Saturday, June 11, 2016

वो लम्हा

लौटा हूँ
आज
बाद बरसों,
वहीं,
ढूँढने
वही लम्हा,

बनकर
याद की हवा,
करता है
मेरे ज़हन के जंगल में
सायें सायें,
बिना दिखे!

सताता है
मुझे
किसी नन्हें की तरह,
खेलता
मुझसे
आँख मिचौनी
हाथ मगर
आता नहीं,

न मिलना चाहे
मुझसे
न मिले
बेशक़ मुझे,
कोई कह दे
उसे,

रखे
मेरी उम्मीद
ज़िंदा,
लौट आने की
सिहरन
जगाता रहे,

जा चुका हो
भले ही
बहुत दूर
हमेशा के लिए,
खिलखिला मगर गूँजता रहे
मेरे वजूद की वादी में
कि
अभी आया
अभी आया।

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