Thursday, December 27, 2012

खुली खिड़की

अमावस की
गुमसुम
लम्बी
रात में
मैं
उखड़ी उखड़ी सी
नींद से
उठ बैठा,
पलंग से उतरा
अलमारी से निकाल
खुली खिड़की के पास
ट्राइपोड लगाया
उसपर दूरबीन चढ़ा
उसे
हज़ारों में से एक
मुझ जैसे
अकेले
तारे की ओर मोड़
ज़ूम किया
और तारे को पास बुला
हौले से
उसके कान में
फुसफुसाया

"कैसे हो
कौन हो
कहाँ हो
क्यों हो?"

तारा
चुपचाप
चाँदी की आँखों से
टिमटिमाता रहा ।

उसे शायद कुछ न सुना॰॰॰

मेरी आवाज़
कुछ ऊपर जा
मेरे ही कानों पर
वापस आ गिरी

"कैसे हो
कौन हो
कहाँ हो
क्यों हो?"

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