ग़ौर से देखूँ अगर तेरे क्रिया कलाप तो माफ़ करना ऐ बशर, करने को तेरे पास कुछ ख़ास नहीं है,
ज़िन्दा है तू इत्तेफ़ाकन, वर्ना नहीं है!
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