धौलाधार की चमकती
चोटियों
पर टिके
आसमान
से लटकते
बादलों तले
आँगन के पेड़
से झूलते
पिजरे
में बंद
तोते पर
दार जी को
दया आई
और ठान ली
कि आज उसे
छोड़ देंगे ।
बहुत देर
वो
अपने बुढ़ापे के साथी
को आखिरी नज़र
पलकों भर
प्यार करते रहे
और फिर
पास आ बोले
"मुझसे
मिलने आओगे?"
तोते की खामोशी
के भार ने
दार जी
की बूढ़ी टाँगों
को खीँच कर
नीचे बिठा दिया
।
ये देख
तोता
पिंजरे के किनारे
आ
बोला
"मिलने
तो ज़रूर आऊँगा
पर आप मुझे
पहचानोगे कैसे ?"
ये सुनते ही
दार जी
के लड़खड़ाते पैरों ने
उन्हें खड़ा कर
हाथों को
पिंजरे तक पहुँचा
दिया
और बेताब उंगलियों ने
बेसब्र पंखों को
उड़ने के लिए
सारा आकाश
दे दिया ।
उस रात
दार जी को
अकेले
नींद नहीं आई
।
सुबह
सूरज की आँखें
खुलने से पहले
दार जी ने
सारे आँगन में
सुनेहरी गेहूँ के दाने
बिखेर दिये ।
देखते ही देखते
पूरब की किरणों पर बैठ
दरजनों तोते
दाना चुगने
आ गये ।
दो आँसू
दार जी की
आँखों
में उमड़े
और पुतलियों से बोले
"वो आया है
पहचान लो ।"
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