आज फिर दुनिया पीछे छूट रही थी और मैं मन्ज़िल की ओर रफ़्तार से था बढ़ रहा,
आज फिर अतीत को मायूस किये बिना शताब्दी में मुझे सीट थी मिली उल्टी दिशा की...