Friday, January 1, 2016

मुर्गियाँ

मुर्गियों
की तरह हैं
कविताएँ,
कहाँ करती हैं यकीन
आती हैं पकड़ में
गर भागो पीछे!

बस
ज़हन के हाथ
रख खुले
गर चुप चाप चलो
राह अपनी
तो आती हैं पास
ख़ुद ब ख़ुद
उठा कलम!

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