अब
जब यकीनी है,
नहीं है
हमेशा के लिये
इजाज़त-ए-ज़िंदगी
क्यों न छोड़ दें
सब अधूरे बुत,
मौज को सिजदा
और
साँसों को नमाज़
समझ लें
जब यकीनी है,
नहीं है
हमेशा के लिये
इजाज़त-ए-ज़िंदगी
क्यों न छोड़ दें
सब अधूरे बुत,
मौज को सिजदा
और
साँसों को नमाज़
समझ लें
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