Saturday, January 3, 2015

हाँडी

चढ़ा
तो लूँ
देह की
हाँडी
बहलावों की आँच,
मगर
काठ की है,

क्यूँ करूँ
ज़ाया
आत्मा की
भात
जो
पकाने को है।

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