Wednesday, November 7, 2018

कुकरमुत्ते

उग आए हैं हर तरफ़ ज़हरीले विचारों के कुकरमुत्ते,
ये कैसी हुई है तेज़ाब की बारिश अब के!
उभर उभर कर आये हैं चरित्र सब के,
ये किस किस के उतरे हैं हिजाब अब के!

Tuesday, November 6, 2018

स्नेह की मुस्कान

उम्र की शरद में
ओढ़े स्नेह की मुस्कान
लिए आँखों में टिमटिमाते नक्षत्रीय दीये,
चेहरे के पीछे से झाँकता
यह कौन है हमारे नभ में
हम से जुदा,

भरता है ख़ुद का दम
हमारी ही साँसों से,
भले एक
भरी दुनिया सा लगता है!

अगली सुबह का दीया

ज़रा
सुबह की सीढ़ियाँ चढ़
कौतुहल की मुंडेर पर
देखो तो
कल रात जलाये दीये
अभी भी हैं जल रहे
या बुझ चुके?

यदि तेल की इति पर
हैं बत्तियाँ ख़ामोश हो चुकी
समझ लेना
बेहिसाब मुबारकों वाली
तुम्हारी दुनिया की दीवाली
फिर एक बरस को है
गुज़र चुकी।

लगे हाथ
फिर
झाँक देख लेना
ख़ामोशी पसरे दिल की बाम पर
क्या है अभी भी जलता
उम्मीद, सहजता, शुक्र का दीया?
यदि है अभी भी वो
मद्धम लौ में मुस्कुराता टिमटिमाता,
बिन बाती, बिन तेल,
समझ लेना
तुम्हारे जीवन की दीवाली
अभी तो हुई है शुरू
या है चिरजीवी, जारी!