ਜੋ
ਮੰਗਿਆ ਸੀ ਤੂੰ
ਓਹੀ ਦੇਣ ਲੱਗੇਆਂ,
ਸਹ ਲੈ
ਥੋੜੀ ਪੀੜ
ਤੇਰਾ
ਕੰਡਾ ਕੱਢਣ ਲੱਗੇਆਂ!
काँटों की
नन्हीं
कोमल
उँगलियों से
पकड़ा जो
इतने प्यार से
फूलों ने
मेरा दामन,
मंज़िल को
बाद एक अरसा
रास्तों में
देखा मैंने!
अच्छा हुआ
वक़्त से पहले ही
आकर
तू चला गया,
असहिष्णुता के उपद्रव
के भोजन को
तू नहीं था,
तेरी बातें थी मात्र
दिखाने को
रास्ता!
ਨਾ ਮਿਲੀੰ ਕਦੇ ਤੂੰ
ਪਰ ਖਿੱਚ ਇਵੇਂ ਹੀ
ਪਾਈ ਰੱਖੀਂ,
ਮੇਰਿਏ ਮੰਜ਼ਿਲੇ
ਰਾਹਾਂ ਆਪਣੇ
ਮੈਨੂੰ ਤੂੰ ਪਾਈ ਰੱਖੀਂ!
ਨ ਮਿਟਾਵੀਂ ਮੇਰੀ ਪਯਾਸ
ਬੁੱਕ ਬੁੱਲਾਂ ਤੇ
ਇਵੇਂ ਲਵਾਈ ਰੱਖੀਂ,
ਟੁੱਟ ਨ ਜਾਵੀਂ
ਸੁਪਣੇ ਵਾਂਗੂ,
ਨੀਂਦ ਚ ਮੈਨੂੰ
ਜਗਾਈ ਰੱਖੀਂ!
चुभते हैं
आपके तीर
मगर इन का
इंतज़ार रहता है,
तड़पता है
हर झूठ
दम निकलने से पहले,
फिर मुक्ति की उम्मीद में
इत्मिनान करता है!
रात
आयेगा
बर्फ़ानी तेंदुआ
ऊँचे दर्रे पर
खुली घासनी में बने
सुनसान विश्राम गृह की
ज़मीन से छत तक लम्बी
काँच की खिड़की
से झाँक
देखने तुम्हें
स्वर्गीय नींद में सोये...
फिर छोड़
पंजों के निशानों के तोहफ़े
परिक्रमा में
तुम्हारे देखने को अगली सुबह,
चला जायेगा
मुस्कुराते
तुम्हारे रोमाँच की वादी में!
आया है फिर
बार चौथी
लौट 1764 से
संग बलूचों के
अब्दाली
लिए
अबके
निहत्थों की फ़ौज
ढक सिर
माँगने
हरि के मंदिर में
ईलाही से माफ़ी,
मायूस है मग़र
बे इंतहा
देख खड़े
दरवाज़े पर
गुरु बख्शों की जगह
ये कौन से ग़ाज़ी!
मोड़ अमृत से मुँह
ज़हर का प्याला
उन्होंने उठाया क्यों कर?
वो कौन थे मुख़ातिब
दर ओ दरवेश
प्यासों ने पानी से मुँह
घुमाया क्यों कर?
बादशाह को बादशाह
दरवेश को दरवेश
रहने दे,
कोई विरला
हुआ जो दोनों,
ख़ुदा की कुदरत,
वर्ना सत्ता नशीन को
इतिहास तक रहने दे।
पूछा
ज़माने ने
शाह ए अमीर की खड्ग से
जब
निडरता
निश्चय
कर्म
इंसाफ़ के
हौसले का
राज़,
चमकती
कृतार्थ
आँखों से चूम ली उसने
कमरबंद की वो दूसरी
ख़ामोश शमशीर
जो थी पीर ने बख़्शी!