सटाये दरवाज़ों से कितने लठ्ठे, बन्द खिड़कियों पर रख मोटे पल्ले ठोकीं लम्बी कीलें कितनी, सरकाये कोशिशों के कितने भरे भारी ट्रंक अलमारियाँ, फिर भी खोल घुस आया भीतर वक़्त जिसे रोकता रहा मैं।
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