जब भी हूँ देखता ख़ुद को तस्वीर में आती है कहीं से आवाज़ कि ये पर मैं तो नहीं,
किसे फिर हूँ चाहता देखना, हूँ कौन, ज़हन में पहचान है किसकी!
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