आया है फिर बार चौथी लौट 1764 से संग बलूचों के अब्दाली लिए अबके निहत्थों की फ़ौज ढक सिर माँगने हरि के मंदिर में ईलाही से माफ़ी,
मायूस है मग़र बे इंतहा देख खड़े दरवाज़े पर गुरु बख्शों की जगह ये कौन से ग़ाज़ी!
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