Sunday, November 13, 2016

किनारा

कितना दूर
आ गया
मैं
बहते बहते,

दरिया के बीच ही
किनारा हो गया।

Sunday, November 6, 2016

ज़रूरत

क्या है ज़रूरत
मन्दिरों गुरुद्वारों की
देहात में,
हर कहीं तो
मौजूद है
वो,

शहरों में
बनाओ
जहाँ
सिर्फ़ फ़्लैट हैं!

हिसाब

मॉलिक्यूल मॉलिक्यूल का
हिसाब देखा
क़िस्मत की उंगलियों वाले
ईश्वर के हाथों में,

हैरानगी से देखता हूँ
वो चावल
वो दाल के दाने
जो पहुँचे हैं मेरी थाल में
लंगर की पंक्ति में!

फ़ुर्सत

बेशक़
हूँ ज़िंदा,
पर पूरा
वर्तमान
न समझ,

एक बड़ा
हिस्सा हूँ
अपने इतिहास का
फ़ुर्सत में
पढ़ता।

धूप

उसकी
अदृश्य
कार पर तो नहीं,
उसके
किराये के मकान
की छत पर थी
एक
सन रूफ़,

सिर्फ़
सर और गर्दन ही नहीं,
पूरा वजूद
निकाल
बैठता था वो
परिवार सहित
इतवार की गुनगुनी धूप सेकने
हर सर्दियाँ।

Tuesday, November 1, 2016

सौरमण्डल

एक पूरा सौरमण्डल था
तिड़ तिड़ जलता
उस लौ में,

एक मैं
बाहर था
देखता,
एक सूक्ष्म
कहीं भीतर
तपता।