Wednesday, July 29, 2015

मजबूरी

याक़ूब
तू अब
कईयों की
सियासी
मजबूरी है,

तेरे
ज़िंदा रहने का है
तक़ाज़ा,
तेरा मरना भी
ज़रूरी है।

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