Friday, June 30, 2017

दूर

दुआ
उसने वहाँ माँगी
जहाँ
शायद
ख़ुदा न था,

ख़ुदी में
इतना दूर
निकल आया था वो
शायद!

Wednesday, June 28, 2017

तरस

कहाँ ढूँढता हूँ
मैं
अब
तुझे
तेरे दर पे,

जब से
आ बसा है तू,
मेरे मन में
तरस कर के...

वज़ीर

वज़ीर ख़ान
तू व्यर्थ ही
नर्क गया,

सिक्खी के
साहबज़ादे ही
आज
चुनवाने को हैं
गुरु की बात
उसी के द्वार...

आत्मकथा

दस मिनट में
वो शख़्स
अपनी
अनलिखी
आत्मकथा के
अंश सुना गया,

छोड़ गया मुझे
लटकता
कौतुहल की रस्सी से
प्रश्नों के पेड़ पर
उल्टा,
मजबूर,
करने को पूरी
कथा वो उसकी
कहानी से अपनी...

पहचान

जितने भी ईश्वर
तेरी पहचान में हैं,
आज सब को बुला ले,

तेरे वजूद
का है
यज्ञ
कर आह्वान
सारे अपने
बुला ले...

Tuesday, June 27, 2017

मेवे

सूख सूख के
मेवे हो गए हैं
भीतर ही भीतर
साल दर साल
परतों में दबते
वो सारे अधूरे अरमान
भावनायें
अनकहे विचार
आत्म मन्थन के विष अमृत...

जब भी लगती है
प्रेरणा की भूख
बीनता हूँ
बिसरा कुछ,
खा लेता हूँ!

Monday, June 26, 2017

शीत युग

समझ रही है
दुनिया
जिसे
तेरे शीत युग की शुरुआत
देख तेरी जटाओं की
सफ़ेदी,

है दर असल
एक जीवन पर्यंत
शीत युद्ध का अंत
बसंत का आगमन।

चोला

मैले
घिसे
बदनसीब
चोले को जब
धोना
सवारना
करना रफ़ू
मुमकिन न रहा,

मुनासिब समझा
रूह ए सफ़र ने
चोला बदलना।

गर्जना

बरसने आया था वो
जिसे हवाओं ने
खदेड़ दिया,

उसकी मजबूरी थी
उसकी गर्जना,
भयभीत सेहरा ने
न जाने क्या समझ लिया!

Thursday, June 22, 2017

मवेशी

खपरैलों की छतों तले
पक्के हौसले वाली कच्ची दीवारों से सटी
आसमानी नाको की एक गली में छुप
कतार के अनुशासन में खड़े थे
बिन खूँटे बिन रस्सियाँ
बिन चारा बिन पानी
चमड़े की काठी पहने
लोहे के मवेशियों से
थके मगर अभी भी जोश से भरे
निराली नस्ल के
अभी भी भभकते गर्म
वो
प्रवासी
रॉयल एनफ़ील्ड!

हादसे

कब तक
याद रखूँ
हादसे अपने?

और क्यों?

न होता बचना
तो ख़ुदा
बचाता क्यों!

Tuesday, June 20, 2017

पुष्प

प्रशस्ति पत्र के लिए
खड़े देखे जब कतारों में
करबद्ध
लिए हाथों में पात्रता की अर्ज़ियाँ
पदम् की चाह में
इत्र से महकते पुष्प,

तितली होने पर
आज
मलाल आया!

Monday, June 19, 2017

इफ़्तार

गृह युद्ध
न जाने
कितना और चले,

चलो
बीच ही
रुक
करें अदा
शुक्रिया उस का
उस बात का
समझाने हमें
जतन वो नाकाम करे,

गृह युद्ध
न जाने
कितने और चलें,
आओ बच्चो
बिन वालदेहन
इफ़्तार चलें।

Sunday, June 18, 2017

छलावा

किसी गम्भीर तलाश में है दुनिया
ये आत्म छलावा रहने दे,
ख़ुदा हासिल है जब
कदम कदम पर
और दर किनार है,
कहती रहे अब जो भी दुनिया
उसे कहने दे...

कालचक्कर

जदों वी जाइदै
कलकत्ता
मद्रास
बम्बे
थोड़ा पंजाब
नाल लै जाइदै,

खाईदै कड कड
अचार दे डब्बे चों
सुक्की रोटी दे नाल
वेले कवेले,
कुज पैन ड्राइव च पा के
उदास दिल नूँ
कर कोशिशाँ परचाइदै,

रख लइदै नाल
इक पुराणी अख़बार पंजाबी
चन्गियाँ मन्दियाँ ओही
रोज पढ़ पढ़
भटके दिल नूँ आरे लाइदै,

नितनेम दा
रखीदै गुटका कोने च ट्रंक दे
बन्न सिर ते परना
सवेरे शाम
पढ़ दिल च वसाईदै,

चलाईदै ट्रक
अमानताँ पुचाईदै,
रिज्ज्क नूँ ला सिर मत्थे
अकाल पुरख दा शुकर मनाईदै...

"मुडाँगा कदे मैं वी
आपणे कलकत्ते आपणे बम्बे तों,
मिलेगा कदे मैनूं वी
आराम मेरे कालचक्कर तों,
मेरी अमानताँ वी मेरी झोली पैणगियाँ"
की की दब्बियाँ अरदासाँ
मन्ना! सीने च रखी दै...

प्यास

कहो तो
चुनवा दें
शहीदों को
जो बच आये हैं
हारी जंग से
आपकी,
इतने से भी
'गर
तमाशाई प्यास न बुझे आपकी
तो भटकाने
आपके भीतरी खोखलेपन से आप ही का ध्यान
बतायें मजबूर देश क्या करे...

