स्टेडियम से निकलते
भीड़ देखी
तो सोचा
कि मैच
ख़त्म हुआ,
सीढ़ियाँ
उतर कर देखा
तो दर्शक दीर्घा के नाम पर था
दीवारों से घिरा
एक अंधेरा कोना,
और ऐस्ट्रोटर्फ़ के नाम पर
बस एक
चटाई,
शायद अभी भी
कार पार्किंग की वो बेसमेंट
असामाजिक ही थी,
ताश के खेल का
छुपा
खामोश
स्टेडियम,
सट्टे का अड्डा।
No comments:
Post a Comment