खड़े खड़े
देखता हूँ
दाईं बाज़ू का हाथ,
उस हाथ से लिपटी
लोहे की
लम्बी ज़ंजीर
और उस ज़ंजीर से बंधे
सामने
नीचे
एक ही नस्ल के
मेरे ही
दो कुत्ते
एक शिकारी
एक पालतू
एक शैतान
एक साधू ।
ज़ंजीर भले न दिखे
हाथ मगर दुखता है
दोनों के खींचने से
अलग-अलग दिशा ।
किसके पीछे जाऊँ
किसे रोकूँ
किसे छोड़ दूँ ?
पाले हैं बचपन से
दोनों
सहलाऐ
और सम्भाले ।
भले ना दिखें
मगर
भौंकने की आवाज़
दोनों की
गूँजती है
अंदर से
कानों में
हर वक्त
देखते ही
कुछ भी ।
किसके पीछे जाऊँ
किसे रोकूँ
किसे छोड़ दूँ ?
दिखते हैं एक से
विचारों की धुंध वाली
भावनाओं की रात में
मन की आंखों से ।
आपस में खेलते
कभी लड़ते
बांधे
मुझे
लोहे की ज़ंजीर से
मेरे दो कुत्ते
एक शिकारी
एक पालतू
एक शैतान
एक साधू ।
देखता हूँ
दाईं बाज़ू का हाथ,
उस हाथ से लिपटी
लोहे की
लम्बी ज़ंजीर
और उस ज़ंजीर से बंधे
सामने
नीचे
एक ही नस्ल के
मेरे ही
दो कुत्ते
एक शिकारी
एक पालतू
एक शैतान
एक साधू ।
ज़ंजीर भले न दिखे
हाथ मगर दुखता है
दोनों के खींचने से
अलग-अलग दिशा ।
किसके पीछे जाऊँ
किसे रोकूँ
किसे छोड़ दूँ ?
पाले हैं बचपन से
दोनों
सहलाऐ
और सम्भाले ।
भले ना दिखें
मगर
भौंकने की आवाज़
दोनों की
गूँजती है
अंदर से
कानों में
हर वक्त
देखते ही
कुछ भी ।
किसके पीछे जाऊँ
किसे रोकूँ
किसे छोड़ दूँ ?
दिखते हैं एक से
विचारों की धुंध वाली
भावनाओं की रात में
मन की आंखों से ।
आपस में खेलते
कभी लड़ते
बांधे
मुझे
लोहे की ज़ंजीर से
मेरे दो कुत्ते
एक शिकारी
एक पालतू
एक शैतान
एक साधू ।
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