दुश्मन

ग़ौर से देख
दुश्मन को,
कहीं तू ही तो नहीं,

दोस्त होते तुम
तो वो क्या होता!

दावे

सितारों तक
जिनकी पहुँच न थी
दिल के अम्बर तले लेट गए,

खोल दिये पिंजरे
रूहों के,
जिस्मों के दावे छोड़ दिए!

Saturday, June 17, 2017

दुनिया

कहाँ कहाँ तक है दुनिया
तुझे इल्म नहीं है,
तेरे ख़्यालों के शहर तक है
तेरे जिस्म का वजूद
हद ए रूह नहीं है!

परिंदे

आज भी हैं
कुछ जगहें
जहाँ
जन परिंदों से कम हैं,

लोहे के परों पर
उन्मुक्त हो
उड़ते हैं
नाभकीय सड़कों पर
कुछ लोग वहाँ,
बस नज़ारे चुगते हैं,

गुम जाते हैं
जादुई वादियों में
कुछ दिनों के लिए,
पर्बतों की ओट में
बिन अहम
बस आत्मा बन रहते हैं!

on
Just concluded ride to Spiti by
By dear friends
Ashish Dewett and Kanwar Aulakh

Friday, June 16, 2017

कमली

बोल सकदी ताँ चीख़ चीख़ दसदी
भन्न भन्न अड्डियाँ सारे शहर च नसदी
खिच खिच ध्यान
घुंड चुक चुक वखांदी
हंजू ख़ुशी दे डोलणे नूँ
भोरा न संगदी,

लैंदी मेरा नाँ
वखांदी मेरा पता
फड़ फड़ सुणान्दी मेरी कहाणी,
ते दसदी कित्थे चलली सी
मिल मिल विछड़दियाँ सहेलियाँ नूँ
कदे रोंदी
कदे लै लै हौके
कमली हो हो हसदी,

किन्नी खुश सी ओ
किन्नी सुदराई
मिलण दे चा च मैनूं
ओ क़िताब
जो मुल्ल भेज
हुणे हुणे
मैं सी मंगवाई!!!

रेल

न पटरी , न पहिये
न इंजन
न मन्ज़िल है
इस रेल की,
चल रही
दुनिया,
घट घट के
बढ़ रही,
रुका इंसान
कुछ यूँ
सफ़र में है...

दो हज़ार सैंतीस

दो हज़ार सैंतीस देखा आपने?
अभी अभी गुज़रा
सामने से आपके,
घोड़े पर सवार,
ख़ुश,
अभी पाँच साल का है
अपनी विरासत से अनभिज्ञ
आपकी विफलता, मजबूरियों से अनजान...

कहानी

चल
आज
तुझे
छुपाता नहीं मैं,
बता
क्या
कहानी
है तेरी...

मिट्टी

मिट्टी
ज़रूरी तो नहीं
मिटियाली रंग की हो,
क्या क्या
रंग
रूप
लेती है ले
बिना कुछ किये
देने सब हो...

Thursday, June 15, 2017

क्यों

क्यों सुनूँ
तेरी फ़रियाद
कोई आख़िरी तो नहीं,
रखा है
ख़ुद को
कितना कमज़ोर,
बस इलतजायें ही करना
मुनासिब तो नहीं।

जिस्म

चाय की गरम केतली से निकलती
भाप से लगे
हाँडी सी वादी में
उड़ते बादल,
थकी आँखों की भरी तश्तरी में
रूह के होंठों से भर चुस्की
अलसाए वजूद के जिस्म में
नई स्फूर्ति आई!

सिसकियाँ

आज
वहाँ से टूट के लौटा हूँ
जहाँ से
जुड़ के लौटती हैं
रूहें,
मेरे बिखरने में
बिछड़ी कायनात की
सिसकियाँ हैं!

पुष्प

बस यही सोचकर
मैंने तुझे
मुड़कर नहीं देखा,
कहीं हो न जायें
अल्हड़पन की तेरी पंखुड़ियाँ
घबराकर बन्द
सचेत पुष्प की तरह...

Monday, June 12, 2017

शक़

मुझे
पहले ही शक़ था, दया!
कि कुछ तो गड़बड़ है,
वो शख़्स
हमेशा क्यों वहाँ है
जहाँ दुनिया नहीं!

Saturday, June 10, 2017

राज़

कुछ तो राज़ है
इस दर्द
इस तड़प का,
कुछ तो
छुपाने में आमादा है
क़ायनात
जो ये सब दिखाती है!

इल्म

क्यों बख़्श देता है ख़ुदा
हमारे गुनाह
कुछ इल्म है मुझे आज,
दौड़ के जो लगते हैं
उसके बच्चे
गले उसके
एहसास जागने के बाद...

वजह

चिंगारियों भरी
नम आँखों से
क़ुबूल ले
गर मुस्कुराते हुए
मुमकिन नहीं,

माँग के
ली है
ये शय
तेरी नियति नें,
कोई वजह होगी।

समर्पण

सोचता तो हूँ
कि कर दूँ
किस्मत को
समर्पण,
फिर सोचता हूँ
कहीं संघर्ष ही न हो
किस्मत मेरी!

Wednesday, June 7, 2017

ठहर जा

तेरे ऊपर से
गुज़र जाएगा
वक़्त
पैर रख के,

ठहर जा
जहाँ है
ख़ुदा करके।

Friday, June 2, 2017

पते

किसी मस्जिद में
नमाज़ अदा करने को
जी करता है,

गुरु के
गुमनाम पते
ढूँढने को
जी करता है।