Saturday, February 23, 2013

वादा

"आऊँगी
ज़रुर
एक दिन,
बैठूँगी
तापूँगी आग
तुम्हारे साथ
देर रात ।

कहूँगी बातें
दिल खोलकर
सालों की
करुँगी यादें ताज़ा
बताऊँगी राज़
मन के
अनकहे
अनसुने ।

खाऊँगी
तुम्हारे हाथों से
जो खिलाओगे
पिलाओगे ।

देखूँगी छत को
बंद आँखों से
रात भर
लेट कर
जहाँ लिटाओगे ।

और सुनूँगी
खामोशी से
चुपचाप जो कहोगे
बैठकर बगल में
सारी रात
कुरेदते
यादों की राख़ ।

आऊँगी
ज़रुर
एक दिन,
बैठूँगी
तापूँगी आग
तुम्हारे साथ
देर रात,
मगर आज नहीं ।

आज भी
हूँ जल्दी में,
कहीं जाना है
कुछ काम है
ज़रूरी
बाकी ।"

सुबह सुबह
शहर के बाहर वाली सड़क पर
अंतिम धाम
के गेट
के सामने से
गुज़रते हुए
मेरे अंदर बैठे
किसी ने
किसी से
पीछे मुड़
कहा
मैंनें सुना ।

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