इधर कुछ दिनों से कविता की कुट्टी है मुझसे,
कलम की टॉफ़ी दिखा जब भी बुलाता हूँ उसे, चुप्पी के गाल फुला शब्दों की बाहें लपेट मेरे दिल के कोने में बेटी सी बैठी रहती है रूठी।
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