साँसों की तितलियाँ
Friday, June 16, 2017
रेल
न पटरी , न पहिये
न इंजन
न मन्ज़िल है
इस रेल की,
चल रही
दुनिया,
घट घट के
बढ़ रही,
रुका इंसान
कुछ यूँ
सफ़र में है...
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