Friday, January 4, 2013

नानी


रेस्तरां में
बगल की मेज़ पर
मम्मी पापा
और भाई के साथ बैठी
नन्हीं सी
प्यारी
गोल मटोल
बच्ची की
तोतली ज़ुबान की
कैंची जैसी
प्यारी बातों ने
मेरे कानों को कुतरा
और नज़रों को
खींचा ।

लटकते गालों वाली
कुछ मोटी
और नाटी
परी को देखनें
मेरे होटों की मुंडेर पर
मुस्कुराहटें दौड़ी चली आईं

और
पीछे
नीचे
अंदर
बुझे बुझे से
दिल के
गहरे कमरे में
हज़ार वाट के
सौ बल्ब
जल उठे ।

तभी
मन ही मन
हँसते हँसते
मेरे दिल में
एक शरारती ख़याल आया

"बड़ी होकर
बूढ़ी होकर
ये बच्ची
कितनी प्यारी
क्यूट
बूढ़िया नानी दिखेगी ।"

ये सोचकर
दबे पाँव
मैंने
फिर से
एक नज़र
उस गुड़िया को देखा ।

मैं
अभी देख ही रहा था
अभी खुश हो ही रहा था
कि दिल बीच में ही
फिर बोल पड़ा

"पता नहीं
यह बच्ची
सही सलामत
तब तक
इतनी दूर
वक्त के उतने पहाड़
लाँघ भी पायेगी
इस देश में ?"

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