उम्र की शरद में ओढ़े स्नेह की मुस्कान लिए आँखों में टिमटिमाते नक्षत्रीय दीये, चेहरे के पीछे से झाँकता यह कौन है हमारे नभ में हम से जुदा,
भरता है ख़ुद का दम हमारी ही साँसों से, भले एक भरी दुनिया सा लगता है!
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