लाखों कोस आगे निकल आई है घूमती धरती उहाँ से जहाँ कल रात सोने से पहले तुमने चिंताओं की वो गठरी खोली रही,
फिर काहे तुम बौड़म दास से अभी भी उहीं बैठे हो माधव!
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