अभी तो
गर्मी
ठीक से
आई भी नहीं
और रूहें
पलायन को
कतार में हैं,
लू में
बिजली कटेगी
तो कैसी
भगदड़ होगी!
अभी तो
गर्मी
ठीक से
आई भी नहीं
और रूहें
पलायन को
कतार में हैं,
लू में
बिजली कटेगी
तो कैसी
भगदड़ होगी!
उड़ उड़ के
सरे आम
पहुँचे
गीत उसके
मुझ तक,
बीच में
किसी ने
न सुने,
नीले दाँत की
किसी को
कानों कान
ख़बर न हुई!
कभी
देह से बाहर निकल कर
सोच
कितना ज़रूरी है तू!
रूह को
कोई जानता नहीं,
यूँ देह को
कोई मानता नहीं!
दैवीय न्याय
बीच बीच में
कभी कभार
देखा तो है,
पर कायल नहीं हूँ मैं,
देखा है
उतना तो
आततायी को भी
करते तरस
अक्सर!
तजुर्बे
नाकाम भी होंगे
माँगेंगे कीमत भी,
पर
देना,
जो न बनी बात
तो देंगे
ज़हानत का बोसा,
जो सही बैठे
तो नए दरवाज़े खोलेंगे!
इतनी तारीफ़ करोगे
तो बेचारा
संभलेगा कैसे?
अभी तो
नेगेटिव में चल रहे हैं
अच्छे अच्छे
तजुर्बे उसके,
न्यूट्रल से पॉज़िटिव में आयेंगे
तो सहेगा झटके कैसे?
किसी इंसान के आगे
ज़माने और ज़िन्दगी की
पोल खुल जाए
तो वो कैसे जियेगा!
वैसे ही जी
हंस हंस के
देख
करिश्मे
तमाशे।
8 घण्टे दी नींद
जिवें 5 कु मिनटाँ च लै के
मैं फ़्री सी!
मौत नालों ए डीप स्लीप
अलेहदा
ख़ौरे किवें सी?
होवेगी
बेशक़
इक दे उस पार
कोई नवीं दुनिया,
दूसरे दे किनारे वी ताँ
इक अनदेखी सवेर सी!
चढ़ी दोपहर
स्कूल में
खोलते हैं जब
टिफ़न
बच्चे,
बंधा पाते हैं
फिर
सुकून की सुबह का
ताज़ा टुकड़ा,
माँ वालों
के नित में
सूरज कई बार है चढ़ता।
लो यहाँ अपने सफ़र को
देता हूँ विराम,
थक कर चूर मगर बेहद ख़ुश
रूह को आराम देता हूँ,
कह देना ज़माने को
बड़ा शुक्रगुज़ार था मैं,
उसके हर मन्ज़र को
तहे दिल से सलाम करता हूँ,
था मैं अलबत्ता
किसी और मिट्टी का,
सो इस मिट्टी को वापस बा अदब
साज़ ओ सामान करता हूँ!
हो
एक ऐसी भी महफ़िल
जहाँ
न शम्मा, न परवाना हो,
पिघल पिघल के
जले
मेरा ही वजूद,
तेरी ही रूह को
नज़ारा हो!