Sunday, November 11, 2012

घोड़े


बीती रात
थका हारा
मैं घर लौटा
बिस्तर पर गिरा
और सब कुछ भूल
घोड़े बेच
सो गया ।

सारी रात
अकेला
न जाने
किस किस बाग
आसमान
और नदी
चलता
उड़ता
तैरता रहा ।

सुबह आँख खुली
तो देखा
चिंता के
आंगन में
सारे घोड़े
वापिस आ
बंधे थे
न जाने
पीठ पर
क्या क्या लादे ।

रात वाले
बागों की खुशबू
आसमान का विस्तार
नदी का बहाव
अभी पलकों पर
ओस की तरह
ताज़ा था ।

मैं उठा
नहाया
तैयार हुआ
और पहली बार
घोड़ों को
पीछे बंधा छोड़
अकेला आगे निकल गया ।

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