एक एक दो दो चन्द वार तो कई राहगीरों नें किये थे, अब कहाँ कहाँ जाये ज़ख़्मी मुर्दा क़ातिल ढूँढने! क्यों न ज़ख्मों के रुक्कों में मनःस्पर्श से बूझे उनका रूहानी पता और मोक्ष के लिए धन्यवाद कहे।