हौले से
बता दे
ख़ुद को
अपनी समझ की
राय,
क़ायनात
कहीं सुन न ले,
हंस न दे।
ईश्वर
क्यों नहीं था
तू
उन
कंदराओं में
जहाँ मैं
ढूँढ़ता था,
कब से
था
उन मदिरालयों में
जहाँ मैं
छुपा था?!!
स्याही
की दवात से
उसके जिस्म में
हर गुज़रता
नज़रों की कलम डुबा
लिखता रहा
अपने दामन पर
मजबूर ज़हन का
हलफ़नामा,
वो
खड़ी रही
चौराहे पर
वर्दी की
दीवार में|
वो कौन सा था गाना
जो तुमने सुना था
लगा
कानों में इयर फ़ोन
मोबाइल से अपने?
क्या थे बोल उसके
किस बारे में था?
क्या थी धुन उसकी
ऐसी क्या कशिश थी
जो
उसे ही
तुमने
बार बार
यूँ सुना था?
किस कशमकश में
उलझाये
उकसाये था
तुमको,
किस हिम्मत की
तेरे भीतर की बावड़ी
भरे था?
कौन सा सुकून
कैसा दर्द
पिलाता था
कानों से,
वो कौन सा था गाना
जो बारबार
तुमने सुना था
लगा
कानों में इयर फ़ोन
मोबाइल से अपने
आध घण्टा
कूदने से पहले
कन्दरौर के
उसी पुल से
सतलुज में,
ऐ कुल्लू की लड़की!