साँसों की तितलियाँ
Wednesday, September 30, 2015
सलीब
सलीब पर
क्यूँ टंगा है
तड़पता
सामने दीवार पर
घड़ी के जिस्म में,
वाक़ई वक़्त है तू
तो बदल
के दिखा।
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