स्याही की दवात से उसके जिस्म में हर गुज़रता नज़रों की कलम डुबा लिखता रहा अपने दामन पर मजबूर ज़हन का हलफ़नामा,
वो खड़ी रही चौराहे पर वर्दी की दीवार में|
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