Friday, December 28, 2012

टीस

"मैं बहुत खुश हूँ
और खुशकिस्मत हूँ"
दत्तक जी
शान से बोले ।

इससे पहले मैं पूछता
वो खुद ही बोले

"मैं बी॰ए॰ ऑनर्स हूँ
बी॰एड॰ हूँ
और संस्कृत में एम॰ए॰ हूँ ।
एम॰ए॰ के बाद
मैं एक स्कूल में
मास्टर लग गया
और आठ साल पढ़ाता रहा,
पर खुश नहीं था ।"

मैं टकटकी लगाये
चुपचाप सुनता रहा॰॰॰

"फिर एक दिन
मैंने अखबार में
शिमला के एक बड़े मंदिर
के पुजारी के लिये
इश्तहार देखा ।
मैंने एपलाई कर दिया ।
बहुत पण्डित आये
पर कमेटी ने
मुझे चुना ।
वह काली माता का मंदिर था ।
माँ ने ही मुझे
इतने शानदार शहर मे
इतनी शानदार नौकरी
इतनी बढ़िया तनख्वाह पर
दिलवाई ॰॰॰॰
और घर भी दिलवाया ।
सब काली माता का आशीर्वाद है ।"

पण्डित जी
एक साँस में
सब कह गये
और मैं
बिना साँस लिये
खुले मुंह से
सब सुन गया ।

"पर पण्डित जी
आप कह तो रहे हैं
मगर मुझे आप
फिर भी
पूरी तरह से
खुश नहीं लग रहे ।"
मैंने जो दिल में था
पूछ लिया ।

पण्डित जी
पहले तो
सकपकाये
फिर सम्भले
मुस्कुराये
और दबी सी टीस से बोले

"आप ठीक कह रहे हैं ।
आप पहले इंसान हैं
जिसने मेरे दिल की बात जानी है ।
असल में
इस बड़े मंदिर में पूजा करते समय
एक दिन
एक भारतीय मूल के विदेशी ने
मुझे अमरीका के मंदिर में
पुजारी की नौकरी का प्रस्ताव दिया ।
डौलर में तनख़्वाह॰॰॰
वीज़ा, घर, गाड़ी॰॰॰
और सबसे बड़ी बात
हमेशा के लिये
विदेश में रहना॰॰॰॰"

कहते कहते
चश्में के पीछे आये
आँसुओं की बूदों को
पण्डितजी
अपने सफेद अंगवस्त्र से
पोंछने लगे ।

मैंने उन्हें
सम्भलने दिया
और फिर पूछ ही लिया

"आप गये तो नहीं
ज़ाहिर है,
पर क्या आप काली माँ से
इस लिये नाराज़ हैं
कि उन्होंने
आपको
शिमला के मंदिर की मनपसंद नौकरी तो दी
पर अमरीका का स्वर्ग
हाथ तक लाकर वापिस ले लिया?"

"नहीं, नहीं॰॰॰॰॰"
पण्डितजी तपाक से बोले
"माता जी ने नहीं रोका
उन्होंने ही तो
वो मौका मुझ तक पहुँचाया ।
जाने तो मुझे
मेरे बीवी बच्चों ने
नहीं दिया ।"

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