हज़ार चाहा कि दबे पाँव गुज़र जायें उस दहलीज़ से, गुज़र गुज़र कर उसी रहगुज़र से गुज़रना पड़ा।
आई तो ज़रूर वो मन्ज़िल उस सफ़र के बाद, हाय उस सफ़र को किस किस मुक़ाम से गुज़रना पड़ा।
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