Tuesday, December 4, 2012

पलंग


हमेशा की तरह
आज भी उसे
नींद नहीं आई ।

जब सब सो गये
वो चुपके से उठा
रजाई से निकला
बिस्तर से उतरा
पलंग के नीचे से
अपना छोटा सा
पलंग निकाल
उसमें दुबककर
लकड़ी की छत ओढ़कर
गहरी नींद
सो गया ।

सुबह
सूरज और
बाकी सब
के उठने से पहले
आँखें मलकर
वह उठा
अपनी छत खोलकर
छोटे पलंग से निकला
उसे वापिस नीचे धकेलकर
ऊपर के पलंग पर
फिर चढ़कर
रजाई में घुसकर
खुली आँखों से
सुबह के इंतज़ार में
सबके बीच
जागता सा
सोया रहा ।

न उसे नींद आई
फिर
न उसके बिना
बड़े पलंग के नीचे वाले
उस नन्हे से
प्यारे से
ताबूत वाले
पलंग को ।

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