बार बार उठते सूरज ने पूरब की हवा का दम भर चोटी की शफ़्फ़ाक़ बादल चुन्नी सरकाई...
हर बार दिखी कुछ और ढलानों पर बर्फ़ की चाँदी, हर बार वादी के चेहरे पर मुस्कराहट की सुबह कुछ और खिली।
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