितारे!
अब तो
पूरा शक़ है मुझे
कि सपना देखता हूँ मैं,
मेरा ज़ोर है
लग रहा।
नहीं दिखते
जहाँ रास्ते
होते वहाँ भी हैं,
मंज़िलें
ब्याह लेती हैं जो आँखें
शेष रास्ते
उनसे
छुपा लेती हैं!
न रहे
हुण
ओ मुग़ल
न तुर्क,
ते ना हुण
ओ अफ़ग़ानी रहे,
सरहदाँ नूँ
हुण ए
सिर्फ़
एस तरफ़ दी
चिंता,
ऐना पंजाबियाँ तों
पंजाब बचाओण लई
ओ पंजाबी ना रहे!
हुण
एस तो हेठाँ
पाणी नहीं
लावा निकलेगा,
परत जा
किसान वीरा,
ज़मीन दे
सवालाँ दा जवाब
ज़मीन ते ही
मिलेगा!
मत करो
यूँ
ज्ञान का स्नान,
करवाओ
अपितु
मस्तिष्क की
खुजली का
ईलाज पहले,
पुनः पुनः
डालते रहोगे
अन्यथा
वजूद पर
मूढ़ता की मिट्टी,
ऐ गजराज!
उठा तो दूँ
आपकी समस्या
के समाधान
की दुआ में
अपने
बेबस
बेचैन
झिझकते हाथ,
पहले
मगर
समस्या के
आपको एहसास बाबत
मेरी मन्नत तो
क़ुबूल हो!
बद्दलाँ दी बुक्कल च
ताँ होवणगे
बोतलाँ दे पाणियाँ दे
ख़ौरे
किन्ने दरेया,
जिमीदारा
धरती माँ दे
खाली सीने ते
तू ताँ
अन्ने वा
इंज ट्यूबवैल न चला!
न मैं
करूँगा तारीफ़
न माँगूंगा
माफ़ी,
और न ही
अपेक्षा करूँगा,
करता हूँ
मगर वादा
कि जुडूंगा
ईमानदारी से
बनकर
कटी कलम
तुम टहनी से
देने मौका
फिर उग आने का
हमारी
साँझी
नसें।
छड्ड मीआँ
मुनाफ़ेयाँ दियाँ गल्लाँ,
हिसाब रहण दे,
लेखेयाँ दे
खातेयाँ नूँ समझ,
खातेयाँ च
लिखियाँ नूँ
रहण दे।
भाषा
सही सीखी होती
तो आज
यूँ
सड़क पर न होते,
बिना दुश्मनी के
कोई क्यूँ लगाता
ढाबे में आग!
गर
"तुरन्त चाहिए मसालची"
की जगह
"मशालची" न लिखते!
माँ
बहुत स्वादिष्ट थी
आपके हाथ की बनी
दाल
सब्जी
कढ़ी
और चने भी!
आपके
मन्दिर का
प्राँगण भी
आपकी गोद की तरह था
सुकून से भरा।